डॉ संजय शुक्ला
आज समूची दुनिया राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Father of the Nation Mahatma Gandhi) की जयंती वैश्विक महामारी कोरोना आपदाकाल में मना रही है। विचारणीय है कि जब समूची दुनिया के धर्म, विज्ञान, अर्थव्यवस्था,जनजीवन और राजनीतिक नेतृत्व कोरोना के सामने घूंटने टेंक रही हो तब महात्मा गांधी के विचार विश्व समुदाय और सरकारों को राह दिखा रही हैं।
दशकों पहले गांधी ने जिस ग्राम स्वराज और स्वावलंबन के विचार दिए थे वह अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और आपदा प्रबंधन में सरकार और आम नागरिकों के लिए अनिवार्यता बन रही है।कोरोनाकाल के हालिया दौर में जब दुनिया भर की अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिर रही है तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आपदा को अवसर में बदलने के लिए “आत्मनिर्भर भारत अभियान” का आगाज किया है तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गांव, गौठान, गोधन और गोबर को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के केंद्र मे लाने के लिये ” गोधन न्याय योजना”का आगाज किया है।
निःसंदेह दोनों योजनाओं के मूल में गांधी के ग्राम स्वराज का सपना है। हालिया दौर मे जब औद्योगिक क्रांति की मशाल मद्धिम हो चुकी है, बाजार और व्यवसाय बंद हैं तब भारत की अर्थव्यवस्था को गांव और कृषि ही दिशा दे रहे हैं। दरअसल गांधी जी का विचार था कि भारत की आत्मा शहरों में नहीं बल्कि सात लाख गांवों में वास करती है वे भारत को गांवों का गणराज्य मानते थे। उनका यह भी मानना था कि गांवों की आत्मनिर्भरता से ही देश की आत्मनिर्भरता संभव है, उनका विचार था कि स्वाधीन भारत में राजनीतिक व्यवस्था और आर्थिक विकास के केंद्र में गांव ही रहना चाहिए।
आजादी के आंदोलन के दौरान उन्होंने गांवों और ग्रामीणों की दुर्दशा और लाचारी देखी थी इसलिए उन्होंने स्वाधीन भारत के सत्ताधीशों को संदेश देने के लिये कहा था कि “दिल्ली भारत नहीं है अपितु असली भारत गांवों में बसता है।” गांधी के इस संदेश के पीछे दरअसल गांवो के स्वावलंबन और विकास के लिए सत्ता के विकेंद्रीकरण कर ग्राम सरकारों की मजबूत व्यवस्था स्थापित करने का भाव नीहित था। गांधी का अर्थशास्त्र स्वदेशी, ग्रामीण आत्मनिर्भरता, बड़े उद्योगों के बजाय कुटीर और छोटे उद्योगों को बढावा, उद्योगों में मशीनों की बजाय श्रम का इस्तेमाल था।
उनका मानना था कि उद्योगों का जाल केवल महानगरों और बड़े शहरों में ही नहीं बिछे बल्कि इनकी पहुंच छोटे शहरों, कस्बाई इलाकों और गांवों तक होनी चाहिए ताकि गांवों के मजदूर इन कारखानों में मजदूरी के बाद अपने गांव वापस लौट सकें। गांधी के गांवों के प्रति विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना साल 1920 में आजादी आंदोलन के दरम्यान “असहयोग आंदोलन” और “स्वदेशी आंदोलन” के दौर में था।
गौरतलब है कि देश मेंं कोरोना संक्रमण के शुुरूआती दौर में तबलीगी जमात के आपराधिक गलतियों के कारण जब संक्रमण का फैलाव दिल्ली से अन्य हिस्सों मे हुआ तब अनेक कट्टरपंथी ताकतों ने समूचे मुस्लिम समुदाय को अपने निशाने में ले लिया जिससे देश का सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने लगा। इस दौर में गांधी के सांप्रदायिक सद्भाव और हिंदू-मुस्लिम भाई चारे की भावना ने नफरत की आग को ठंडा कर दिया।गांधी का कहना था कि हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक तनाव की समस्या का हल अपने धर्म की अच्छी चीजों का पालन और दूसरे धर्म के लोगों और विचारों का सम्मान है।
उनका यह भी मत था कि अहिंसा को स्वीकार करने से ही दोनों समुदायों मेंं एकता स्थापित हो सकती है। कोरोना लाकडाउन के दौरान देश के विभिन्न शहरों से प्रवासी मजदूरों के भूखे-प्यासे पैदल घर वापसी के दौरान जिस तरह अनेक समाजसेवी संस्थाओं और स्वैच्छिक संगठनों ने इन मजदूरों की मदद की वह गांधी के संवेदना, सहिष्णुता और उदारता के विचारों का अनुसरण है। उल्लेखनीय है कि इस त्रासदी दी भरे दौर में पिछले छह महीनों से देश भर के डॉक्टर,पैरामेडिकल स्टाफ , स्थानीय प्रशासन, पुलिस, नगरीय प्रशासन जिस तरह इस संक्रमण के उपचार और नियंत्रण में जुटी हुई है यह गांधी के कर्मनिष्ठा और कर्तव्य पराणयता के विचारों का द्योतक है।
गौरतलब है कि गांधी सदैव निर्भयता और चुनौतियों से जूझने की सीख देते थे जिसकी वर्तमान महामारी के दौर मेंं सर्वाधिक जरूरत है। विचारणीय है कि कोरोना का भय जहाँ लोगों में बेचैनी और डर पैदा कर रहा है वहीं लाकडाउन के कारण लोगों के व्यवसाय मे नुकसान और हाथों से रोजगार छीन रहा है। फलस्वरूप लोग अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं या खुदकुशी कर रहे हैं तब उनकी यह प्रेरणा लोगों के लिए संबल बन रही है।
कोरोना महामारी के हालिया दौर में महात्मा गांधी के बताए सामुदायिक और व्यक्तिगत स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ साथ आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति, शाकाहार,व्यायाम और धार्मिक प्रार्थना इस रोग के रोकथाम और बचाव में देश और दुनिया के लिए प्रेरक बने हुए हैं। गौरतलब है कि दुनिया भर के चिकित्सा वैज्ञानिक इन दिनों कोविड संक्रमण से बचाव के लिए वैक्सीन के शोध व उपचार के दवाओं के खोज मेंं जुटे हैं फिलहाल अभी इसमें पूरी सफलता नहीं मिली है। इन परिस्थितियों मेंं गांधी के व्यक्तिगत और सामुदायिक अनुशासन की सीख सामयिक है।
आम नागरिक को आत्म अनुशासित होकर कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए निर्देेेशित सभी उपायों व सावधानियों जैसे मास्क का प्रयोग, सोशल डिस्टेसिंग का पालन व साबुन से बार-बार हाथ धोने व सेनेटाइजर के प्रयोग की आदत को अपनी दिनचर्या में शामिल करना जरूरी है। इस दौर मेंं जब कोरोना संक्रमित लोगों के साथ समाज और परिवार अछूत जैसा व्यवहार कर रहे हैं तब गांधी के अस्पृश्यता निवारण , पड़ोसियों और मरीजों के प्रति जिम्मेदारी, रूग्ण सेवा,दुखों को बांटने व सहयोग जैसे भाव इस भेदभाव को खत्म कर सकता है।
गांधी अपना काम खुद करते थे जैसे कमरे की सफाई, कपड़े धोना, शौचालय साफ करना आदि उनका यह अनुशासन अब होम क्वारंटाइन कोरोना मरीजों के लिए प्रेरणा बन चुकी है और उनकी दिनचर्या में शामिल है।महात्मा गांधी किफायत और अपनी जरूरतों को सीमित करने व गरीबोंं के प्रति दानशीलता के पक्षधर थे जिसकी वर्तमान सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य मेंं सर्वाधिक जरूरत है, वे गलतियों को स्वीकार करने और इससे सीख लेने की प्रवृत्ति के प्रबल पक्षधर थे ,देश के सभी सरकारों और राजनीतिक दलों को इस विचार को आत्मसात करने की महति आवश्यकता है।
आज जब देश और दुनिया के शिक्षण संस्थान बंद हैं तब गांधी की “नई तालीम” छात्रों के कौशल विकास और भविष्य निर्माण में सहायक होंगे ।बहरहाल गांधी महज एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा हैं जो कभी मर नहीं सकती बल्कि उनके विचारोंं की प्रासंगिकता हर काल में रहेगी चाहे वह दौर शांति ,युद्ध या आपदाकाल का हो। जयंती अवसर पर उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है।