Angry Farmers Organization : तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले दस माह से आंदोलित किसान संगठनों ने एक बार फिर सरकार पर दबाव बनाने के लिए भारत बंद का आव्हान किया। जिसे कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और तृणमूल कंाग्र्रेस सहित वामपंथी दलों ने अपना समर्थन दिया। इन विपक्षी पार्टियों ने न सिर्फ भारत बंद के आव्हान का समर्थन किया बल्कि भारत बंद कराने में अग्रणी भूमिका भी निभाई।
अनेक राज्यों में विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने मोर्चा संभाला और सड़कों पर उतर कर बंद को सफल बनाने में सहयेाग दिया। नतीजतन इस बार भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिला। राजधानी नई दिल्ली के अलावा देश के कई राज्यों के बड़े शहरों में चक्काजाम किया गया जिससे घंटों लोग जाम में फंसे रहे। इस बंद के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने बंद के कारण लोगों को हुई असुविधा का ठीकरा भाजपा पर फोड़ दिया।
उनका कहना था कि पहले जब किसानों ने भारत बंद का आव्हान किया था तो लोगों की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए बंद के दौरान कुछ रियायत दी थी। इसकी वजह से भाजपा ने भारत बंद को असफल करार दिया था। यही वजह है कि इस बार के बंद में ज्यादा रियायतें नहीं दी गई। इसकी वजह से जिन लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है उसके लिए राकेश टिकैत ने खेद जताया। अब सवाल यह उठता है कि भारत बंद कराने से किसान संगठनों को आखिर क्या हासिल हुआ।
सरकार तो अभी भी अपने फैसले पर अडिग़ है। केन्द्र सरकर का कहना है कि कृषि कानून किसी भी शर्त पर वापस नहीं लिए जाएंगे, अलबत्ता उसमें किसान संगठनों (Angry Farmers Organization) को जिन ङ्क्षबदुओं पर आपत्ति है उसपर चर्चा कर के उसे संसोधित किया जा सकता है। जबकि किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर ही अड़े हुए है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इन नए कृषि कानूनों पर एक साल का स्थगन दे रखा है।
यह अवधि किसान संंगठनों (Angry Farmers Organization) और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता के लिए पर्याप्त है लेकिन किसान संगठन वार्ता के पक्ष में नहीं है। वे आंदोलन के जरिए ही सरकार पर दबाव बनाना चाहते है लेकिन उनके सारे प्रयास अब तक विफल रहे है। सरकार झुकने के लिए तैयार ही नहीं है, ऐसी स्थिति में इस तरह के बंद का कोई औचित्य नजर नहीं आता।
उल्टे बंद की वजह से आम जनता को जो दिक्कते उठानी पड़ती है उससे लोगों की किसान संगठनों के प्रति सहानुभूति कम होती है। इसलिए बेहतर यह होगा कि किसान संगठन आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत के जरिए समस्या का समाधान ढ़ूंढे।