BJP Introspection : छत्तीसगढ़ में 15 नगरीय निकायों के चुनाव नतीजे एक तरफा कांग्रेस के पक्ष में गए है। भाजपा का एक तरह से सफाया ही हो गया है। चारों नगर निगमों में कांग्रेस का कब्जा हो गया है वहीं छह नगर पंचायतें भी कांग्रेस की झोली में गई है, पांच नगर पालिकाओं में से सिर्फ जामुल नगर पालिका में भाजपा का काम चलाऊ बहुमत आ पाया है। ये चुनावी नतीजे भाजपा के लिए एक सबक है, छत्तीसगढ़ भाजपा को आत्मचिंतन करना चाहिए कि आखिर वह चुनाव दर चुनाव हार क्यों रही है।
भाजपा की इन चुनावों में स्थिति यह रही है कि बस्तर के भोपालपट्नम नगर पंचायत में उसका खाता भी नहीं खुल पाया। वहां की सभी 15 सीटें कांग्रेस ने जीत ली। इसी तरह कोंटा नगर पंचायत में भी 15 में से 14 सीटें कांग्रेस की झोली में गई, भाजपा को ले दे कर 1 सीट मिल पाई। कांग्रेस ने भाजपा का पत्ता साफ कर दिया है। अन्य नगर पंचायतों में भी भाजपा (BJP Introspection) को तीन से चार सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस का जनाधार मजबूत रहा है लेकिन नगरीय निकायों के चुनाव में कांग्रेस ने शहरी क्षेत्रों में भी भाजपा को पछाड़ दिया है जबकि भाजपा का शहरी क्षेत्रों में जनाधार मतबूत माना जाता है। जाहिर है पिछले विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के सदमे से भाजपा अभी तक नहीं उबर पाई है उसी का खामियाजा उसे इन 15 नगरीय निकायों के चुनावों में भुगतना पड़ा है और शर्मनाक पराजय का सामना करने के लिए विवश होना पड़ा है।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल का तीन साल पूरा हो चुका है और अब दो साल ही बचे है यदि इन दो सालों में भाजपा ने अपनी रीति और नीति में परिवर्तन नहीं किया और जनहित से जुड़े मुद्दों को लेकर भाजपा नेता लोगों के बीच नहीं गए तो कोई बड़ी बात नहीं कि दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में भी उन्हे पराजय का सामना करना पड़ जाए।
नगरीय निकायों के जिन नतीजों से भाजपा को सबक लेने की जरूरत है और पार्टी संगठन में व्याप्त गुटबाजी को दूर कर पार्टी में एकजुटता लाने की भी आवश्यकता है। चुनाव दर चुनाव हार के कारण भाजपा के कार्यकर्ताओं (BJP Introspection) में जो हताशा व्याप्त हो रही है उसे दूर कर उनमें नया उत्साह भरने की भी आवश्यकता है अन्यथा भाजपा कांग्रेस की चुनौती का सामना नहीं कर पाएगी।