किसानों (Farmers) को बिचौलियों से आजादी दिलाकर (Freedom from middlemen) उन्हे उनकी फसल का वाजिब दाम (Reasonable price for the crop) दिलाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने संसद में कृषि से जुड़े तीन विधेयकों को पारित कराया है। इन विधेयकों पर चर्चा के दौरान संसद में भी विपक्ष ने विरोध जताया था और हंगामा किया था।
राज्य सभा में तो इन कृषि बिलों के खिलाफ अभूतपूर्व हंगामा हुआ था जिसके चलते आठ विपक्षी सांसदों के खिलाफ संसद सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबन की कार्यवाही की गई है। अब इस बिल के खिलाफ पंजाब के किसान आंदोलित हो गए है, उन्होने चक्काजाम से लेकर रेल रोकों आंदोलन तक शुरू कर दिया है।
अन्य राज्यों में भी किसान आंदोलन की राह पर चल पड़े है, जाहिर है इन किसानों को विपक्ष आंदोलन के लिए उकसा रहा है और सोशल मीडिया के माध्यम से किसानों को भड़काने की कोशिश की जा रही है ताकि वे वोटों की फसल तैयार कर सकें।
एक ओर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर किसानों को समझा रहे है कि यह बिल किसानों के हित में है क्योंकि उन्हें बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी, अब किसान अपनी फसल की कीमत खुद तय करेंगे और अपनी फसल कृषि उपज मंडी के अलावा भी कही भी बेच सकेंगे और उन्हे इसका तुरंत भुगतान प्राप्त होगा।
वहीं दूसरी ओर विपक्ष किसानों के बीच यह भ्रम फैला रहा है कि कृषि उपज मंडी बंद हो जाएगी, एनएसटी भी खत्म हो जाएगी, किसानों की जमीन चली जाएगी और किसान कर्ज के जाल में फंस जाएगा। इस भं्राती को दूर किया जाना चाहिए यह सरकार का दायित्व है कि वह किसानों के भ्रम को दूर करें और उन्हे यह विश्वास दिलाएं कि ये बिल किसानों के हित में है तभी किसान आंदोलन का रास्ता छोड़ेंगे।
दरअसल किसानों को आंदालित करने के पीछे उन बिचौलियों का बड़ा हाथ है जिनका धंधा अब चौपट हो जाएगा, देश भर में फैला आढ़तियों का रैकेट टूट जाएगा। यही वजह है कि ये बिचौलिए भी किसानों को बरगलाने का काम कर रहे है।
प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी मोदी सरकार को घेरने के लिए इन विधेयकों का विरोध कर रही है जबकि कांग्रेस पार्र्टीं की जब केन्द्र में सरकार थी तो २०१३ में वह भी यह विधेयक लाना चाह रही थी लेकिन सहयोगी दलों के विरोध के चलते वह ये विधेयक नहीं ला पाई।