China’s eye on Afghanistan : अफगानिस्तान में हुए तखता पलट के बाद अब विस्तारवादी चीन की गिद्ध नजर अफगानिस्तान पर गढ़ गई है। यही वजह है कि अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होते ही सबसे पहले चीन ने तालिबान का समर्थन किया है। वैसे चीन के पिट्ठू पाकिस्तान ने भी तालिबान का समर्थन किया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तो बकायदा यह बयान दिया है कि अफगानिस्तान की गुलामी के जंजीरों से छूटकारा मिला है।
अफगानिस्तान में तालिबान (China’s eye on Afghanistan) की हुकुमत कायम होना पाकिस्तान के लिए तो खुशी की बात ही है क्योंकि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों ने तालिबान को मजबूत करने के लिए हर संभव मदद की थी। किन्तु चीन का तालिबान को समर्थन देना इस बात का साफ इशारा है कि अब चीन पाकिस्तान की तरह ही अफगानिस्तान को भी अपने प्रभाव में लेकर अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ेगा। जिस तरह चीन ने पाकिस्तान को कर्ज में लादकर एक तरह से अपना गुलाम बना लिया है। उसी तरह चीन बदहाली के शिकार अफगानिस्तान को भी कर्ज में डूबो कर वहां अपना आधिपत्थ्य स्थिापित कर लेगा।
वैैसे भी चीन ऐसे अवसरों की ताक में ही बैैठा रहता है। गौरतलब है कि अफगानिस्तान (China’s eye on Afghanistan) में लंबे समय तक रूस ने अपनी सेना तैनात रखी थी लेकिन जब तालिबान ने विद्रोह शुरू किया तो रूसी सेना वहां से हट गई थी औैर 90 के दशक में तालिबान ने सत्ता हथिया ली थी। उस समय तालिबान ने अफगानिस्तान में हिंसा का जो नंगा-नॉच किया था वह सारी दुनिया ने देखा है। इसके बाद वहां अमेरिका ने दखल दिया औैर सालों तक अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान में रहकर वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के लिए प्रयास किया और अफगानिस्तान को हर संभव मदद भी मुहैय्या कराई लेकिन इस बीच तालिबान और ताकतवर हो गया और उसने अमेरिकी सेना को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
इधर अमेरिका में सत्ता बदली तो नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने की कारवाई शुरू कर दी। इसके बाद तालिबान के हौसले और बुंलद हो गए और अमेरिकी सेना के हटने से अफगानिस्तान की सेना एक तरह से अपाहिज हो गई। नतीजतन तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और अब तालिबान की वहां हुकूमत कायम होने जा रही है। क्योंकि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति सहित सभी मंत्री और अन्य नेता वहां से भाग चुके है।
अफगानिस्तान (China’s eye on Afghanistan) के मौजूदा हालातों को देखकर सारी दुनिया में चिंता व्यक्त की जा रही है। इस बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सफाई दी है कि हम आखिर कब तक अफगानिस्तान की लड़ाई लड़ते। अब अफगानिस्तान को अपनी लड़ाई खुद लडऩी चाहिए। उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान के अमेरिकी सेना को हटाने के फैसले पर वे अडिग है लेकिन तालिबान पर नजर रखी जाएगी। इधर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी तालिबान को चेतावनी दी है कि वह संयम से काम ले। लेकिन तालिबान को इन चेतावनी की कोई खास परवाह नहीं दिखती।
खास तौर पर तब जब पाकिस्तान औैर इन जैसे देश उसके समर्थन में सामने आ चुके है। ऐसी स्थिति में अफगानिस्तान के हालात जल्द सुधरेंगे ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। यही वजह है कि विश्व के वे देश जिनके नागरिक अफगानिस्तान में है वे उनकी स्वदेश वापसी कराने की कवायद कर रहे है। भारत ने भी अपना दूतावास खाली करा लिया है और पूरे स्टाफ को भारत वापस बुला लिया है। अन्य भारतीय की भी स्वदेश वापसी के लिए भारत पहल कर रहा है।