कोरोना वायरस (corona virus) के संक्रमण (infection) को रोकने के लिए देश (country) में दो माह तक लॉकडाउन (lockdown) लगाया गया जिसे अब हटाया जा रहा (Being removed) है। एक मई से देश का अधिकांश हिस्सा अनलॉक हो गया है।
आर्थिक गतिविधियों को तेज करने के लिए यह आवश्यक भी है किन्तु एक जुलाई से शैक्षणिक संस्थानों को प्रारंभ करने का निर्णय कतई उचित नहीं है। केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों को इसके लिए स्वतंत्र कर दिया है कि वे अपने प्रदेशों में एक जुलाई से शैक्षणिक गतिविधियां जारी करें या न करेें।
कुछ राज्य सरकारों ने एक जुलाई से स्कूल और कालेज शुरू करने की घोषणा भी कर दी है। इनमें ऐसे राज्य भी है जहां कोरोना वायरस (corona virus) से संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में मासूम बच्चे यदि स्कूल जाएंगे तो वे कोरोना वायरस का आसान शिकार बन सकते है।
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एक ओर तो सरकार यह कह रही है कि कोरोना वायरस (corona virus) के संक्रमण से बचने के लिए 10 साल से कम आयु के बच्चे और 60 साल से अधिक आयु के बुजुर्ग घर से न निकलें। वहीं दूसरी ओर वह स्कूल शुरू करा रही है।
प्राथमिक शालाओं तक पढऩे वाले बच्चों की उम्र 10 साल से कम होती है और वे यह नहीं समझ सकते कि स्कूल में सोशल डिस्टेंसिंग का कैसे पालन किया जाए हर स्कूलों में एक कक्षा में 40 से 50 तक विद्यार्थी होते है ऐसे में वे दो गज की दूरी कैसे बनाकर रख सकते है।
इन मासूम बच्चों के लिए 5 घंटे तक मास्क लगाए रखना भी संभव नहीं है। यही नहीं बल्कि अधिकांश बच्चे बसों और आटों रिक्शा में स्कूल जाते है इस दौरान भी उनके कोरोना वायरस (corona virus) से संक्रमित होने का खतरा बना रहेगा।
बेहतर होगा कि राज्य सरकारें स्कूलों की कमाई के लिए मासूम बच्चों की जान से खिलवाड़ न करेंं। जब तक कोरोना वायरस का कहर रूक नहीं जाता तब तक शैक्षणिक संस्थानों को कईत नहीं खोला जाना चाहिए।
भले ही इसके लिए और तीन-चार महिने का समय लग जाए लेकिन कम से कम प्रथमिक स्कूल न खोले जाएं। बच्चों का एक साल बर्बाद न हों इसके लिए अन्य विकल्पों पर विचार किया जाएं। यह डिजिटल युग है ऐसे में इन बच्चों को घर बैठे भी पढ़ाया जा सकता है।
यदि राज्य सरकारें स्कूल प्रारंभ करती है तो न सिर्फ मासूम बच्चों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा रहेगा बल्कि उनके माध्यम से उनके परिजन भी कोरोना संक्रमण का शिकार बन सकते है।
वैसे भी जुलाई महीने में बरसात शुरू हो जाएगी और ऐसे मौसम में सर्दी खांसी सहित अन्य जल जनित रोगों का प्रकोप फैलता है और इससे बच्चों का स्वास्थ्य खराब होता है।
ऐसी स्थिति में मामूली सर्दी खांसी होने पर भी पालकों की चिंता बढ़ जाएगी और वे अपने बच्चों को कोरोना वायरस (corona virus) होने की आशंका के चलते अस्पतालों के चक्कर लगाने और कोरोना टेस्ट कराने पर बाध्य हो जाएंगे। इस बारे में राज्य सरकारों को अपने फैसले पर पुनरविचार करना चाहिए।