Chanakya Niti: अग्नि, गुरू, ब्राह्मण, गाय, कन्या, वृद्ध पुरूष-स्त्री तथा नासमझ बच्चा इन सभी को पैरों से नहीं छूना चाहिए। क्योंकि ऐसा करना इनके प्रति उपेक्षित भाव दर्शाना है जो मनुष्य की धृष्टता का परिचय देता है।
अभिप्राय यह है कि उपरोक्त जनों का समाज में पूज्य स्थान हैं। इन्हें पैरों से छूकर अपमानित नहीं करना चाहिए। यही वांछनीय है। आज के युग में व्यक्ति सांसारिक सांसारिक कर्मों में लिप्त रहता है, जब कि वह जानता है कि शरीर नश्वर है। यहां आचार्य (Chanakya Niti) बताते हैं कि जब परिवार का एक सदस्य वैराग्य लेता है तो परिजन उसे विदा करके वापस लौट आते हैं, और पुन: सांसारिकता में लिप्त हो जाते हैं।
इसके विपरीत उस व्यक्ति से अन्य परिजनों को प्रेरणा लेनी चाहिए और उसके आदर्शों का पालन करना चाहिए, ऐसा होने पर ही सदाचरण का पालन होता है और परिवार का भविष्य उज्जवल होता है।
जल स्नान की महिमा बड़ी अपरम्पार है। तेल की मालिश करने, चिता का धुंआ लगने, सम्भोग करने तथा हजामत बनवाने के पश्चात् जब तक व्यक्ति स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह चाण्डाल, अस्पृश्य यानी अपवित्र ही रहता है। (Chanakya Niti) इन कर्मों के बाद स्नान से व्यक्ति की तुरन्त शुद्धि हो जाती है। वैसे भी नित्य प्रति जल स्नान अवश्य करना चाहिए, तब ही शरीर शुद्ध रहता है।
पानी में बहुत से गुण हैं। अपच हो तो भोजन न करके केवल पानी पीना औषधि लेने के बराबर है। अपच न हो तो भोजन पचने के पश्चात् पानी पीना बलवद्र्धक है। भोजन करते हुए बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पीना अमृत तुल्य होता है, किन्तु भोजन करने के तुरन्त बाद पानी पीना हानिकारक विष के समान है
अभिप्राय यह है कि अपच में, भोजन पच जाने के पश्चात् तथा भोजन के समय (बीच में) तो जल का सेवन करना लाभप्रद है, परन्तु भोजन समाप्त करते ही पानी पीना हानिकारक है। अत: भोजन कर चुकने के पश्चात् तुरन्त पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। (Chanakya Niti)