Assembly Elections : बंगाल में हिंसा का तांडव थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान वहां हिंसा का नंगा नाच सबने देखा था। चुनाव के बाद ममता बेनर्जी की फिर से सरकार बनी तो फिर हिंसा का दौर चालू हो गया और विरोधियों पर टीएमसी के गुंडों का कहर टूटने लगा जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग बंगाल से पलायन करने के लिए बाद्ध हो गए थे।
इस हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की तब कहीं जाकर हिंसक घटनाओं में कुछ हद तक अंकुश लगा लेकिन अभी भी वहां हिंसा का दौर जारी है। वीर भूम जिले में एक टीएमसी नेता की हत्या के बाद उनके पालतू गुंडो ने वहां घरों में आग लगा दी जिसके कारण 8 लोग जिंदा जलकर मर गए। इस पर बंगाल के राज्यपाल ने जवाब तलब किया तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी ने राज्यपाल को ही नसीहत दे दी कि वे अपनी मर्यादा में रहे।
आठ लोगों की मौत के बाद जब बंगाल सरकार (Assembly Elections) की चौतरफा निंदा शुरू हुई तो ममता बेनर्जी ने इस घटना की जांच के लिए एसआईटी के गठन की घोषणा की और दावा किया कि इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा लेकिन ममता बेनर्जी की कथनी और करनी में कितना अंतर है यह सब लोग जानते है।
टीएमसी समर्थक वहां चाहे जो करें उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती। इस घटना को केन्द्र सरकार ने गंभीरता से लिया है और केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने बंगाल सरकार से 48 घंटों के भीतर रिपोर्ट मांगी है। वीर भूम जिले की घटना पर कांग्रेस ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि बंगाल में मानव नहीं बल्कि दानव राज चल रहा है इसलिए वहां की हिंसा पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रपति को धारा ३५६ के तहत कार्यवाही करनी चाहिए।
वास्तव में इसके पहले की पानी सिर से ऊंचा हो केन्द्र सरकार को बंगाल में हिंसा रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए। ममता बेनर्जी की सरकार कानून और व्यवस्था का राज कायम रखने में असफल सिद्ध हो रही है बल्कि यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सरकार के संरक्षण में ही वहां जंगल राज चलाया जा रहा है।
टीएमसी समर्थक (Assembly Elections) आए दिन आतंक मचाते रहते है और वहां की पुलिस उनके सामने बेबस बनी रहती है ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि केन्द्र सरकार इस मामले में दखलंदाजी करें और कड़े कदम उठाने ने हिचके।