chanakya neeti: मानव देह बड़े भाग्य से मिलती है। मानव देह मिलने के पश्चात् भी जो व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग करके धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त करने का प्रयत्न न करे उसका जन्म निरर्थक है। वह तो इस संसार में बार-बार मरने के लिए जन्म लेता है और जन्म लेने के लिए ही मरता है ।
अभिप्राय यह है कि मनुष्य के जन्म की सार्थकता धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष में से किसी एक की प्राप्ति है, जो अपनी बुद्धि से एक की प्राप्ति भी नहीं कर पाता उसका जन्म लेना तो मृत्युतुल्य ही है।
आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) कहते हैं कि जीवन में समय का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि जीवन अपने में महत्वपूर्ण होता है। वह कहते हैं कि जब तक व्यक्ति नीरोगी है, तब तक मृत्यु करीब नहीं आती, तभी तक वह कर्म कर सकता है। कर्म भी आत्मकल्याण अथवा मोक्ष प्राप्ति सम्बन्धी है।
दान, परोपकार, तीर्थ सेवा, व्रत-सत्संग एवं पूजा आदि से मनुष्य को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, क्योंकि पता नहीं कब मृत्यु का वरण करना पड़े। अतः यह आवश्यक है कि व्यक्ति को सत्कर्मों में लिप्त रहना चाहिए। इसी से पुण्य की प्राप्ति होती है।