Disorder in Prisons : भारत की जेलों में घोर अव्यवस्था का आलम देखा जा रहा है। चाहे कोई भी प्रदेश हो और उस प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार हो जेलों में संबंधित अधिकारी और कर्मचारी जेल मेन्यूवल की खुलेआम धज्जियां उड़ाते है और अपराधियों को हर सुविधा उपलब्ध कराते है। कभी किसी मामले में जांच हो गई तो जेल अधीक्षक से लेकर सिपाही तक कुछ अधिकारी और कर्मचारी कुछ समय के लिए भले ही निलंबित हो जाते है लेकिन बाद में फिर अपनी नौकरी पर बहाल हो जाते है। जेलों की व्यवस्था में सुधार की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है लेकिन इस दिशा में किसी भी राज्य सरकार ने कोई कारगर पहल नहीं की है। हाल ही में ‘इंडिया जस्टिसÓ नाम की एक रिपोर्ट आई है.
इसके मुताबिक भारत की जेलों में 77 फीसदी कैदी ऐसे हैं जो अंडरट्रायल हैं यानी जिनका मुकदमा चल रहा है. केवल 22 फीसदी कैदियों को सजा मिली है यानी वे कनविक्टेड इनमेट्स हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. भारत जैसे देश जहां लगभग 1.40 अरब लोग रहते हैं, वहां ये स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है कि 22 फीसदी ही कनविक्टेड लोग हैं, बाकी 77 फीसदी अंडरट्रायल हैं हमारे देश की जेलों में. हमारे यहां 134 सेंट्रल जेल हैं, करीबन 400 जिला जेल हैं और उससे थोड़ा कम या ज्यादा सब-डिवीजनल जेल हैं, फिर स्पेशल जेल हैं और महिलाओं की जेल अलग है।
देश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की समस्या लंबे समय से जस की तस है। जेलों में बंद लगभग 78 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं। इन पर अपराध साबित नहीं हुआ है। न्यायालयों में इनके मामले लंबित हैं। कुछ ऐसे मामले भी हैं जिनमें आरोपितों का लंबा समय जेल में गुजर रहा है, केवल इसलिए कि उन्हें अभियोग पक्ष, जो आमतौर पर स्वयं राज्य होता है, उसकी याचिका पर जमानत नहीं मिलती। कई ऐसे मामले भी हैं जिनमें आरोपित अपने पक्ष में वकील करने में सक्षम नहीं होता है या वह अपनी जमानती रकम का इंतजाम नहीं कर पाते, परिणामस्वरूप वह जेल में ही विचाराधीन कैदी बना रहता है।
अब सवाल यह उठता है कि ऐसे विचाराधीन कैदी जो लंबे समय से जेल में केवल कमजोर और लचर न्याय व्यवस्था के कारण बंद हैं, और अपराधी की तरह जीवन जीने का मजबूर हैं, इसकी जवाबदेही किसकी है? ऐसा तब है जब सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर जेलों में बढ़ती कैदियों की संख्या पर चिंता जताता रहा है।
अदालत ने यहां तक कहा है कि अंधाधुंध गिरफ्तारी से लेकर जमानत हासिल करने में आ रही मुश्किलों की वजह से विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक कैद में रखने की प्रक्रिया पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। अब जेलों में सुधार के लिए कुछ विशेष बातों पर ध्यान देना होगा। प्रत्येक 30 कैदियों के लिए कम से कम एक वकील होना अनिवार्य है, जबकि वर्तमान में ऐसा नहीं है।
पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों से निपटने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए। इसके अलावा जिन अभियुक्तों पर छोटे-मोटे अपराधों का आरोप लगाया गया है और जिन्हें जमानत दी तो गई है, परंतु वे उसकी व्यवस्था करने में असमर्थ हैं, उन्हें व्यक्तिगत पहचान बांड पर रिहा किया जाना चाहिए। साथ ही उन मामलों में स्थगन नहीं दिया जाना चाहिए, जहां गवाह मौजूद हैं।