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छत्तीसगढ़: 200 से अधिक महिलाओं को वेल्यू एडीशन का मिल रहा लाभ, आप भी..

Chhattisgarh Value Edition, More than two, hundred women are getting, the benefit of value addition,

Chhattisgarh Value Edition

-Chhattisgarh Value Edition: सबई घास से रस्सी की जगह टोकरी निर्माण से बढ़ी आमदनी

रायपुर। Chhattisgarh Value Edition: राज्य के वनमंडल धरमजयगढ़ में बहुतायत से पाए जाने वाले सबई घास से अब रस्सी की जगह टोकरी का निर्माण होने लगा है। इससे वर्तमान में यहां 10 विभिन्न स्व-सहायता समूहों और संयुक्त वन प्रबंधन समितियों सहित 220 महिलाओं को अधिक से अधिक मुनाफा होने लगा है।

इसके पहले सबई घास के रस्सी का निर्माण कर इसे जहां मात्र 24 रूपए प्रति किलोग्राम की दर पर विक्रय किया जाता था और कम आमदनी होती थी। वहीं अब समूह की प्रत्येक महिला सबई घास से टोकरी तैयार कर वैल्यू एडीशन से प्रतिदिन 200 रूपए तक की आय अर्जित कर रही हैं।

Chhattisgarh Value Edition

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में राज्य में वन विभाग द्वारा वनांचल के लोगों के उत्थान के लिए वनोपजों के संग्रहण के साथ-साथ इसके रि-वेल्यूशन पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

इस कड़ी में प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि राज्य के वनमंडल धरमजयगढ़ के प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति सोखामुड़ा के अंतर्गत सबई घास के संग्रहण के साथ अब इसके रस्सी निर्माण की जगह टोकरी का निर्माण कर वेल्यू एडीशन (Chhattisgarh Value Edition) का वनवासियों को अधिक से अधिक लाभ दिलाया जा रहा है।

प्रबंध संचालक राज्य लघु वनोपज संघ संजय शुक्ला ने बताया कि सबई घास के केवल रस्सी का ही निर्माण होने पर संग्राहकों को उतना अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा था, जितना अभी टोकरी का निर्माण होने से हो रहा है।

इस संबंध में वन मंडलाधिकारी धरमजयगढ़ मनीवासगन एस. ने बताया कि वर्तमान में सबई घास के संग्राहक इन महिलाओं को टोकरी निर्माण में दक्षता तथा गुणवत्ता के लिए प्रशिक्षण (Chhattisgarh Value Edition) भी दिलाया जा रहा है। इससे अभी 220 महिलाएं जुड़कर सबई घास के टोकरी निर्माण से भरपूर लाभ उठा रही है।

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इनमें सरस्वती स्व-सहायता समूह जमाबीरा, सरस्वती स्व-सहायता समूह कड़ेना, गंगा स्व-सहायता समूह हाटी, निश्चय स्व-सहायता समूह हाटी, वंदना स्व-सहायता समूह सिरकी और वन प्रबंध समिति अलोला, बोरो, सिरकी, संगरा तथा बागडाही की महिलाएं शामिल हैं।

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