America’s action against infiltrators: अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में रह रहे अवैध प्रवासियों को देश से निकालने के लिए कड़ी कार्यवाही शुरू कर दी है। इस समय अमेरिका में लगभग दो करोड़ अवैध प्रवासी हैं जिन्हें अमेरिका से डिपोर्ट करने का अभियान शुरू कर दिया गया है। इसकी चपेट में भारतीय भी आये हैं जिनमें से 104 अवैध प्रवासी भारतीयों को अमेरिकी सेना के विमान से भारत भेजा गया है।
अभी और भी हजार अवैध प्रवासियों को भारत भेजा जाना है। अमेरिका की इस कार्यवाही का भारत में विपक्षी पार्टियों द्वारा विरोध किया जा रहा है और सरकार से मांग की जा रही है की वह अमेरिका की इस अमानवीय कार्यवाही के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराए। इस मांग को लेकर लगातार दो दिनों तक विपक्षी सांसदों ने संसद के भीतर और बाहर प्रदर्शन भी किया।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि अमेरिका को यह अधिकार है कि वह घुसपैठियों को देश से बाहर करे लेकिन अमेरिका अवैध प्रवासियों को जिस तरह से हथकडिय़ों और बेडियों में जकड़कर डिपोर्ट कर रहा है वह घोर अमानवीय है तथा मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है भारत सरकार को इस पर अपनी आपत्ति दर्ज करानी चाहिए। संसद में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने विपक्ष की चिंताओं को लेकर स्थिति स्पष्ट की और कहा कि 2012 में भारत और अमेरिका के बीच अवैध प्रवासियों को लेकर संधि हुई थी और उसके बाद से ही पिछले एक दशक दौरान हजारों की संख्या में अमेरिका ने अवैध प्रवासी भारतीयों को लौटाया है उन्होंने संसद को यह भी आश्वासन दिया कि भारतीयों को अमेरिका की नागरिकता दिलाने का सब्जबाग दिखाकर जो गैंग डंकी रूट से लोगों को अमेरिका ले जाते हैं और उनसे लाखों रूपये वसूल लेते हैं।
उनके खिलाफ भी सरकार कड़ी कार्यवाही करेगी। गौरतलब है कि जिन 104 अवैध प्रवासी भारतीयों को अमेरिका से वापस भेजा गया है। उनमें से कई लोगों ने बताया है कि उन्होंने अमेरिका जाने के लिए उन कथित ऐजेंटो को 40 से 50 लाख रूपये दिये थे। लेकिन अमेरिका जाते ही वे पकड़े गये और उन्हें यहां वापस भेज दिया गया है। वापसी की इस प्रक्रिया का भारत में विपक्षी पार्टियां इसलिए ज्यादा विरोध कर रही हैं कि उन्हें हथकड़ी और बेड़ी लगाकर क्यूं भेजा गया वे कोई खूंखार अपराधी या आतंकवादी तो नहीं थे।
किन्तु इसमें भारत क्या कर सकता है अमेरिका ने घुसपैठियों को अपने देश से निकालने के लिए जो कानून बनाया है उसके मुताबिक वह भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों से घुसपैठियों को भी इसी तरह हथकड़ी और बेड़ी लगाकर भेज रहा है। अमेरिकी प्रशासन ने संभवत: ऐसे निर्णय इसलिए लिया है कि घुसपैठिए विमान में किसी अप्रिय को घटना को अंजाम न दे पायें। किसी भी विमान में सुरक्षाकर्मियों और क्रू स्टाफ की संख्या इन घुसपैठियों से तो बहुत कम होती है। यदि इन्हें हथकड़ी और बेड़ी लगाकर न रखा गया तो ये यात्रा के दौरान विरोध दर्ज कराने के लिए कुछ भी कर सकते हैं ऐसी कोई अप्रिय स्थिति न बने इसीलिए ऐतिहातन उन्हें इस तरह भेजा जा रहा है इसका दूसरा रास्ता यह है कि भारत भी कोलंबिया की तरह ही अपना विमान अमेरिका भेजे और इन अवैध प्रवासियों को सुविधाजनक ढंग वापस लाये लेकिन इसमें भारत सरकार को बड़ी राशि खर्च करनी होगी।
अमेरिका ने जिन 104 अवैध प्रवासियों को भारत वापस भेजा है। उस पर 6 करोड़ का खर्च आया है इस हिसाब से अनुमान लगाया जा सकता है कि 20 हजार अवैध प्रवासियों को अमेरिका से वापस लाने में भारत सरकार को कितनी मोटी रकम खर्च करनी पड़ेगी। बहरहाल इसी सप्ताह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डोनाल्ड ट्रंप से मिलने अमेरिका प्रवास पर जा रहे हैं तब वहां अवैध प्रवासियों डिपोर्ट करने के मुद्दे पर चर्चा होगी। गौरतलब है कि भारत में भी घुसपैठयों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और इन घुसपैठियों को देश से बाहर करने की मांग भी तेज हो रही है।
इस बारे में ऐडवोकेट अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। जिसमें कहा गया है कि अब तक भारत में 5 करोड़ अधिक बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए घुस आये है और देश के विभिन्न हिस्सों में फैल गये हैं जो भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं इसलिए उनकी पहचान कर उन्हें भारत से बाहर निकाला जाये। केन्दी्रय मंत्री अमित शाह भी कई बार यह कह चुके हैं कि बंगाल और असम सहित अन्य राज्यों से घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए सरकार कड़े कदम उठाने जा रही है लेकिन अभी तक इस दिशा में केन्द्र सरकार ने कोई कारगर कदम नहीं उठाया है। इस बीच दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को कड़ी फटकार लगाई है कि उसने जिन घुसपैठियों को पकड़कर रखा हुआ है उन्हें डिपोर्ट क्यूं नहीं किया जा रहा है।
जाहिर है भारत में भी घुसपैठियों के खिलाफ इसी तरह का अभियान चलाए जाने की जरूरत बड़ी शिद्दत के महसूस की जा रही है। ऐसे में जबकि आने वाले समय में भारत खुद घुसपैठियों के खिलाफ अभियान चला सकता है तो वह अमेरिका की इस कार्यवाही का विरोध आखिर कैसे कर सकता है।
हर देश को अपनी संप्रभुता की रक्षा करने का अधिकार है और अपने हिसाब से डिपोर्ट नीति बनाने का भी उसे हक है। इसलिए घुसपैठियों के खिलाफ अमेकिा की कार्यवाही का विरोध नहीं होना चाहिए भारत को सिर्फ यह ध्यान रखना चाहिए कि वह अमेरिका पर यह दबाव बनाये कि भारतीय लोगों की वापसी के दौरान उनके साथ अमानवीय व्यवहार न हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इस बारे में डोनाल्ड ट्रंप से चर्चा का भारतीयों की सुरक्षित और सम्मानजनक रूप से वापसी का रास्ता निकालने में जरूर सफल होंगे।