Editorial: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अगले साल होने जा रहे हैं। इसके ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस के हुमांयू कबीर ने अपने निर्वाचन क्षेत्र मुर्शीदाबाद में अपनी जमीन पर बाबरी मस्जिद बनाने का ऐलान कर बंगाल की सियासत में तूफान खड़ा कर दिया। नतीजतन ममता बनर्जी ने हुमांयू कबीर को पार्टी से बाहर कर दिया। इसके बाद भी हुमांयू कबीर ने अपने पूर्व घोषणा के अनुसार 6 दिसंबर को मुर्शीदाबाद में बाबरी मस्जिद की आधारशीला रख दी जिसमें लाखों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग बाबरी मजिस्द निर्माण के लिए ईंट लेकर पहुंचे थे।
वहां बाबरी मस्जिद का निर्माण रोकने के लिए याचिका लगाई थी जिसे कोलकाता हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था साथ बंगाल सरकार को निर्देश दिये थे कि शिलन्यास के समय किसी तरह की कोई अप्रिय स्थिति न बने इसके लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतेजाम किये जाये। हुमांयू कबीर ने बाबरी मजिस्द का शिलन्यास करने के बाद ऐलान किया है कि अब वे नई राजनीतिक पार्टी बनाएंगे और असदूद्दीन ओवैसी की पार्टी से गठबंधन करके बंगाल विधानसभा का चुनाव लडेंगे। जाहिर है हुमायूं कबीर बंगाल के लिए दूसरे ओवैसी साबित होंगे। ममता बनर्जी बंगाल में अब तक मुस्लिम वोटों की बदौलत ही सरकार बनाती रही है। किन्तु अब हुमांयू कबीर के बागी हो जाने के बाद बंगाल में उनके सुरक्षित वोट बैंक में सेंध लग जाएगी।
तुष्टीकरण की राजनीति के चलते वे पहले ही हिन्दुओं का विश्वास खो चुकी है और अब मुस्लिम वोट बैंक भी उनके हाथ से निकल गया तो उनके लिए बंगाल में इस बार फिर से खेला करना असंभव की हद तक कठिन काम साबित होगा। बंगाल में बाबरी मस्जिद के नींव पडऩे के बाद हिन्दुवादी संगठनों ने कोलकाता में पांच लाख की भीड़ जुटाकर सामुहिक पाठ किया जिसमें आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री और बाबा रामदेव सहित सैंकड़ो की संख्या में शाधु संत भी पहुंचे थे विश्व हिन्दु परिषद और बजरंग दल द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में पांच लाख से भी ज्यादा लोगों की भीड़ जुटी थी जो ममता ममता बनर्जी के लिए खतरे की घंटी है।
अब बंगाल में बाबरी मस्जिद को लेकर सियासत होगी और चुनाव तक माहौल गर्माया रहेगा। इससे ममता बनर्जी की राह जितनी कठिन होगी भाजपा के लिए उतनी ही राह आसान हो जाएगी। कुल मिलाकर हुमायंू कबीर का बंगाल के लिए दूसरा ओवैसी बनना ममता बनर्जी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।

