Congress in dilemma regarding Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव में अब छह महीने का ही समय शेष रह गया है। एनडीए चुनावी रणनीति बनाने के लिए बैठक कर रहा है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन में भी चुनावी रणनीति तय करने की कवायद चल रही है। इस बीच कांग्रेस पार्टी ने भी बिहार विधानसभा चुनाव पर मंथन करना शुरू कर दिया है। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं ने नई दिल्ली में आयोजित कांग्रेस की बैठक में महागठबंधन के साथ मिलकर ही चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर की है।
जबकि कांग्रेस ने पूर्व में ऐसे संकेत दिये थे कि वह महागठबंधन से अलग होकर अकेले अपने बल बूते पर चुनाव मैदान में उतरेगी। कांग्रेस हाईकमान ने इसी उद्देश्य को लेकर युवा नेता कन्हैया कुमार को बिहार में यात्रा करने की अनुमति दी थी। कन्हैया कुमार ने बेरोजगारी की समस्या और बिहार के लोगों के पलायन को मुद्दा बनाकर अपनी यात्रा शुरू भी कर दी है। गौरतलब है कि कन्हैया कुमार को राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापक लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव कतई पसंद नहीं करते। वे यह नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में सक्रिय हों।
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को बिहार की किसी लोकसभी सीट से चुनाव लड़ाने का मन बनाया था लेकिन लालू यादव और तेजस्वी यादव ने इसका विरोध किया। नतीजतन कांग्रेस को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। इसी तरह पप्पू यादव को भी कांग्रेस लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाना चाहती थी कि लेकिन लालू यादव की आपत्ति के कारण पप्पू यादव को कांग्रेस ने टिकट नहीं दी इसलिए वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और जीत भी गये। पप्पू यादव भले ही निर्दलीय सांसद हैं लेकिन कांग्रेस के साथ उनकी नजदीकियां बनी हुई है। क्योंकि उनकी पत्नि कांग्रेस में हैं और राज्यसभा सदस्य हैं।
पप्पू यादव और कन्हैया कुमार दोनो ही यह चाहते रहें हैं कि कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल जैसी क्षेत्रीय पार्टी की पिछलग्गू बनकर न रहे और इस बार बिहार में वह अकेले चुनाव लड़े। कांग्रेस हाईकमान ने राष्ट्रीय जनता दल के विरोध को नजर अंदाज करते हुए कन्हैया कुमार को बिहार में सक्रिय करके यह संकेत दिया था कि वह इस बार महागठबंधन से अलग होकर अपनी खिचड़ी अलग पकाएगी।
किन्तु अब बिहार कांग्रेस के ही नेता हाईकमान को यह सुझाव दे रहे हैं कि वह महागठबंधन के साथ रहकर ही चुनाव लड़े। नतीजतन कांग्रेस पशोपेश में पड़ गई है। गौरतलब है कि कांग्र्रेस इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग 100 सीटों पर अपना दावा कर रही है। जबकि राष्ट्रीय जनता दल कांग्रेस को पिछले बार दी गई 70 सीटों से भी कम सीटें देने का मन बना चुका है। बिहार के महागठबंधन में सीटों के बटवारे करे लेकर भी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस में रस्सा कसी चल रही है और संभवत: कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल पर दबाव बनाने के लिए ही महागठबंधन से अलग होने की चेतावनी दे रही थी। किन्तु अब लगता है कि दोनों के बीच कोई समझौता होने जा रहा है।
दरअसल राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस दोनों को ही एनडीए विरोधी वोटों के बंटवारे का डर सता रहा है। खासतौर पर अल्पसंख्यकों के वोटों का बंटवारा दोनों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। ऐसी स्थिति में एनडीए को फायदा हो सकता है क्योंकि अलपसंख्यकों के वाटों पर नीतीश कुमार का भी अच्छा खासा प्रभाव है। यही वजह है कि कांग्रेस अब महागठबंधन में ही बने रहने का मन बना रही है। देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस को महागठबंधन में कितनी सीटें मिलती है और क्या वह इनसे संतुष्ट होती है या फिर नाराज होकर एकला चलो रे की नीति पर अमल करती है।