Increasing political activities in Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव में अभी छह माह का समय बाकी है लेकिन अभी से वहां सियासी सरगर्मियां बढ़ गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है। जिसमें सभी 7 नये मंत्री भाजपा के ही बनाये गये है। मंत्रीमंडल के इस विस्तार में जेडीयू का एक भी मंत्री न बनाए जाने के कारण बिहार में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। वैसे तो भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगा लेकिन चुनाव के बाद एनडीए को बहुमत मिलने की स्थिति में बिहार के मुख्यमंत्री पद पर किसकी नियुक्ति होगी इस बारे में भाजपा नेताओं ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
यही वजह है कि नीतीश कुमार के फिर से मुख्यमंत्री बनने को लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। भाजपा नेताओं के मुताबिक एनडीए को बहुमत मिलने के बाद विधायकों की राय से मुख्यमंत्री का चयन होगा इसका मतलब साफ है कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे। इसे लेकर संसय की स्थिति बनी हुई है। जेडीयू दल के नेता चाहते हैं कि जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा है तो नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाये। खुद नीतीश कुमार भी यही चाहते हैं कि भाजपा उन्हें सीएम के रूप में प्रोटेक्ट करे।
यही नहीं बल्कि जेडीयू को 115 सीटें दिये जाने की भी मांग उठ रही है। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जेडीयू बराबरी की सीटें चाहती है ताकि वह सबसे बड़े दल के रूप में उभर सके और नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद पर दावा मजबूत हो सके किन्तु भाजपा इसके लिए भी तैयार नहीं हो रही है। भाजपा अधिकतम सीटें पर चुनाव लड़कर बिहार में बड़े भाई की भूमिका में आना चाहती है। ताकि बिहार में भाजपा का मुख्यमंत्री बन सके। यहीं पेंच फंसा हुआ है। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे का भी राजनीति में पदार्पण होने की संभावना बढ़ गई है।
गौरतलब है कि नीतीश कुमार राजनीति में परिवारवाद के सख्त खिलाफ है इसीलिए उनके बेटे अभी तक राजनीति से दूर थे किन्तु अब नीतीश कुमार उम्रदराज हो चुके हैं इसलिए जेडीयू के ही अनेक नेता यह चाहते हैं कि उनके बेटे राजनीति में आये और अपने पिता की विरासत को संभालें। कुल मिलाकर बिहार में मुख्यमंत्री पद को लेकर तथा सीटों के बटवारे को लेकर एनडीए में खींचतान की स्थिति बन गई है। नतीजतन राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव तथा उनके पुत्र तेजस्वी यादव नीतीश कुमार पर डोरे डाल रहे हैं।
ऐसे में यदि एनडीए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करती है तो एक बार फिर नीतीश कुमार के पलटी मारने की भी संभावना को नकारा नहीं जा सकता। अब देखना होगा की भाजपा चुनाव के पूर्व नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करती है या नहीं। वैसे भाजपा के कई नेता इस पक्ष में बताये जाते हैं की भाजपा को अपने स्टैंड पर कायम रहना चाहिए और सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लडऩा चाहिए।
यदि इससे नाराज होकर नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए का साथ छोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन में जाते हैं तो उन्हें जाने दिया जाये इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा और भाजपा बिहार में अपने अन्य सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल हो जायगी। बहरहाल आने वाले कुछ दिनों में बिहार की स्थिति स्पष्ट होगी और यह पता चलेगा कि वहां क्या समीकरण बनता है।