दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की चिंता उन बागियों ने बढ़ा दी है जिनकी टिकट काटी गई है। टिकट से वंचित ऐसे नेता बागी उम्मीद्वार के रूप में मैदान में उतर कर खेल बिगाडऩे का काम कर सकते हैं। सबसे ज्यादा हरियाणा में भाजपा और कांगे्रस के नेताओं ने बगावत का बिगुल बजा दिया है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तवंर ने तो अपने समर्थकों सहित पार्टी से इस्तीफा ही दे दिया है। हरियाणा में मुख्य मुकाबला भाजपा औैर कांग्रेस के बीच ही होना है।
यहां से भाजपा 75 प्लस का लक्ष्य लेकर चुनाव लड़ रही है। दूसरी ओर वर्तमान में यहां कांग्रेस के सिर्फ 17 विधायक हैं उनमें से भी आधा दर्जन विधायकों के टिकट काट दिए हैं, जिसकी वजह से वे बागी उम्मीद्वार के रूप में चुनाव समर में ताल ठोकते नजर आ सकते हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में बागी कांग्रेस नेताओं ने खुलेआम यह आरोप लगाया है कि पैसे लेकर कांग्रेस की टिकट दी जा रही है। इधर हरियाणा में भाजपा ने भी अपने मौजूदा 48 विधायकों में से 12 विधायकों की टिकट कांट दी है। इससे नाराज होकर कई भाजपा विधायक भी बागी उम्मीद्वार के रूप में चुनाव लडऩे का मन बना चुके है।
यदि कांग्रेस और भाजपा के बागी उम्मीद्वार मैदान में रहते है तो भले ही वे चुनाव न जीत पाए लेकिन चुनावी गणित को गड़बड़ा सकते है। दोनों ही पार्टियों ने बागी नेताओं की मानमनोवल्ल शुरू कर दी है लेकिन उनके बागी तेवर को देखते हुए यह नहीं लगता कि वे आसानी से मान जाऐंगे। कमोवेश यही स्थिति महाराष्ट्र में भी देखी जा रही है।
वहां भी टिकट से वंचित कांग्रेस व भाजपा के नेता निर्दलिय प्रत्याशी के रूप में अपनी ताकत दिखा सकते है। हर चुनाव के दौरान टिकट वितरण के बाद पार्टियों में असंतुष्ट नेता बगावत करते ही है। ऐसे स्वनाम धन्य नेता हर हालत में जनसेवा करना चाहते है। यदि उन्हें उनकी पार्टी टिकट नहीं देती तो वे कपड़ों की तरह निष्ठा बदलकर दूसरी पार्टी का दामन थाम लेते है। यदि दुसरी पार्टी घास नहीं डालती तो वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में ताल ठोकने लगते है। ऐसे अवसरवादी और पद लोलुप नेताओं के कारण ही लोकतंत्र जोकतंत्र में तब्दील होता जा रहा है।