Editorial: चुनाव आयोग द्वारा बिहार में कराये जा रहे है एसआईआर के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने संसद में सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रखा है। संसद के मानसून सत्र के तीसरे सप्ताह में भी एसआईआर को लेकर विपक्ष के हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही लगातार बाधित हो रही है। आईएनडीआईए में शामिल विपक्षी पार्टियों के नेता संसद के बाहर रोज हाथों में तख्ती लेकर नारेबाजी कर रहे हैं। चुनाव आयोग पर भाजपा के इशारे पर वोट चोरी करने का आरोप लगा रहे हैं। संसद के ऊपर भी वे लगातार एसआईआर के खिलाफ शोर शराबा कर रहे हैं।
विपक्ष की मांग है कि एसआईआर पर संसद में चर्चा कराई जाये। उनका आरोप है कि सरकार चर्चा से भाग रही है। जबकि सरकार का कहना है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है और उसके किसी भी फैसले को लेकर संसद में चर्चा कराने का कोई प्रावधान नहीं है। चुनाव आयोग के फैसले को सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित भी है। इस लिहाज से भी इस पर संसद में चर्चा नहीं कराई जा सकती। किन्तु विपक्ष एसआईआर पर संसद में चर्चा की जिद पर अड़ा हुआ है। नतीजतन संसद का कामकाज प्रभावित हो रहा है।
इधर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से उन 65 लाख मतदाताओं की पूरी सूची मांगी है जिनके नाम बिहार की मतदाता सूची से हटाये गये हैं। यह लिस्ट 9 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाएगी। चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि जिन मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाये गये हैं उसकी जानकारी अपलोड कर दी गई है। हम वोटर लिस्ट को साफ करने का काम कर रहे हैं और अपात्र लोगों के ही नाम हटाये जाएंगे। उनके लिए भी एक सितंबर तक का समय दिया गया है कि वे अपना दावा आपत्ति पेश कर और आवश्यक कागजात जमा कर अपना नाम मतदाता सूची में शामिल करा सकते हैं।
इस स्पष्टीकरण के बावजूद विपक्ष लगातार इस मामले को लेकर बवाल काट रहा है। जबकि बिहार में एसआईआर के काम में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों सहित सभी राजनीतिक दलों के एक लाख साठ हजार से अधिक बीएलए काम कर रहे हैं उनकी उपस्थिति में ही यह पूरी प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ निपटाई जा रही है।
इन राजनीतिक पार्टियों के एक भी बीएलए ने अभी तक इस प्रक्रिया को लेकर कोई शिकायत नहीं की है। किन्तु विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को लेकर संसद में व्यर्थ का बवाल खड़ा कर रही हैं। अब चूंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है तो विपक्षी पार्टियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए।