Site icon Navpradesh

“डॉक्टर्स डे” विशेष : कोरोनाकाल में चिकित्सकों की साख वापस लौटी : डॉ. संजय शुक्ला

Dr. Bidhan Chandra Rai, Birthdate 1 July, whole Country, "Doctors Day",

doctor day

देश के महान चिकित्सक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री भारत रत्न स्व. डॉ. बिधानचंद्र राय (Dr. Bidhan Chandra Rai) की जन्मतिथि 1 जुलाई (Birthdate 1 July) को समूचा देश “डॉक्टर्स डे” (whole Country “Doctors Day”) यानि चिकित्सक दिवस के रूप में मनाता है। भारत में वैद्यों, हकीमों और डाक्टरों की सदियों से सामाजिक प्रतिष्ठा और गरिमा रही है लेकिन विगत  कुछ दशकों से इस पेशे की साख में काफी गिरावट आयी है व चिकित्सकों की प्रतिष्ठा को आघात भी लगा है।

DR. Sanjay Shukla

इन विसंगतियों के बीच कोरोना महामारी के हालिया दौर में यदि कतिपय प्रसंगों को परे रख दें तो भारत के चिकित्सकों ने इस आपदाकाल में अपनी सेवा भावना, काबिलियत और दक्षता का परिचय दिया है।  अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कोरोना काल के इस त्रासदी भरे दौर में चिकित्सकों की खोयी हुयी साख फिर से वापस लौटी है। कोरोना महामारी से निबटने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्रों के चिकित्सकों सहित नर्सिंग, पैरामेडिकल स्टाफ के साथ अभी भी गैर सरकारी संगठन और सामाजिक संस्थाएं निःस्वार्थ रूप से कंधे से कंधा मिलाकर जुटे हुए है।

देश में कोविड – 19 वायरस के दस्तक के शुरूआती दौर में इस वैश्विक महामारी से निबटना देश लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी, वह भी तब जब चिकित्सा वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के पास इस वायरस की संरचना, संक्रमण का स्त्रोत,  लक्षण की सटीक जानकारी नहीं थी और न ही इस महामारी की दवाई और बचाव के लिए टीका उपलब्ध था। भारत जैसे कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था अत्यंत दयनीय है खासकर ग्रामीण भारत में। वहीं दूसरी ओर निजी स्वास्थ्य सेवाएं लोगों के पहुंच से बाहर हैं। गौरतलब है कि 195 देशों के वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक के सूची में 57 वें स्थान पर है।

इस सूची में अमेरिका, इटली और अमेरिका जैसे देश अग्रणी स्थान पर हैं, हालांकि कोरोना महामारी ने इन देशों के स्वास्थ्य सेवाओं को घूँटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया है। दरअसल भारत में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं धन की कमी के साथ साथ डाॅक्टरों, नर्सिंग स्टाफ  की कमी के साथ ही बिस्तरों  व अन्य संसाधनों की अनुपलब्धता के चलते सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं बदहाली के शिकार हैं। गौरतलब है कि भारत अपनी कुल जीडीपी का 1.5 फीसदी हिस्सा खर्च करता है जिसे 2025 तक 2.5 फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा गया है जबकि देश की आबादी और गरीबी के लिहाज से यह खर्च 6 फीसदी तक करने की जरूरत है।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं का कुल खर्च जीडीपी का 3.9 फीसदी बनता है जिसमें सरकारी हिस्सेदारी महज तीस फीसदी है। विचारणीय है कि स्वास्थ्य सेवाओं के केंद्र में डाॅक्टर ही होता है लेकिन इनकी उपलब्धता के मामले में भारत की स्थिति वियतनाम और अल्जीरिया से भी खराब है। देश में 10,189 लोगों के बीच एक सरकारी डाॅक्टर है जबकि डब्ल्यूएचओ ने 1000 लोगों के बीच एक डॉक्टर की सिफारिश की है।

देश नर्सों की कमी से भी जूझ रहा है यहाँ एक हजार आबादी पर 1.7 नर्स हैं जो कि डब्ल्यूएचओ के मानक से कम है इसके मुताबिक एक हजार आबादी पर 3 नर्स होना चाहिए। एक शोध के मुताबिक भारत में लगभग 6 लाख डाॅक्टर और 20 लाख प्रशिक्षित नर्सों की दरकार है। सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों के मामले में भी देश की स्थिति संतोषजनक नहीं है, डब्ल्यूएचओ के मापदंडों के मुताबिक प्रति 10 हजार आबादी पर 50 बिस्तरों की जरूरत बतायी है जबकि देश में यह उपलब्धता 9 बिस्तर की है। कोरोना संक्रमण के गंभीरता के मद्देनजर सरकारी और निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर और आईसीयू बेड की भारी कमी है। 

        बहरहाल इन सीमित संसाधनों के बलबूते ही सरकारी और निजी स्वास्थ्य व्यवस्था पर आज कोरोना ट्रेसिंग, मैपिंग, टेस्टिंग और उपचार की जिम्मेदारी है जिनके साथ अन्य विभाग भी कंधे से कंधा मिलाकर अनवरत जुटे हुए हैं। इन जिम्मेदारियों के निर्वहन के दौरान  डाक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए अत्याधिक सावधानियों और सुरक्षा उपायों की जरूरत होती है। इन सुरक्षा उपायों में पीपीई किट, एन-95 माॅस्क, दस्ताने, शू-कवर सहित अन्य साधन शामिल हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के शुरूआती दौर में इन संसाधनों की भारी कमी और इनके गुणवत्ताहीन होने के मुद्दे पर देश में सियासत का बाजार गर्म रहा।

सियासत से बेखबर देश की  स्वास्थ्य तंत्र आभावों के बीच कोरोना के खिलाफ जंग में उतरी है।दुखदायी यह कि कोरोना के खिलाफ जारी इस जंग में लगभग 32 डाक्टरों और 10 मेडिकल स्टाफ की मौत इस संक्रमण से हुयी है तो वहीं देश के कई हिस्सों में कोरोना ट्रेसिंग के दौरान मेडिकल टीम पर स्थानीय लोगों के द्वारा पथराव और दुर्व्यवहार की घटनाएं भी हुईं है। निःसंदेह डाक्टरों और मेडिकल स्टाफ के साथ इस प्रकार की घटनाएं बेहद चिंताजनक और निंदनीय है। चिकित्सकों को “गाॅड आॉफ अर्थ” यानि धरती का भगवान कहा जाता है लेकिन समाज के एक हिस्से का यह कृत्य दुखदायी है।

बहरहाल सरकार ने इस प्रकार की अप्रिय घटनाओं का संज्ञान लेते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने के लिए कानूनी प्रावधान निश्चित किए हैं।  बहरहाल  इन परिस्थितियों के बावज़ूद कोरोना की चुनौती से निबटने में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स, मेडिकल कॉलेजों के अस्पताल, जिला अस्पताल, निजी अस्पताल से लेकर देश के शीर्षस्थ आयुर्वेद चिकित्सा संस्थाओं के मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाॅफ सरकार और समाज के उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं। कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए लागू लाकडाउन के दौरान जब निजी अस्पताल और क्लीनिक बंद थे तब सामान्य और गंभीर रोग से पीड़ित मरीजों के लिये सरकारी अस्पताल ही सहारा बने।

देश के सरकारी व गैरसरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रयासों का ही परिणाम है कि सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित देशों के वैश्विक सूची में शीर्ष चौथे पायदान पर रहने के बावजूद भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में कोरोना मरीजों के संक्रमण से मुक्त होने वालों की संख्या यानि रिकवरी रेट विकसित और अतिउन्नत स्वास्थ्य सुविधााओं वाले देशों से बहुत बेहतर है। भारत कोरोना रिकवरी रेट के मामले में वैश्विक रैंकिंग में रुस के बाद दूसरे नंबर पर है, भारत में यह दर 59.6 फीसदी जबकि अमेरिका में यह 39.05 फीसदी है।

कोरोना संक्रमण से होने वाले मौतों के मामलों में भी भारत की स्थिति अपेक्षाकृत अन्य देशों से संतोषजनक है। भारत में कोरोना संक्रमितों के आंंकड़ा 5.67 लाख को पार कर चुका है और आने वाले समय में ये आंकड़े और बढ़ेंगे। फिलहाल कोरोना काल की मियाद तय नहीं है इसलिए कोरोना भारत में कितना कहर बरपाएगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है । देश टेस्टिंग के मामले में बहुत पीछे है,कोरोना से संबंधित वर्ल्डोमीटर के मुताबिक भारत में प्रति 10 लाख आबादी पर 3, 780 टेस्ट किए जा रहे हैं ।

देश में अब तक लगभग 83 लाख टेस्ट हुए हैं जो 130 करोड़ आबादी के अनुपात में काफी कम है वह भी इस लिहाज से कि देश में कोरोना के 80 फीसदी मरीज बिना लक्षण यानि एसिम्प्टोमैटिक है। बहरहाल भारत में कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों के बीच अब सरकार की मजबूरी है कि संक्रमितों के टेस्ट और उपचार के लिए निजी अस्पतालों की सेवाएं ली जाये। शुरुआत में कोरोना के उपचार के लिए दरें तय करने के मुद्दे पर दिल्ली सहित अन्य राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों के बीच असहमति और टकराव की स्थिति जरूर बनी थी लेकिन अब मसला सुलझने की दिशा में है।

बहरहाल देश जिस आपदा के दौर से गुजर रहा है उसमें सरकारी और निजी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं  को बेहतर सहयोग और समन्वय बनाने की दरकार है ताकि इस चुनौती से बेहतर ढंग से निबटा जा सके। विचारणीय है कि  हर आपदा हमें अनेक संदेश दे जातीं हैंं कोरोना आपदा भी यह संदेश दे रहा है कि भारत जैसे विकासशील और कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की अहमियत सदैव रहेगी क्योंकि यह आम आदमी के पहुंच मेें है।कोरोनाकाल ने  यह भी साबित किया है कि अब तक देश की जिस सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की पहचान अकर्मण्यता और आभाव की बनी हुई  थी वह  अपनी प्रासंगिकता साबित कर रही है, वहीं निजी स्वास्थ्य क्षेत्रों पर लगे आरोपों के दाग भी कुछ हद तक धुले है। 
(   लेखक शासकीय आयुर्वेद कालेज रायपुर में सहायक प्राध्यापक हैं। 94252 13277) 

Exit mobile version