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संपादकीय : संघ प्रमुख मोहन भागवत की खरी – खरी

Editorial: Sangh chief Mohan Bhagwat's criticism

Sangh chief Mohan Bhagwat's criticism


Sangh chief Mohan Bhagwat’s criticism : लोकसभा चुनाव संपन्न होने और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार एनडीए की सरकार बन गई है। मंत्रियों का भी चयन हो गया है और उनके विभागों का वितरण भी हो चुका है। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की प्रतिक्रिया सामने आई है।

आरएसएस के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत(Mohan Bhagwat’s criticism) ने भारतीय जनता पार्टी को और विपक्ष को भी आईना दिखाया है। उनके इस बयान को लेकर अब बहस छिड़ गई है। एनडीए और आईएनडीआईए दोनों ही मोहन भागवत के कथन को अपने अपने हिसाब से परिभाषित कर रहे हैं। गौरतलब है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान मर्यादा का ख्याल न रखे जाने पर चिंता जाहिर की थी और झूठ का सहारा लेने वालों को नसीहत दी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि जो सच्चा और वास्तविक सेवक होता है।

उसमें अहंकार नहीं आता। उनके इस बयान को भाजपा नेताओं के कुछ बयानों से जोड़ कर देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के तीन चरणों के मतदान के बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा ने यह बयान दिया था कि अब भाजपा को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की कोई जरूरत नहीं रह गई है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में जब भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर थी उस समय भाजपा को आरएसएस की जरूरत पड़ती थी किन्तु अब भाजपा मजबूत हो चुकी है। इसलिए अब वह अपने फैसले खुद लेने में सक्षम हो गई है।

जेपी नड्डा के इस बयान को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने चुनाव के दौरान कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। क्योंकि इससे भाजपा को नुकसान हो सकता था। अब जबकि चुनाव हो चुके हैं और भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन गई है। अब संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat’s criticism) ने इस पर अपना बयान दिया है और भाजपा को खरी खरी सुना दी है। वैसे देखा जाए तो मोहन भागवत ने कोई गलत बात नहीं कही है।

भारतीय जनता पार्टी यदि आज सत्ता के शिखर पर पहुंची है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ही है। संघ भाजपा की मातृ संस्था है। अब अगर भाजपा अपने पैरों पर खड़ी हो गई है। तब भी उसे संघ के बारे में इस तरह का बयान नहीं बोलना चाहिए था। आज भी आरएसएस के कार्यकर्ता हर चुनाव में भाजपा के पक्ष में वातावरण बनाने का काम निस्वार्थ भाव से करते हैं।

बहरहाल मोहन भागवत की इस नसीहत से भाजपा को ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक पार्टियों को गंभीरता से लेने की जरूरत है राजनीति की शुचिता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि सभी पार्टियां झूठ और फरेब की राजनीति से तौबा करें देशहित के लिए सभी को दलगत भावना से ऊपर उठ कर काम करना चाहिए।

इसके लिए मोहन भागवत(Mohan Bhagwat’s criticism) ने आम सहमति की आवश्यकता पर जोर डाला है। उम्मीद की जानी चाहिए की मोहन भागवत की इस सीख पर कम से कम भाजपा तो ईमानदारी से अमल करेगी।

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