– अमित के लिए वकालत का हुनर दिखाने का समय शुरू होता है अब…
यशवंत धोटे
रायपुर। अमित जोगी (amit jogi) चुनाव लड़ पाऐंगे या नहीं ये तो मरवाही उपचुनाव के नामांकनों की जांच के दिन पता चलेगा लेकिन अमित को अपनी वकालत का हुनर दिखाने का इससे अच्छा अवसर शायद ही मिले। फिर भी उनका हुनर दिखाने का समय शुरू होता है अब…।
दरअसल अमित जोगी (amit jogi) के सामने खड़े इस संकट को समझने के लिए हम अपने पाठकों को थोड़ा अतीत में लेकर चलते है। जून 2014 में अन्तागढ़ विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस आलाकमान से हुई रायशुमारी के बाद मन्तूराम पवार को प्रत्याशी घोषित किया।
लेकिन सत्ता के सरंक्षण में हुए दबे छुपे इस राजनीतिक खेल में ऐन वक्त पर पवार ने नाम वापस ले लिया। नए राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी उपचुनाव में कांग्रेस का प्रत्याशी ही नहीं था। इस चुनाव में भाजपा के भोजराज नाग निर्दलीय रूपधर पुड़ो से 51 हजार वोट से चुनाव जीत गए।
लेकिन इस खेल का पर्दाफाश दो साल बाद हुआ। जिसके मुताबिक कांग्रेस में रहते हुए अमित जोगी (amit jogi) ने भाजपा की सत्ता के साथ मिलकर इसलिए मन्तूराम पवार को बिठाया कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे भूपेश बघेल को आलाकमान के सामने नीचा दिखाया जा सके। जो भी इस कांड के नायक, खलनायक रहे सबकी आडियो रिकार्डिंग वायरल हुई।
ये मामला भी न्यायालय में तारीख पे तारीख के गोते खा रहा है। और अमित की वकालत का हुनर इसमें भी काम कर रहा है। बहरहाल इस प्रकरण के बाद कांग्रेस में जोगी परिवार के राजनीतिक क्षरण की शुरूआत हुई। जनता कांग्रेस जोगी नाम से नई पार्टी बनी। 2018 के चुनावों में परिवार के दो लोग चुनाव जीते और दो साल बाद आज मरवाही में फिर इसलिए उपचुनाव हो रहे हैं कि अजीत जोगी के निधन से सीट खाली हुई है।
अब अमित जोगी (amit jogi) बार-बार यह आरोप लगा रहे हैं कि सरकार उन्हें चुनाव लडऩे से रोक रही है। दरअसल सत्ता के चरित्र को अमित जोगी से बेहतर कौन जान सकता है? उन्हे ऐसा क्यों लग रहा है कि अपनी वकालत का हुनर दिखाने के बावजूद वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। क्योंकि परोक्ष-अपरोक्ष रूप से उनका सामना ऐसे लोगों से है जो जोगी की सत्ता चरित्र के भुक्तभोगी रहे हैं इसलिए अन्तागढ़ का खेल दबे छुपे था और ये खेल सरे आम डंके की चोट पे हो रहा है।
विरासत में मिली तीन साल सरकार चला चुके जोगी ने कांग्रेस को उस मुकाम पर लाकर खड़ा किया था कि कांंग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार बनने के लिए 15 साल लगे। अब आते हैं अमित या अजीत जोगी के जाति प्रमाण पत्र के एपीसोड पर। सरकारी दस्तावेजों, न्यायालयीन निर्देशों और सत्ता सरंक्षण के मकडज़ाल में उलझे इस जाति प्रकरण को लेकर सामाजिक न्याय के पैरोकार मानते हैं कि जोगी परिवार लम्बे समय से असल आदिवासी का हक छीन रहा है।
अजीत जोगी का जाति प्रमाण पत्र राज्य स्तरीय छानबीन समिति निरस्त कर चुकी है और मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। जन्म स्थान से लेकर जाति के विवाद तक में उलझे अमित (amit jogi) का मामला अभी निपटा भी नहीं था कि उनकी पत्नी ऋचा जोगी के लिए भी जाति प्रमाण पत्र बना लिया गया हालांकि उस प्रमाण पत्र को भी जिला स्तरीय छानबीन समिति ने निलम्बित कर दिया है।
लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि क्या अमित (amit jogi) अपने पिता की सीट पर चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं ? इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है जोगी की जाति के जाल में पिछले 20 साल से उलझी कांग्रेस सत्ता में आने के बावजूद यह क्यों नहीं सुनिश्चित कर पाई कि जाति के मसले का पटाक्षेप किया जाय। यदि अमित का नांमांकन रद्द हुआ तो न्यायालयीन पेंच में फंस सकता है मरवाही का उपचुनाव।