छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भी हमेशा की तरह इस बार भी कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला होने जा रहा है। धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ में किसान ही सत्ता की चाबी तय करते है। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करने से पहले ही किसानों का दिल जीतने के लिए मास्टर स्ट्रोक चल दिया है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया है। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस ने किसानों का कर्ज माफ करने और उन्हे बकाया बोनस देने का चुनावी वादा किया था और इन वादों पर भरोसा कर छत्तीसगढ़ के किसानों ने कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता की चाबी सौंपी थी बल्कि कांग्रेस पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत भी दिलाया था। बीते पांच सालों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने किसानों के हितों का संरक्षण करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी।
अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादे को अमलीजामा पहनाते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथा लेते ही भूपेश बघेल ने किसानों के कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया था। किसानों के बोनस की बकाया राशि को भी उन्होने किश्तों में ही सही लेकिन किसानों को देकर अपना दूसरा वादा भी निभाया और किसानों का भरोसा जीता। इस बार भी विधानसभा चुनावों में भी किसान ही राजनीति की दिशा तय करेंगे। अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मास्टर स्ट्रोक के जवाब में भाजपा किसानों के हित मेें कौन सी घोषणाएं करती है। वैसे तो कांग्रेस का घोषणा पत्र भी आना बाकी है और उसमें भी किसानों के हित में और कई घोषणाएं हो सकती है।
जब दोनों ही पार्टियों का घोषणा पत्र सामने आ जाएगा तभी पता चलेगा कि इस बार किसानों का आशिर्वाद किस पार्टी को मिलेगा। बहरहाल यह चुनाव अब चाऊंर वाले बाबा और धान वाले कका के बीच केन्द्रित होता नजर आ रहा है। २००३ में जब पहली बार डॉ रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी तब उन्होने गरीबों की चिंता करते हुए बीपीएल कार्डधारियों को एक व दो रूपए किलो की दर से चांवल उपलब्ध कराने का की अनूठी पहल की थी। जिसके चलते वे प्रदेश में चाऊंर वाले बाबा के नाम से पहचाने जाने लगे और भाजपा ने लगातार तीन चुनाव जीत कर हैट्रिक लगा दी थी।
लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में किसानों की नाराजगी के चलते भाजपा जीत का चौका लगाने से न सिर्फ चूक गई थी बल्कि उसे शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ गया था। अब भाजपा को इसकी भी भरपाई करनी होगी और अपने चुनावी घोषणा पत्र में कृषि और किसानों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी तभी वह कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने में सफल हो पाएगी। फिलहाल छत्तीसगढ़ के किसान भाजपा और कंाग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र की बेसब्री से बाट जोह रहे है।
दोनों पार्टियों के घोषणा पत्र सामने आ जाएंगे तो उनकी तुलना कर प्रदेश के किसान अपना मत तय करेंगे। सालों से सियासी केंद्र बना धान इस बार राजनीति में दाखिल होता दिख रहा है। दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर तंज कस रही है । भाजपा धान खरीदी और किसानों को लेकर सरकार पर हमलावर है। वहीं कांग्रेस भाजपा की नियत पर लगातार सवाल खड़े कर रही हैं।
अभी राज्य की 90 सीटों में से कांग्रेस के पास 71 सीटे हैं। वहीं मुख्य विपक्षी भाजपा के पास 14, जोगी कांग्रेस के पास 3 और बसपा के पास 2 विधायक हैं। हाल ही में हुए निकाय चुनावों के साथ ही 2018 के बाद हुए उपचुनावों में कांग्रेस ने बढ़त बनाई है. ऐसे में अब कांग्रेस को मात देना बीजेपी के लिए बड़ी अग्नि परीक्षा है।