Adani Sahara Deal : वर्षों से अटके सहारा विवाद के समाधान की दिशा में बड़ा कदम सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में सहारा समूह ने अपनी 88 परिसंपत्तियों को अदाणी ग्रुप (Adani Sahara Deal) को बेचने की अनुमति मांगी है। इन परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त धनराशि से निवेशकों और सरकार के बकाये का भुगतान किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और अन्य संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के. के. सुंदरेश की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई करते हुए वित्त मंत्रालय और सहकारिता मंत्रालय को भी इस मामले में पक्षकार बनाया है। कोर्ट ने दोनों मंत्रालयों से 17 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
88 परिसंपत्तियों की बिक्री से सुलझेगा पुराना विवाद
सहारा इंडिया कमर्शियल कारपोरेशन लिमिटेड की याचिका सितंबर 2025 में हुए समझौते पर आधारित है, जिसमें सहारा समूह ने अपनी 88 परिसंपत्तियों को अदाणी ग्रुप (Adani Sahara Deal) को बेचने का प्रस्ताव दिया है। इसके तहत सहारा से मिलने वाली रकम सीधे “सहारा-सेबी रिफंड फंड” में जमा होगी। इस फंड की स्थापना वर्ष 2012 में उस विवाद के बाद की गई थी, जब सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन पर ओएफसीडी के जरिए 24,000 करोड़ रुपये जुटाने का आरोप लगा था।
अब तक सिर्फ 16 हजार करोड़ लौटाए गए
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2014 में आदेश दिया था कि सहारा समूह निवेशकों को उनकी राशि लौटाए। हालांकि सरकार की ओर से अब तक लगभग 16 हजार करोड़ रुपये ही लौटाए जा सके हैं। सहारा समूह अब शेष राशि चुकाने के लिए अपनी परिसंपत्तियां अदाणी ग्रुप (Adani Sahara Deal) को बेचने की दिशा में बढ़ रहा है। यदि सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलती है तो सहारा की प्रमुख संपत्तियां — मुंबई एयरपोर्ट के पास स्थित सहारा होटल, एंबी वैली टाउनशिप, लखनऊ स्थित सहारा सिटी और गुरुग्राम, नोएडा, कर्नाटक, बंगाल, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों की संपत्तियां अदाणी ग्रुप के अधीन हो जाएंगी।
अदाणी को रियल एस्टेट विस्तार में मिलेगा बड़ा लाभ
अदाणी ग्रुप की ओर से यह डील उसकी रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर रणनीति के विस्तार की दिशा में अहम साबित होगी। इस लेन-देन को सुचारू बनाने के लिए सहारा और अदाणी ग्रुप के बीच पहले ही एक प्रारंभिक समझौता हो चुका है। इसमें यह तय हुआ है कि कानूनी अड़चनों को न्यूनतम रखते हुए परिसंपत्तियों के हस्तांतरण की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जाएगी। देश के कॉर्पोरेट जगत में यह अब तक की सबसे अनोखी और बड़ी परिसंपत्ति बिक्री मानी जा रही है।