Attack on Democracy : बात बात पर देश में लोकतंत्र पर हमला और लोकतंत्र की हत्या की दुहाई देने वाली देश की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां अपनी ही पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र स्थापित करने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है। पार्टी के संगठन चुनाव जरूर होते है लेकिन चुनाव के नाम पर सिर्फ औरपचारिकता पूरी की जाती है। हर पार्टी का अपना अलग नियम कायदा है जिसके तहत वे अपनी मन मर्जी का अध्यक्ष निर्वाचित कराने में सफल हो जाती है।
यदि कोई भी समाजिक या अन्य स्वयंसेवी संगठन गठित (Attack on Democracy) होता है तो पंजीयक के पास उसका पंजीयन कराने के साथ ही पार्टी का बॉयलॉज जमा करना होता है और उस बॉयलॉज के हिसाब से ही उस संगठन के निर्धारित समय पर चुनाव होते है अन्यथा उसका पंजीयन रद्द हो जाता है किन्तु राजनीतिक पार्टियों के साथ ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती वे अपने हिसाब से जब चाहे चुनाव करवाती है और किसी भी अध्यक्ष को कितने भी साल के लिए अध्यक्ष पद पर बनाए रखने के लिए स्वतंत्र होती है।
देश की ऐसी राजनीतिक पार्टीयां जो एक ही परिवार के कब्जे में है वे तो संगठन चुनाव के नाम पर मजाक करती है। हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव बारहवीं बार राजद के अध्यक्ष चुने गए। इसके पूर्व जब वे चारा घोटाले के आरोप में जेल काट रहे थे तब भी राजद के अध्यक्ष पद पर आसीन थे। यह लोकतंात्रिक प्रक्रिया का मजाक नहीं तो और क्या है? बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती दशकों से बसपा की अध्यक्ष बनी हुई है।
इसी तरह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी भी तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष पद पर पिछले दो दशकों से लगातार काबिज है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव उस समय तक अध्यक्ष पद पर बने रहे जब तक उनके पुत्र अखिलेश यादव पार्टी की बागडोर संभालने के लिए आगे नहीं आए। अब अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष है और आगे भी वहीं रहेंगे।
सिर्फ कांग्रेस और भाजपा तथा वामपंथी पार्टियां (Attack on Democracy) है जिनमें काफी हद तक संगठन चुनाव के दौरान लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जाता है। अन्य राजनीतिक पार्टियों में तो आंतरिक लोकतंत्र नाम की तो कोई चीज हीं नहीं रह गई है। ऐसी पार्टियां जो अपनी पार्टी के भीतर लोकतंत्र स्थापित नहीं कर पाती वे किसी मुंह से लोकतंत्र की दुहाई देती है।