प्रेम शर्मा। Election Campaign : हमें आपकों और सरकार को याद ही होगा कि 18 मार्च 2020 में ऐसी स्थिति थी कि देश में कहीं भी इक्का-दुक्का कोरोना मामला भी सामने आ जाता था तो क्षेत्र सन्नाटा पसर जाता था। तब लोगों में इतना खौफ था कि बिना मास्क और सैनिटाइजर के कोई घर से बाहर नहीं निकल रहा था। विभिन्न राज्यों में परिवहन सेवाएं बंद कर दी गई थी। संस्थानों ने वर्क फ्रॉम होम मोड में काम करना शुरू कर दिया था। किंतु आज यानी 18 मार्च 2021 में स्थिति पूरी तरह बदल गई थी, एक दिन में ही 35871 कोरोना संक्रमितों की पुष्टि होने पर भी स्कूल, संस्थान, मॉल और सिनेमाघर इत्यादि सब खुले हुए थे, लोग बेखौफ मास्क के बिना सड़कों पर घूम रहे थें।
उसी दरम्यान पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु,केरल और पुडुचेरी में चुनाव प्रचार रैलियों के बाद जो कुछ हुआ हम सबने देखा था। क्या कोविड प्रोटोकॉल का पालन करवाना चुनाव आयोग (Election Campaign) की जिम्मेदारी नहीं थी ? क्या इन हालात से बेहतर तरीके से निबटा जा सकता था ? ऐसे कई सवाल लगातार उठे थे और चुनाव आयोग ने रैलियों पर तब जाकर रोक लगाई, जब भारी आलोचना के बाद बीजेपी ने अपना चुनाव प्रचार बंद करने का ऐलान कर दिया। यही नही 27 अप्रैल को मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि भारत का चुनाव आयोग देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार है और इसके अधिकारियों पर कोविड-19 के मानकों का पालन किए बिना राजनीतिक दलों को बड़े पैमाने पर रैलियों की अनुमति देने के लिए संभवत: हत्या का मुकघ्दमा चलाया जाना चाहिए।
अब एक बार फिर उसी स्थिति से देश गुजर रहा है।भारत में ओमिक्रॉन अब काफी तेजी से फैलने लगा है। इसके साथ ही तीसरी लहर का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ओमिक्रॉन अब तक 17 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में फैल चुका है। देश में अब तक कुल 452 मरीज मिल चुके हैं। बढ़ते मामलों को देखते हुए देश के कई राज्यों में क्रिसमस और नए साल की पार्टियों पर प्रतिबंध लगाया। कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन भी भयावह रूप लेता जा रहा है। इसके मद्देनजर 25 दिसंबर से लेकर नए साल तक सरकारों ने कड़ी सख्ती बरतनी शुरू कर दी है।ताजा आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र 110 संक्रमितों के साथ पहले स्थान पर है वहीं दूसरे स्थान पर दिल्ली है जहां कुल 79 मरीज हैं।
गुजरात(43), तेलंगाना(38), केरल (38), तमिलनाडु(34), कर्नाटक(38),राजस्थान(43), ओडिशा(4), हरियाणा(4), प. बंगाल(3), जम्मी-कश्मीर(3), उत्तर प्रदेश(2) चंडीगढ़(1), लद्दाख(1), उत्तराखंड में (1)मामले हैं। क्या ऐसे में एक बार फिर जनमानस के जीवन की अनदेखी करते हुए चुनाव कराये जाएगें ? ओमीक्रोन की छाया सामान्य जनजीवन और चुनावों पर पडऩे लगी है। उत्तर प्रदेश में रात्रिकालीन कफ्र्यू की वापसी हो गई है और अब आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भी संशय की स्थिति बन गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से आगामी विधानसभा चुनावों को स्थगित करनेए चुनावी रैलियों और सभाओं को रोकने का आग्रह किया है।
इसके बाद देश के मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र ने कहा है कि चुनाव के संबंध में अंतिम निर्णय अगले सप्ताह लिया जाएगा। दिसंबर बीतने को है और अगर फरवरी में चुनाव होने हैं, तो तिथियों की घोषणा दस दिन के अंदर ही हो जानी चाहिए। पिछले विधानसभा चुनाव 2017 की घोषणा जनवरी के पहले सप्ताह में हुई थी और उत्तर प्रदेश में मतदान का पहला दौर 11 फरवरी को संपन्न हुआ था। तब सात चरणों में मतदान के बाद 11 मार्च को मतगणना हुई थी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में अगर चुनाव को कुछ समय के लिए टालने का फैसला होता हैए तो स्वाभाविक ही बाकी चार राज्यों में भी चुनाव की तिथियां आगे सरकेंगी।
ऐसी स्थिति में पॉच राज्यों क्रमश: उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, उत्तरखण्ड और मणिपुर में चुनाव आयोग की अपने स्तर पर पूरी तैयारी है। एक महीने पहले तक ओमीक्रोन जैसा कोई तनाव नहीं था, लेकिन अब जिस तरह से चिंता जताई जा रही है, उस पर गौर करना ही चाहिए। अदालत ने भी आग्रह किया है, लेकिन इसके बावजूद अगर चुनाव कराए जाते हैं, तो यह पूरी तरह से चुनाव आयोग और सरकार की जिम्मेदारी पर होंगे। यहॉ सवाल यह भी खड़ा हो रहा कि अगर न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के संदर्भ यह सलाह दी है तो इसे उत्तर प्रदेश तक सीमित नही रखा जाना चाहिए। क्योकि यातायात व्यवस्था जारी है, लोगों का जमावड़ा और चुनावी रैलियॉ जारी है।
पार्टियों के समर्थक जान की बॉजी लगाकर रैलियों में शामिल हो रहे है। ओमिक्रॉन के बढ़ती संख्या के बीच उत्तर प्रदेश में चल रही चुनावी समाए, रथ यात्राओं की भीड़ इसका प्रमाण है। ऐसे में मुख्य निर्वाचन आयुक्त का उत्तर प्रदेंश का तीन दिवसीय दौरा काफी महत्वपूर्ण है। वे जानना चाहेगे कि क्या उत्तर प्रदेश में लोग कोरोना संबंधी दिशा.निर्देशों की पालना पूरी तरह से कर रहे हैं ?् क्या प्रशासन सुरक्षित चुनाव कराने की स्थिति में है ? क्या राजनीतिक दलों का काम बिना बड़ी सभाओं के चल जाएगा ? क्योकि केंद्र सरकार भी फैसला चुनाव आयोग पर छोडऩे के पक्ष में दिखती है। क्या चुनाव आयोग अदालत के आग्रह के विरुद्ध जाएगा ? यह भी एक सवाल क्या चुनाव आयोग सिर्फ उत्तर प्रदेश के चुनाव टालेगा यह सभी उन पॉच राज्यों के चुनाव टाल देगा ?
देखा जाए तो दिल्ली में हर वयस्क को वैक्सीन की पहली खुराक दे दी गई है, जबकि उत्तर प्रदेश अभी पीछे है। वैसे ओमीक्रोन दोनों टीका लेने वालों की सुरक्षा में भी सेंध लगा दे रहा है। भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों का अनुमान है, भारत में फरवरी में संक्रमण बढ़ सकता है। यह डेल्टा से भी कई गुना ज्यादा तेजी से फैलता है। ऐसे में न्यायालय का यह कहना कि यदि संभव होए तो चुनाव स्थगित करने पर विचार करें, क्योंकि अगर हम जिंदा रहेए तो रैलियां और बैठकें बाद में भी हो सकती हैं।
बहरहाल अगर हम कोरोना के संक्रमण काल और ऐतिहासिक लॉकडाउन, पालयन को याद करे तो यह ठीक होगा कि उसे हाल फिलहाल न्यायालय की सलाह को स्वीकार करने मेें कोई गुरेज नही करनी चाहिए। यही नही अगर ओमीक्रोन आक्रमक भूमिका में दिखाई पड़ रहा हो तो केन्द्र और निर्वाचन आयोग (Election Campaign) को मिलकर चुनाव तिथि अगले छह माह के लिए बढ़ाने और उक्त राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने तक पर विचार करना चाहिए।
पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान चुनाव आयोग ने कई राज्यों के पंचायत चुनाव और कई विधानसभा और लोकसभा सीटों के उपचुनावों को टाल दिया था। क्योकि धारा 57 के तहत अगर चुनाव वाली जगह पर दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा आती है तो वहां चुनाव टाला जा सकता है।