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संपादकीय: अमेरिका की चौधराहट को चुनौती

Challenge to America's hegemony

Challenge to America's hegemony

Challenge to America’s hegemony: भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी सैन्य कार्यवाही करके न सिर्फ पाकिस्तान को सबक सिखाया है बल्कि आपरेशन सिंदूर चलाकर भारत ने पूरी दुनिया को अपनी सैन्य ताकत दिखाई है। भारत की सैन्य ताकत को देखकर खुद को दुनिया का चौधरी सझने वाले अमेरिका की चौधराहट को भी कड़ी चुनौती मिली है जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दोस्ती का दम भरते थे अब वे भारत से दूरी बनाने लगे हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने पहले तो भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष विराम का के्रडिट लेने की बचकानी कोशिश की और यह दावा कर दिया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराया है। किन्तु भारत ने इस पर कड़ा रूख अख्तियार किया और जवाबी कार्यवाही के रूप में अमेरिका को निर्यात किये जाने वाले कई समानों में टैक्स बढ़ा दिया। इससे डोनाल्ड ट्रंप की अक्ल ठिकाने लग गई और उन्होंने अपने बयान से पलटी मारते हुए यह सफाई दी कि उन्होंने संघर्ष विराम में सहयोग किया था ताकि परमाणु युद्ध के खतरे को टाला जा सके।

जबकि हकीकत तो यह है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ ही नहीं तो ऐसे में परमाणु युद्ध की दूर दूर तक कोई संभावना ही नहीं थी। डोनाल्ड ट्रंप ने बेशक पाकिस्तान पर दबाव बनाया होगा कि वह भारत के साथ संघर्ष विराम कर ले। इसके पीछे भी अमेरिका का ही हित छिपा था। दरअसल आपरेशन सिंदूर के चलते अमेरिका के पाकिस्तान को दिये गये लड़ाकू विमानों की धज्जियां उड़ रही थी और यही हाल पाकिस्तान को चीन से मिले हथियारों का हो रहा था जिसे भारतीय सेना चुटकी बजाने जैसी आसानी से नष्ट कर रही थी।

भारतीय सेना के इस पराक्रम से अमेरिका और चीन इसी वजह से बौखला गये थे कि उनके हथियारों की पोल दुनिया के सामने खुल रही थी इसलिए हथियारों के बाजार में अमेरिका और चीन का दबदबा खत्म होने का खतरा पैदा हो रहा थी। नतीजतन दोनों ने पाकिस्तान पर सीजफायर के लिए दबाव बनाया वैसै तो पाकिस्तान खुद ही आपरेशन सिंदूर से दहल गया था और उसने भारत के सामने गिड़गिड़ाते हुए संघर्ष विराम का प्रस्ताप रखा था जिसे भारत ने फिलहाल कबूल कर लिया है। लेकिन भारत ने अपनी शर्तें भी रखी है।

सीधी सी बात है कि भारत ने अमेरिका की चौधराहट कबूल नहीं कि और उसने स्वविवेक से संघर्ष विराम का निर्णय लिया है। अमेरिका अब इस बात को समझ चुका है कि भारत आज की तारीख में बहुत बड़ी ताकत बन चुका है और वह अब अमेरिका के झांसे में नहीं आने वाला है। बेशक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बहुत अच्छे व्यापारी हैं लेकिन कुटनीति में वे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने कहीं नहीं टिकते। डोनाल्ड टं्रप के लिए अगर अमेरिका फस्ट है तो पीएम मोदी के लिए भी भारत फस्ट है। रही बात अमेरिका की तो अब वह महाशक्ति नहीं रह गया है। उसकी अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है और अमेरिका की स्थिति यह है कि अब उसे अपने दुश्मनों को भी गले लगाने पर बाध्य होना पड़ रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप सऊदी अरब के दौरे पर जाकर सिरया के तानाशाह से भी हाथ मिलाने पर बाध्य हो गये हैं। सिरिया के इस तानाशाह को अमेरिका ने ही आतंकवादी घोषित किया था और उनके सिर पर करोड़ो डॉलर का इनाम रखा था लेकिन अब डोनाल्ड ट्रंप को सऊदी अरब में अपना व्यापार बढ़ाने के लिए उस तानाशाह से भी गले मिलना पड़ रहा है। इसी से स्पष्ट है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था लडख़ड़ाने लगी है। डोनाल्ड ट्रंप की बात तो छोटे छोटे देशो के हुक्मरान भी नहीं सुनते ऐसे में भारत भला कैसे डोनाल्ड टं्रप के कहने पर संघर्ष विराम के लिए राजी हो सकता था।

आपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी दुनिया ने भारत की ताकत देख ली है और अब विश्व के कई देश अमेरिका और चीन को छोड़कर भारत से हथियार खरीदने की योजना बना रहे हैं। ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के लिए तो दुनिया के आधा दर्जन से ज्यादा देश कतार में लग चुके हैं। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी और चीनी हथियारों के प्रति दुनिया में दिलचस्पी कम होने लगी है अमेरिका को हथियारों का जो एक बड़ा आर्डर मिला था वह भी कैंसल हो गया है।

जबकि दूसरी ओर भारत के हथियारों की मांग बढऩे लगी है। भारत उसएलिट क्लब में शामिल हो गया है। जो दुनिया भर में हथियारों का निर्यात करने में अग्रणी रहे हैं। अब तक इसमें अमेरिका रूस और चीन ही थे। अब इसमें चौथा देश भारत बन गया है। पिछले एक दशक के दौरान भारत ने अत्याधुनिक हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है और अब तो वह हथियारों का निर्यात भी करने लगा है।

भारत की यह बढ़ती ताकत ही अमेरिका और चीन की आंखे में खटक रही है। इस बीच भारत ने रूस के साथ एयर डिफेन्स सिस्टम के बारे में एक और समझौता कर लिया है। अब भारत और रूस मिलकर एस-५०० बनाने पर सहमत हो गये हैं। और इसका निर्माण भी भारत में ही किया जाएगा जो एस-४०० से भी ज्यादा खतरनाक होगा। जाहिर है अमेरिका की चौधराहट को अब भारत ही कड़ी चुनौती देने की स्थिति में आ गया है।

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