chanakya neeti: आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जीवन में समय का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि जीवन अपने में महत्वपूर्ण होता है। वह कहते हैं कि जब तक व्यक्ति नीरोगी है, तब तक मृत्यु करीब नहीं आती, तभी तक वह कर्म कर सकता है। कर्म भी आत्मकल्याण अथवा मोक्ष प्राप्ति सम्बन्धी है।
दान, परोपकार, तीर्थ सेवा, व्रत-सत्संग एवं पूजा आदि से मनुष्य को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, क्योंकि पता नहीं कब मृत्यु का वरण करना पड़े। अतः यह आवश्यक है कि व्यक्ति को सत्कर्मों में लिप्त रहना चाहिए। इसी से पुण्य की प्राप्ति होती है।
जहां आजीविका सुलभ (chanakya neeti) नहीं तथा लोगों में सामाजिकता नहीं उस गांव में निवास करना, किसी नीच (शूद्र) पुरुष की नौकरी करना, धर्मपत्नी का झगड़ालू होना, पुत्र का अशिक्षित तथा मूर्ख होना, लड़की का विधवा हो जाना। उक्त पांचों तत्व मनुष्यों को बिना आग के ही हर समय जलाते रहते हैं। इन छह में से प्रत्येक तत्व पुरूष को निरन्तर बहुत अधिक दुःख और पीड़ित करते हैं।
मन की सुख-शान्ति जाती रहती है। न वह कभी चैन से खा पाता है, न चैन से सो पाता है। न ही सुख से बैठ पाता है। उसका चित्त हर समय दुःखी और अशान्त-सा रहता है।
बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह बार-बार यह सोचता रहे कि उसके मित्र कितने हैं, उसका समय कैसा है, उसका निवास कैसा है, उसकी आय कितनी है और व्यय कितना है, वह कौन है, आत्म है अथवा शरीर, स्वाधीन है अथवा पराधीन तथा उसकी शक्ति कितनी है? इन प्रश्नों पर विचार करते हुए मनुष्य को अपना जीवन बिताना चाहिए, अन्यथा वह पत्थर से समान निर्जीव हो जाता है।