Election Commission’s clarification: नई दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि वे इसी साल सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। इसलिए यह उनकी आखरी प्रेस कांफ्रेन्स है। उन्होंने कहा कि अपनी आखरी पत्रकार वार्ता में वे राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर देना अपना दायित्व समझते हैं उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से लेकर नई दिल्ली विधानसभा चुनाव तक विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा ईवीएम के साथ छेड़छाड़ को लेकर जो आरोप लगाए गये थे इस बारे में उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि ईवीएम के साथ छेड़छाड की आशंका निर्मूल है।
यह बात खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी मानी है कि ईवीएम हैक नहीं की जा सकती। इसलिए ईवीएम को लेकर श्ंाका जताना उचित नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मतदान के पहले राजनीतिक पार्टियों के ऐजेंटो के सामने ही ईवीएम सील की जाती है और मतदान के बाद भी एजेंटो के समाने ही ईवीएम सील होती है।
ऐसे में जबकि मदतान की पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती जाती है तो ईवीएम में अवैध वोट की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। यह बात चुनाव आयोग पहले भी स्पष्ट करता रहा है और उसने तो बकायदा राजनीतिक पार्टियों को यह चुनौती भी दी थी कि वे ईवीएम को हैक करके बताए। किन्तु किसी भी राजनीतिक पार्टी ने चुनाव आयोग के चैलेन्ज को स्वीकार नहीं किया था।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि उन्हें यह सुनकर बहुत दुख होता है जब लोग ईवीएम पर उंगली उठाते हैं। जबकि चुनाव आयोग पूरी प्रक्रिया ही पारदर्शी है। किन्तु इसे लेकर सवाल उठाये जाते है तो उनका जवाब देना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी बनती है। हम हर सवाल को गंभीरता से लेते हैं।
राजीव कुमार ने सायराना अंदाज में कहा कि सब सवाल अहमियत रखते हैं इनका जवाब तो बनता है पहले कलम बंध जवाब देते रहे आज तो रूबरू भी बनता है क्या पता हम कल हो न हो आज जबाव तो बनता है। उन्होंने वोटरलिस्ट में हेरफेर के आरोप को भी सिरे से खारिज कर दिया। गौरतलब है कि नई दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने बड़े पैमाने पर उनके समर्थक वोटरों के नाम वोटरलिस्ट से काटे जाने का आरोप लगाया था और चुनाव आयोग से इसकी शिकायत की थी।
इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने स्पष्ट किया कि वोटरलिस्ट में नाम जोडऩे और नाम हटाने की एक निश्चित प्रक्रिया है और चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशा निर्देशों के मुताबिक इस प्रक्रिया का सख्तीपूर्वक पालन किया जाता है। फार्म 7 दाखिल करना होता है इतना नहीं बल्कि किसी भी वोटर का वोटरलिस्ट से नाम हटाने की प्रक्रिया में बूथ लेबल आफिसर और पर्यक्षेकों के अलावा अन्य अधिकारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों के मुताबिक सत्यापन कराया जाता है।
ऐसे में वोटरलिस्ट से दुर्भावनापूर्वक नाम हटाये जाने का आरोप निराधार है। बहरहाल मुख्य चुनाव आयुक्त के इस स्पष्टीकरण के बाद अब चुनाव में हारने वाली राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि वे अपनी हार का ठिकरा ईवीएम पर या चुनाव आयोग पर फोडऩा बंद कर दें। भारत में चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और ईवीएम की विश्वसनीयता पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग चुकी है। इसके बाद अब तो कायदे से इस विवाद का पटोक्षेप हो जाना चाहिए।