Temple Donation Verdict : मंदिर का धन देवता का, सरकार का नहीं – हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, तय हुआ दान राशि का सही उपयोग

Temple Donation Verdict

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Temple Donation Verdict : हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंदिरों की दान राशि के दुरुपयोग पर ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा है कि “मंदिर का धन देवता का है, सरकार का नहीं।” अदालत ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि भक्तों द्वारा दिया गया दान सिर्फ धार्मिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों में ही खर्च किया जा सकता है।

इस राशि का प्रयोग न तो सड़कों, पुलों या सरकारी भवनों के निर्माण में किया जाएगा और न ही किसी निजी व्यावसायिक लाभ के लिए। न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैंथला की खंडपीठ ने यह फैसला 10 अक्टूबर को जनहित याचिका पर सुनाया, जिससे मंदिर निधियों के पारदर्शी और धर्मसम्मत उपयोग की नई राह खुल गई है।

भक्तों का विश्वास पवित्र, सरकारी हस्तक्षेप नहीं

कोर्ट ने कहा कि भक्त मंदिरों को इस विश्वास के साथ दान देते हैं कि यह धन देवता की सेवा, धर्म के प्रसार और समाज कल्याण में उपयोग होगा। जब सरकार या प्रशासन इस धनराशि को अपने नियंत्रण में लेता है, तो यह उस विश्वास के साथ विश्वासघात है जो भक्त देवता में रखते हैं। अदालत ने टिप्पणी की कि मंदिर की निधि किसी व्यक्ति या संस्था की संपत्ति नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था का प्रतीक है।

दान राशि का प्रयोग अब इन कार्यों में होगा

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में 31 प्रमुख बिंदु तय किए, जिन पर मंदिर की दान राशि खर्च की जा सकेगी। इनमें प्रमुख हैं —

वेदों और योग की शिक्षा के लिए गुरुकुलों की स्थापना,

गोशालाओं का संचालन और पशुधन की देखभाल,

अस्पृश्यता मिटाने और अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने की पहल,

पंडितों और पुजारियों के प्रशिक्षण केंद्र,

हिंदू दर्शन पर छात्रवृत्तियाँ और विश्वविद्यालयों में अध्ययन सीटें,

यज्ञशालाओं और सामूहिक अनुष्ठान स्थलों का निर्माण,

वृद्धाश्रमों, अनाथालयों और निराश्रित गृहों की सहायता,

नेत्र जांच, रक्तदान शिविर और जनसेवा संबंधी आयोजन।

अदालत ने कहा कि दान की राशि का उपयोग केवल धर्म, समाज और मानवीय उत्थान से जुड़े उद्देश्यों में होना चाहिए, किसी निजी लाभ या राजनीतिक हित में नहीं।

पारदर्शिता होगी अनिवार्य

न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि सभी मंदिर ट्रस्टों को अपनी मासिक आय-व्यय रिपोर्ट, परियोजनाओं का विवरण और लेखा परीक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करनी होगी। यह रिपोर्ट नोटिस बोर्ड या मंदिर की वेबसाइट पर डालनी होगी ताकि हर भक्त यह देख सके कि उसका दान कहाँ और कैसे उपयोग हो रहा है। अदालत ने इसे “जनविश्वास की रक्षा का आवश्यक कदम” बताया।

इन कार्यों में नहीं होगा दान राशि का उपयोग

हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि – दान राशि सरकारी सड़कों, पुलों या भवनों के निर्माण में खर्च नहीं होगी, किसी निजी व्यवसाय, उद्योग, होटल या मॉल संचालन के लिए नहीं दी जाएगी, मंदिर अधिकारियों या आयुक्तों के लिए वाहन खरीदने पर खर्च नहीं होगी और मंदिर में आने वाले वीआईपी अतिथियों के उपहार या सम्मान सामग्री पर भी नहीं। अदालत ने कहा कि यदि किसी ट्रस्टी ने मंदिर निधि का दुरुपयोग किया या करवाया, तो उससे पूरी राशि वसूली जाएगी और वह व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होगा।

धर्म, न्याय और पारदर्शिता का संगम

यह फैसला केवल एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि धार्मिक संस्थानों में वित्तीय जवाबदेही और नैतिक मर्यादा की नई परंपरा है। कोर्ट ने कहा कि “दान का धन सार्वजनिक नहीं, आध्यात्मिक उत्तरदायित्व है।” इससे न केवल मंदिरों की पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि भक्तों का विश्वास भी और गहरा होगा। यह निर्णय आने वाले समय में देश के अन्य राज्यों में भी धार्मिक निधियों के नियमन और जवाबदेही की दिशा में उदाहरण बन सकता है।

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