कोरोना वायरस (corona virus) के कारण दुनिया के अन्य देशों की तरह हमारे देश की अर्थव्यवस्था भी गड़बड़ा गई है। विपदा की इस घड़ी में पीडि़त मानवता की सेवा करने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने पड़ा रहे है। उठाने भी चाहिए किन्तु केन्द्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों के भत्ते बंद करना किसी भी दृष्टि से अनुचित है।
कर्मचारी ही सरकार के हाथ, नाक, आंख और कान होते है। देश जब कोरोना (corona virus) काल से गुजर रहा है तो यह सरकारी कर्मचारी ही है जो कोरोना योद्धा के रूप में काम कर रहे है। उनके भत्तों को रोका जाना उन केन्द्रीस कर्मचारियों के साथ अन्याय ही कहा जाएगा।
सरकार को उनकी पीड़ा समझनी चाहिए और अपने इस फैसले पर पुनरविचार करना चाहिए। होना तो यह चाहिए कि इस विषम स्थिति में अपनी जान हथेली पर रख कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करने वाले कर्मचारियों को सरकार पुरस्कृत करती और उन्हे प्रोत्साहित करती ताकि उनका हौसला बढ़ता किन्तु ऐसा न करके सरकार ने उन्हे हतोत्साहित किया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान कई बार यह बात कही है कि निजी संस्थान अपने कर्मचारियों को कोरोना काल में भी वेतन का भुगतान करें ताकि उन्हे आर्थिक समस्याओं को सामना न करना पड़े। वहीं दुसरी ओर खुद सरकार अपने कर्मचारियों के भत्तों पर रोक लगाकर निहायत गलत संदेश दे रही है।
सरकार को केन्द्रीय कर्मचारियों के भत्तों पर लगाई गई रोक को हटाना चाहिए और अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए। सांसदों, विधायकों और पार्षदों जैसे जनप्रतिनिधियों के वेतन भत्तों और अन्य सुविधाओं में कटौती करनी चाहिए। हमारे देश में अधिकांश माननीय करोड़पति है। जिन्हे यदी साल दो साल तक वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं न भी दी जाएं तो भी उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
इसके अलावा सरकार अपने अनावश्यक खर्चो में भी कटौती कर सकती है और मित्त व्ययीता बरत सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कठोर कदम उठाना सरकार की विवशता है लेकिन उसके ये कठोर कदम सरकारी कर्मचारियों के पेट पर न धरे जाएं।
सरकारी कर्मचारी ही है जो सरकार की हर योजनाओं को क्रियान्वित करते है और संकट काल में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चुनौतियों का सामना करते है। सरकार केन्दीय कर्मचारियों की हितों की रक्षा करें और उनके साथ न्याय करें।