डॉ. सुरभि सहाय। Comedian Raju Srivastava : जीवन में हास्य का पुट जरूरी है। इसी कमी को दूर करके हास्य के जरिए निराश जीवन में उत्साह का संचार करने वाले कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव ने जिस तरह हास्य को जिया है वह उनकी विलक्षण प्रतिभा का प्रतीक रहा है। जीवन हास्य से भरपूर है बस इसे उसी अंदाज में जीने की जरूरत है- इस बात को महसूस कराने वाले राजू श्रीवास्तव का निधन निश्चित रूप से हास्य जगत की एक अपूरणीय क्षति है। आम आदमी को गुदगुदाना और जी भर कर हंसाना यह गुण, यह प्रतिभा बेहद दुर्लभ होती है। राजू ने अपने तनावों, दु:ख-दर्द और संघर्षों को नेपथ्य में छिपाए रखा और लोगों को हंसाते रहे। राजू ने एक अविस्मरणीय किरदार गढ़ा-‘गजोधर भैया।’ वह हिंदुस्तान के आम परिवार, औसत व्यक्ति का प्रतीक बन गया। बल्कि राजू और गजोधर भैया आपस में पर्याय साबित हुए।
गजोधर भैया अपनी जिंदगी के मंच से उतर गए। सामने लोग बैठे रहे और काला पर्दा झूल गया। राजू श्रीवास्तव की बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने की खबरें बनते-बनाते आखिरी खबर आ गई। बीते बुधवार सुबह 10 बजे के करीब दिल्ली एम्स में उनका निधन हो गया। उमर 58 साल थी। दिल्ली में ही 10 अगस्त को एक्सरसाइज करते उन्हें हार्ट अटैक आया था। उसके बाद से ही एम्स में भर्ती थे। इलाज में पता चला था कि दिल के एक हिस्से में सौ फीसदी ब्लॉकेज है। राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1963 को कानपुर के नयापुरवा में हुआ था। उनके पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव, को बलाई काका के नाम से भी जाना जाता था. वहीं उनकी मां का नाम सरस्वती श्रीवास्तव है। बचपन से ही राजू श्रीवास्तव एक अच्छे मिमिक थे, इस हुनर के चलते वे बचपन से ही कॉमेडियन बनना चाहते थे।
शुरू में तो उन्होंने कई फिल्मो में छोटी-छोटी भूमिकाएं (Comedian Raju Srivastava) निभाई लेकिन उन्हें अपनी पहचान कॉमेडी शो में मिली। उन्होंने 1993 में हास्य की दुनिया में कदम रखा। 1980 में वे कानपुर से मुंबई के लिए भागे थे। अपने घर की दीवार फांदकर पड़ोसी के घर में कूदे और वहां से सीधे मुंबई भाग गए। उनके पड़ोसियों ने बताया कि चिल्लाते हुए गए थे कि अब नाम कमाकर ही लौटूंगा। बीते 42 दिनों में कई बार बेहतर होती सेहत की खबरें आती रहीं। लेकिन आखिरकार आखिरी खबर आई राजू चला गया, ये कहते हुए कि जिंदगी में ऐसा काम करो कि यमराज भी आएं तो कहें कि भैंसे पर आप बैठिए, मैं पैदल चलूंगा.. आप नेक आदमी हैं। ये राजू की ही कही है।
राजू ने 2014 में भाजपा जॉइन की थी। वे काम के सिलसिले में दिल्ली पार्टी के कुछ बड़े नेताओं से मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। वह दिल्ली के साउथ एक्स के कल्ट जिम में 10 अगस्त की सुबह वर्क आउट कर रहे थे। इस दौरान ट्रेडमिल पर रनिंग करते समय उन्हें चेस्ट में पेन हुआ और वे नीचे गिर गए थे। इसके बाद उन्हें फौरन अस्पताल में भर्ती कराया गया। राजू हमेशा अपनी फिटनेस पर ध्यान रखते थे और वह फिट और फाइन थे। 31 जुलाई तक वो लगातार शोज कर रहे थे, उनके आगे कई शहरों में शोज भी लाइन अप थे। कॉमेडी क्षेत्र में अपना नाम बनाने वाले राजू श्रीवास्तव ने अपने करियर की शुरुआत फिल्मों में एक छोटी-सी भूमिका निभाते हुए की थी।
जहां उन्होंने तेजाब, मैंने प्यार किया, बाजीगर फिल्म में छोटी-सी भूमिका अदा की। इसके बाद उन्होंने साल 2001 में आमदनी अठनी खर्चा रुपया में बाबा चिन चिन चू की भूमिका निभाई। राजू श्रीवास्तव ने अपने करियर में कई फिल्मों में काम किया। उन्होंने मैं प्रेम की दीवानी हूं (2003), बॉम्बे टू गोवा (2007), टॉयलेटरू एक प्रेम कथा (2017) जैसी फिल्मों में छोटे से रोल करते हुए दिखा गया।
राजू श्रीवास्तव ने मुंबई की लोकल टे्रन के पंखे, हैंडल, गिलास से लेकर भोजन, गाय और मछली आदि तक अनगिनत किरदारों से संवाद किया और अपनी कॉमेडी को बुना। उनकी मौलिकता और सूक्ष्मता एक व्यंग्य रचनाकार की थी, जिसने उन्हें कॉमेडी का ‘सदाबहार चैंपियन’ बना दिया। ऐसा कलाकार दिवंगत तो हो सकता है, उसका पार्थिव देहावसान भी हो सकता है, राजू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है, लेकिन वह कभी समाप्त नहीं हो सकता। वह अमर है, हमेशा प्रासंगिक और जीवंत बना रहेगा। राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी के किस्से, चुटकुले और मजाक उन्हें हमेशा ही हमारे बीच मौजूद रखेंगे।
‘सदी के महानायक’ अमिताभ बच्चन हमेशा राजू की प्रेरणा बने रहे, बल्कि ‘रोटी’ के बंदोबस्त का आधार भी बने। वह शुरुआती दौर ऐसा था कि राजू ने खुद में ही ‘अमिताभ के अवतार’ की खुशफहमी पाल ली थी। वह बेहद सामान्य परिवार से थे, लिहाजा मुंबई की मायानगरी और कॉमेडी की दुनिया के एक स्थापित चेहरा बनने के लिए राजू ने भी अनथक संघर्ष किया था। मात्र 50 रुपए के लिए अमिताभ बच्चन की मिमिक्री की थी। उनके संवाद बोला करते थे। उन्होंने लालू यादव से लेकर बाबा रामदेव तक की नकल भी की। फर्जी बाबाओं के कथावाचन और गुंडई की भी कलई खोली कि आजकल यह एक ‘मालदार धंधा’ क्यों और कैसे बन गया है।
दरअसल राजू श्रीवास्तव कॉमेडी के शोधार्थी थे। उनकी यह प्रतिभा छात्र-जीवन में ही फूट पड़ी थी, जब वह सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ के किरदारों की नकल करते थे और इस तरह लड़कियों को आकर्षित करना चाहते थे। राजू ने कॉमेडी के व्यापक आयामों को खोजा और हंसी के अध्याय पेश किए। उनके समकालीन कॉमेडियन राजपाल यादव तो उन्हें ‘मनोरंजन का वैज्ञानिक’ मानते थे। राजू ने कॉमेडी के नाम पर कभी कचरा दर्शकों के सामने नहीं परोसा। उन्होंने आम आदमी और आम जीवन से जुड़े मुद्दों और मसलों को अपनी कॉमेडी में उठाने की कोशिश की।
हमारे एक पत्रकार मित्र कानपुर (Comedian Raju Srivastava) के ही थे। उनका अक्सर कहना था कि कानपुर की चाय और पान की दुकानों पर ऐसी ही ठिठोलियां, किस्सागोई और ऐसे ही मजाक एक आम चलन हैं। राजू ने कॉमेडी की विषय-वस्तु उस माहौल से भी ग्रहण की। उनकी कला का बहुआयामी पक्ष यह था कि उन्होंने 16 फिल्मों में भी काम किया। धारावाहिकों में भी अभिनय किया और कॉमेडी मंच के तो वह ‘सिकंदर’ बने रहे। यह भी गौरतलब है कि राजू ने कॉमेडी को फूहड़ता से बचाए रखा। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में भी भूमिका निभाने की कोशिशें कीं, लेकिन भाजपा के साथ उनका मन रमा। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें ‘स्वच्छता अभियान’ से जोड़ा। (लेखक : स्वतंत्र पत्रकार)