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Hate Speech : हेट स्पीच को छोड़, मधुर वाणी का उपयोग करें

Hate Speech: Use sweet speech instead of hate speech.

Hate Speech

किशन भावनानी। Hate Speech : वैश्विक स्तरपर भारत आध्यात्मिक सो: संस्कारों आस्था मान्यताओं पर झुकाव अधिक रहा है अनेक जाति धर्म का एक माला के रूप में पिरोया भारतीय समाज खूबसूरती से अपने-अपने जाति धर्म की आध्यात्मिकता में अधिक विश्वास रखता है जो अनेकता में एकता का प्रतीक है। भारत में यह प्रथा सदियों से चली आई है फिर न जाने क्या हुआ के जाति धर्म रूपी असर दैत्य का जहरीला पंजा पड़ा जिसने विभिन्न जाति धर्म को बहलाया जरूर पर तोड़ नहीं सका और हम सब एक हैं का स्वर एक साथ निकला और हम बोल पड़े मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा की सोच कायम है।

पर हमें यह मार्गदर्शन और संस्कार युवाओं तक भी पहुंचाना जरूरी है क्योंकि यह हमारे भविष्य हैं परंतु हम अभी युवाओं के आचरण में अपेक्षाकृत मिठास को कम होते देख रहे हैं इसका मुख्य कारण तेजी से बढ़ रहे हेट स्पीच और अनैतिक आचरण की हवाओं से सौहार्दपूर्ण माहौल में कुछ धार्मिक कट्टरपंथी राजनीतिक एंगल दुष्प्रचार एंगल और विदेशी ताकतों की हलचल मुख्य कारण हो सकते हैं जिसे रोकने के लिए बड़े बुजुर्गों को आगे आना होगा और इन विकारों को रोकने के लिए आध्यात्मिकता की ओर मोड़कर संस्कारों में डालना जरूरी है अन्यथा कानूनी कार्यवाही न्यायालय ने सजा सटीक उपाय है ही परंतु इसकी नौबत ना आए इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से इस विषय पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

साथियों बात अगर हम हेट स्पीच के कानूनी पहलू की करें तो पालन के भारतीय दंड संहिता में इसकी स्पष्ट परिभाषा नहीं है परंतु यह अन्य उन शब्दों को संदर्भित करता है जिनका इरादा किसी विशेष समूह के प्रति घृणा पैदा करना है यह समूह एक समुदाय धर्म जाति विशेष हो सकता है इसके परिणाम स्वरूप हिंसा की संभावना होती है पुलिस अनुसंधान विकास वीरों ने भी हेट स्पीच की परिभाषा विकसित की है।

भारत के विधि आयोग ने भी अपनी 267 भी रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से जाति नस्लें लिंग योन धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ धरना को उकसाने के रूप में देखा जाता है आईपीसी में हेट स्पीच की धारा 153 ए, 153ड्ढ, 295,505,152 52 में दंडनीय अपराध है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में भी व्यक्ति को चुनाव लडऩे से रोक सकती है। साथियों बात अगर हम हेट स्पीच और अनैतिक आचरण को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो,संसार में मानव परमात्मा की प्रमुख व खूबसूरत कलाकृति है तथा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

मानव होने के नाते हम कुछ ऐसी मानवीय संवेदनाओं, आवश्यकताओं, अपेक्षाओं व धारणाओं के सूत्र में बंधे हुए हैं, जिसका कोई कानूनी, शास्त्रीय, धार्मिक या जातीय प्रतिबंध न होते हुए भी हमारे निजी, सामाजिक, पारिवारिक और राष्ट्रीय जीवन से सीधा सरोकार है। इनका निर्वाह हमारे नैतिक दायित्व के अंर्तगत प्रमुख है। किसी लाभ, स्वार्थ या प्रतिफल की इच्छा के बिना दूसरों की मंगल कामना, लोक कल्याण, सबके हित में योगदान करना भी हमारे दायित्व में आता है।

साथियों आज की युवा पीढ़ी को भावी व चरित्रवान बनाना तथा पौराणिक ज्ञान से दनुप्रमाणित होकर आधुनिक तकनीक और विज्ञान में भी किसी से पीछे न रहने की पद्धति का अनोखा संगम बच्चों के भविष्य को एक स्वर्णिम राह की ओर ले जाएगा। अगर सभी अच्छे बन जाएंगे तो निश्चित रूप से समस्त समाज भी अच्छा हो जाएगा। शिक्षक के रूप में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिष्यों को सभ्य एवं शिक्षित बनाना है न केवल साक्षर। शिक्षक होने के नाते हमारा दायित्व हो जाता है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों को भी भरें और संस्कारों को लेकर उनके साथ रोजाना बातचीत की जाए।

रोजाना अगर संस्कार की बात होगी तो बच्चे स्वयं ही नैतिक मूल्य व संस्कारों के प्रति सजग रहेंगे जिससे हमारा दायित्व भी पूरा हो जाएगा। आज के परिदृश्य में नैतिकता की लकीर खोती जा रही है जिसकेपरिणामस्वरूप असंगठित व्यक्ति बनते हैं, जिसका परिणाम सामाजिक अव्यवस्था के रूप में प्रकट होता है।युवाओं में नैतिक भावना का अभाव चिंता का कारण है। क्योंकि ये किशोर अपने आप को अनैतिक आचरण में लिप्त कर रहे हैं जो न केवल क्षुद्र हो सकता है बल्कि गंभीर भी हो सकता है। इस चिंता के लिए बहुत सारे कारक हो सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत कारकों में नैतिकता की कमी की अधिक भूमिका होती हैयह उनकी सभी इच्छाएं हैं जिनमें नैतिक पहलुओं का अभाव है।

किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति देखी जा सकती है। इस तथ्य के बावजूद कि वयस्कों के साथ युवाओं के जुड़ाव के प्रमाण बढ़ रहे हैं। यह भी माना जाता है कि अपराध व्यक्तिगत कुसमायोजन का उत्पाद है अर्थात नैतिक भावना का नुकसान है। साथियों विद्यार्थियों में नैतिकता, अच्छे विचारों, शिष्टाचार, आदर, विनम्रता, सहनशीलता का गुण उत्पन्न होने चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रेरणादायी पुस्तकों को पढऩे के लिए प्रेरित करना जरूरी है। देश के महान पुरुषों की जीवनियां, अपने देश के पवित्र ग्रंथों, वेदों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करने और अपने अच्छे आचरण व स्नेह के कारण उनके अंदर नैतिकता पैदा की जा सकती है। आदमी के अंदर तीन गुण विद्यमान होते हैं सत, रज, तम। हमें सतोगुण को बढ़ाने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए।

सतोगुण का विकास अष्टांग योग के यम, नियम की पालना करने से होता है। सतोगुण वेदों, महान लोगों की जीवनी, सत्संग, भागवत इत्यादि का श्रवण करने से आते हैं। आज की युवा पीढ़ी को इस तरह की पुस्तकों का स्वध्याय करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। विद्यालय में जब बच्चा प्रवेश लेता है तो उस समय वह शून्य होता है। यह उत्तरदायित्व शिक्षक का बन जाता है कि उसे एक अच्छा इंसान बनाया जाए। उसके अंदर गुणों का विकास किया जाए, उसे अच्छे-बुरे की समझ हो।

साथियों इसके साथ ही जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले हमारे नेतृत्व कर्ताओं को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि हेट स्पीच अनैतिक आचरण से जनता का बचाव करें नकि स्वयं ही इन विकारों का भागी बन कर कानूनी धाराओं में फंस कर जेल के द्वार जा पहुंचे इसलिए हम सबका आध्यात्मिकता की राह पर चलकर ज्ञानरूपी मंत्र को ग्रहण करना जरूरी है। अत: अगर हम उपरोक्त पूरे वरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि, आओ हेट स्पीच को छोड़, मधुर वाणी का उपयोग करें।आध्यात्मिकता से जुड़कर हेट स्पीच (Hate Speech) अनैतिक आचरण को दूर भगाएं। पैतृक संस्कारों के साथ आध्यात्मिक सोच विकसित करना जीवन को सकारात्मक बनाने में सहायक।

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