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राजभवन को जनभवन में बदला राज्यपाल अनुसुइया उइके ने..

Governor Anusuiya Uikey converted Raj Bhavan into Jan Bhavan

Rajyapal

रायपुर/नवप्रदेश। छत्तीसगढ़ की पहली महिला राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके का मानना है कि राज्यपाल और राजभवन संवैधानिक बाध्यता की बेडिय़ों में भले ही जकड़ा हो लेकिन समाज के अन्तिम व्यक्ति को राहत देने के लिए यदि कुछ पर पराओं में बदलाव किया जाए तो कोई हर्ज नहीं होना चाहिए और कुछ इसी तरह का प्रयास कर उन्होंने राज्य निर्माण के इतिहास में पहली बार राजभवन को जनता के लिए खोला और इन दो सालों में सैकड़ों सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संगठनों के अलावा व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात कर उनसे राज्य के हालात को जाना कुछ इसी तरह गंभीर मसलों और सरकार के कामकाज, टकराव को लेकर दैनिक नवप्रदेश समाचार पत्र समूह के प्रधान संपादक यशवंत धोटे ने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश

प्र. छग का राजभवन आपने जनता के लिए खोल दिया है क्या संदेश देना चाह रही है आप ?

उ. आमतौर पर लोगों में यह धारणा रहती हैं कि राजभवन या राज्यपाल का काम सवैंधानिक होता है जैसे मंत्रीमंडल को शपथ दिलाना, विधानसभा में अपनी ही सरकार के कामकाज का अभिभाषण पढऩा आदि। लेकिन ऐसा नही हैं संवैधानिक काम के साथ राज्यपाल की सामाजिक जिम्मेदारी भी होती है कि राज्य और केन्द्र सरकार की योजनाओं का लाभ समाज के अन्तिम व्यक्ति को मिल रहा है या नहीं यह देखना। इसके लिए मुझे लोगों से मिलना होगा। चूंकि राज्यपाल सरकार के संरक्षक और संवैधानिक मुखिया होते हैं। ऐसे नीतिगत मामलों में सरकार का ध्यानाकर्षण जरूरी हो जाता है, जो सीधे जनता से जुड़े मुद्दे हो। मसलन राज्य की 32 फीसदी आदिवासी आबादी के लिए पांचवीं अनुसूची एक ऐसा मसला है जो सीधे आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक न्याय और संसाधनों के अधिकारों से जुड़ा हंै और राज्यपाल की संवैधानिक, सामाजिक जिम्मेदारी भी है कि इनके अधिकारों की रक्षा करे। लेकिन जब तक उन लोगों से आप मिलेगें नहीं धरातल की हकीकत कैसे पता चलेगी। इसलिए बस्तर से लेकर सरगुजा तक के आम लोगों के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए। महामहिम का सिस्टम खत्म करना जरूरी था। दो साल से ज्यादा के कार्यकाल में राज्य भर के सैकड़ों सामाजिक संगठनों और व्यक्तिगत तौर पर जरूरतमन्दों से मुलाकात के बाद पता चला कि राज्यपाल को संवैधानिक के साथ सामाजिक जिम्मेदारी का भी अहसास होना चाहिए। इसलिये मैंने आम आदमी के लिये भी राजभवन के दरवाजे खोल दिए हैं कोई भी मुझसे मिल सकता है।

प्र. केन्द्र व राज्य में अलग- अलग पार्टी की सरकारों के बीच समन्वय बनाने में किस तरह की दिक्कतें आ रही है?

उ. राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रशासन को निष्पक्षता की कसौटी पर कसा जाना चाहिए। सरकार किसी भी विचारधारा के दल की हो लोगों के विश्वास पर खरी उतरनी चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ राज्य की जनता को इसलिए नहीं मिल पाता है कि केन्द्र व राज्य में अलग-अलग पार्टी की सरकारें होती हैं। सबके अपने राजनीतिक निहितार्थ होते है। ऐसी स्थिति में समन्वय बनाकर योजनाओं के क्रियान्वयन करवाना राज्यपाल का काम होता है। मेरा प्रयास भी कुछ ऐसा ही रहता है कि सकारात्मक प्रयासों के साथ केन्द्र और राज्य के बीच समन्वय स्थापित करे। वैसे अभी तक ऐसा कोई मौका मुझे याद नहीं आ रहा है कि समन्वय में दिक्कत आई हो।

Rajyapal

प्र. क्या कभी दो साल में ऐसा लगा कि राज्य की सत्ता और राजभवन में किसी मसले को लेकर टकराव की स्थिति बनी हो?

उ. कई बार ऐसा होता है कि सरकार राजभवन की संवैधानिक बाध्यता से परे फैसले चाहती है लेकिन मेरी संवैधानिक बाध्यता मुझे रोकती है और मीडिया इसे राजभवन और सरकार का टकराव बताता है। मेरी ओर से कभी भी टकराव की स्थिति नहीं रही यह मेरी अपनी सरकार है इससे मैं क्यों टकराउंगी? विश्व विद्यालय संशोधन विधेयक बिल पर मेरे हस्ताक्षर नहीं करने के कारण मीडिया में टकराव की खबरें चली जो दुर्भाग्यजनक है। जो कानून केंद्र सरकार बनाती उसमें हम कैसे संशोधन कर सकते है। विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिशों के बाहर सरकार को जाने की जरूरत नहीं है। इसी तरह कृषि कानून भी है जो कानून केंद्र की सरकार ने पास किए है उसमे राज्य कैसे अपनी सुविधानुसार संशोधन कर सकता है।

प्र. आप प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल होने के नाते प्रदेश में महिलाओं की स्थिति को किस रूप में देखती है?

उ. राज्यपाल के रूप में तो मंै अभी इस छत्तीसगढ़ में हूं लेकिन राजनीतिक तौर पर मैं अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य की हैसियत से छत्तीसगढ़ की महिलाओं से जुड़ी रही हंू। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल दन्तेवाड़ा, बीजापुर और सरगुजा जैसे क्षेत्रों में मेरा आवागमन रहा है फिर भी राज्यपाल बनकर आने के बाद पिछले दो साल से मंै देख रही हंू कि छत्तीसगढ़ में महिलाओं की साक्षरता से लेकर सशक्तिकरण की दिशा में अच्छा काम हुआ है। फिर वह चाहे राजनांदगांव की पद्मश्री फूलबासन बाई हो या पंडवानी गायिका तीजन बाई हो इन महिलाओं ने देश और दुनिया में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया है जो हम सब के लिए गर्व की बात है। हर क्षेत्र में लड़किया आगे आ रही है हमे उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

प्र. विश्व विदयालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के दरमियान विचारधाराओं को लेकर राजभवन और सरकार के टकराव सामने आए थे वो क्या अब सब सामान्य हो गया है?

उ. दरअसल ये नियुक्तियां सरकार और राजभवन के समन्वय से होती है जैसे दुर्ग विश्व विद्यालय, ट्रिपल आईटी और खैरागढ़ संगीत विश्व विद्यालय के कुलपतियों की नियुक्ति में किसी तरह की कोई दिक्कतें नहीं आई लेकिन कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता विश्व विद्यालय के कुलपति की बल्देव भाई शर्मा की नियुक्ति राजभवन ने मेरिट के आधार पर की जिसको लेकर सरकार को आपत्ति थी लेकिन अब सब सामान्य है। इसी तरह पंंिडत सुन्दरलाल शर्मा विश्वविद्यालय के सीटिंग कुलपति को ही नियमित किया गया। दरअसल राजभवन ने सरकार से नाम मांगे लेकिन सरकार ने कुछ ऐसे नाम दिए जिसे राजभवन योग्य नहीं समझता था हमने बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की लेकिन जब सरकार ने दूसरे नाम नहीं दिए तो जो मेरिट के आधार पर निष्पक्ष भाव से नियुक्तियां कर दी गई। इस मामले को लेकर अब सरकार से कोई टकराव नहीं है।

प्र. आप विश्व विद्यालयों की कुलाधिपति होने के नाते राज्य में मौजूदा हालात में उच्च शिक्षा के बारे में क्या सोचती है?

उ. उच्च शिक्षा के मामले में मेरा जोर रिसर्च पर है। गुणवत्ता के साथ नए अनुसंधान ऐसे हो कि हम आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ नया कर सके। हाल ही में मैंने विश्व विद्यालयों के कुलपतियों को एक खुला पत्र लिखा जिसमें उपरोक्त बातो पर विशेष जोर देने कहा है अभी हमारे राज्य का कोई भी विश्वविद्यालय 1500 की श्रेणी में शामिल नहीं है। हालांकि इसके लिए हमें मेहनत करनी होगी। उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल से मेरी बात हुई है और इस पर वे काफी काम कर रहे हैं। निकट भविष्य में छत्तीसगढ़ अच्छा काम करेगा यह विश्वास मंै दिला सकती हूं।

प्र. सरकार के कामकाज और योजनाओं को लेकर क्या सोचती है आप?

उ. सरकार की गोबर खरीदी वाली गोधन न्याय योजना अच्छी है। उसी तरह कृषि विभाग द्वारा बनाए जा रहे गौठान योजना भी अच्छी है। इन सारी योजनाओं को धरातल पर उतारने की जरूरत है जिसके लिए सरकार प्रयास कर रही है और सरकार के प्रयास प्रशंसनीय है। सरकार का एक साल कोरोना काल में निकल गया अभी जिस गति से काम हो रहा है उससे लगता है कि लोगों को इन योजनाओं का लाभ मिलेगा।

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