election results 2023: पांच राज्यों के लिए हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम भाजपा के लिए नई उम्मीदेें जगाने वाले हैं। मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने आशातीत सफलता प्राप्त की हैं। वहीं तेलंगाना में भी उसने पहली बार आठ सीटें जीतकर वहां अपनी पैठ मजबूत की है। तेलंगाना में कांग्रेस को सफलता मिली है जो उसे नई ऑक्सीजन देगा किन्तु राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ कांगे्रस के हाथ से निकल गए जो कांग्रेस के लिए गहन चिंता का विषय हैं।
इन तीन राज्यों में मिली पराजय से कांग्रेस को सबक सीखने की आवश्यकता है। यद्यपि कांग्रेस पार्टी पराजय के कारणों की समीक्षा कर रही है लेकिन कांग्रेस के ही कुछ नेता अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोडऩे की कोशिश कर रहें हैं। जबकि उन्हें अपने खिलाफ जनादेश को विनम्रता पूर्वक स्वीकारना चाहिए और इन तीनों ही राज्यों में मतदाताओं ने उन्हें जो विपक्ष की भूमिका सौंपी हैं उसका जिम्मेदारी पूर्वक निर्वहन करना चाहिए क्योंकि पांच माह बाद लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से ही होगा। क्योंकि इन तीनों प्रदेशों में अन्य कोई पार्टी अपना जनाधार नहीं रखती है। आईएनडीआईए में जब भी लोकसभा सीटों के बंटवारे की नौबत आएगी राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के ही हिस्से में लगभग सभी सीटें आएंंगी ऐसी स्थिति में कांग्रेस को बीती ताहि बिसार के आगे की सुध लेने की जरूरत है।
किन्तु ऐसा लगता है कि कांग्रेस अभी तक इन तीन राज्यों में मिली करारी शिकस्त के सदमें से नहीं उभर पाई। यही वजह है कि उसके कुछ नेता हार के कारणों पर मथन करने की जगह ईवीएम पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। और ऐसा करके वे अपनी ही खिल्ली उड़वा रहें हैं। स्थिति यह है कि कांग्रेस के सहयोगी दल ही अब कांग्रेस को आईना दिखा रहें हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो तीन राज्यों में कांग्रेस की पराजय पर तंज कसते हुए यहां तक कह दिया है कि अब कांग्रेस का घमंड टूट गया होगा। दरअसल समाजवादी पार्टी ने मध्यप्रदेश में कुछ विधानसभा सीटों पर अपना दावा किया था और कांग्रेस से सीटों के बंटवारे की बातचीत की थी।
कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से चर्चा की बात भी कही थी लेकिन फिर समाजवादी पार्टी को ठेंगा दिखा दिया और सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। जिसकी वजह से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच मतभेद बढ़ गए और उसका असर अब आईएनडीआईए पर पड़ता नजर आ रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने छह दिसंबर को आईएनडीआईए की जो बैठक बुलाई थी। उससे न सिर्फ समाजवादी पार्टी ने किनारा कर लिया। बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित कई सहयोगी दलों के नेताओं ने बैठक मेंं शामिल होने से इनकार कर दिया।
सभी ने अलग अलग कारणों से बैठक में आने में असमर्थता जता दी। इनमें से कई नेताओं ने तो इस बात पर भी अपत्ति जताई है कि कांग्रेस ने उनसे राय मशवरा लिए बगैर बैठक बुला ली। नतीजतन कांगे्रस को आईएनडीआईए की बैठक स्थगित करनी पड़ गयी। कांग्रेस को चाहिए की गठबंधन का सबसे बड़ा दल होने के कारण वह बड़ा दिल दिखाए। गठबंधन में शामिल सभी घटक दलों का विश्वास हासिल करें और पांच माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के पूर्व गठबंधन को मजबूती दें ताकि २०२४ में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को कड़ी चुनौती दी जा सके। उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस हाईकमान अब विधानसभा चुनाव में तीन राज्यों मिली हार के सदमें से उभर कर लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी सभी राजनीतिक पार्टियों को एकजुट करने के काम में जुट जाएगी और भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।