Barahkhadi Education Chhattisgarh : प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में फिर गूंजेगी बारहखड़ी, बच्चों की मातृभाषा और उच्चारण पर होगा खास फोकस
Barahkhadi Education Chhattisgarh
Barahkhadi Education Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ के सभी प्राथमिक स्कूलों में अब बच्चों को फिर से बारहखड़ी (Barahkhadi Education Chhattisgarh) की पढ़ाई कराई जाएगी। स्कूल शिक्षा विभाग ने यह निर्णय शिक्षा मंत्री के निर्देश पर लिया है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) के माध्यम से इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है।
इस योजना का उद्देश्य बच्चों की मातृभाषा पर पकड़ मजबूत करना, सही उच्चारण सिखाना और भाषा के प्रति जिज्ञासा बढ़ाना है। अब राज्यभर के स्कूलों में एक बार फिर “क, का, कि, की, कु, कू…” की स्वर-ध्वनियां गूंजेंगी।
बुनियादी शिक्षा को मिलेगी पारंपरिक शक्ति
डीपीआइ ऋतुराज रघुवंशी ने सभी संभागीय संयुक्त संचालक, जिला शिक्षा अधिकारी और जिला मिशन समन्वयकों को निर्देश जारी किए हैं। शिक्षा विभाग का मानना है कि बारहखड़ी (Barahkhadi Education Chhattisgarh) बच्चों की भाषाई समझ को मजबूत करने का एक पारंपरिक और अचूक तरीका है। इससे विद्यार्थियों में शब्दज्ञान, लेखन कौशल और भाषा प्रयोग की दक्षता में स्वाभाविक सुधार होगा। विभाग ने स्पष्ट किया है कि बारहखड़ी को केवल पाठ्यक्रम का हिस्सा न मानकर इसे “भाषाई कौशल निर्माण” के मुख्य उपकरण के रूप में अपनाया जाएगा।
कक्षा 1 से 4 तक लागू होगी योजना
यह योजना प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों कक्षा पहली से चौथी तक के लिए लागू की गई है। अधिकारियों का कहना है कि बारहखड़ी बच्चों में सही उच्चारण और शब्द गठन की नींव रखने का सबसे प्रभावी तरीका है।
इस अभ्यास से विद्यार्थी हिंदी भाषा के हर वर्ण और मात्रा की ध्वनि को सही ढंग से समझ सकेंगे, जिससे उनकी भाषा की जड़ें और मजबूत होंगी।
कक्षावार विभाजन और उद्देश्य
कक्षा स्थिति उद्देश्य
पहली और दूसरी अनिवार्य शिक्षण भाषा सीखने की नींव को मजबूत करना
तीसरी और चौथी सुधारात्मक शिक्षण भाषा संबंधी कमजोरियों को दूर करना और उच्चारण में सुधार लाना
पारंपरिक पद्धति का आधुनिक रूप
शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा कि “क, का, कि, की, कु, कू…” वाला पारंपरिक क्रम बच्चों को वर्ण और मात्रा के संयोजन को तार्किक ढंग से सिखाता है। यह पद्धति शब्दज्ञान और ध्वनि विज्ञान को समझने में सबसे प्रभावी रही है। विभाग का मानना है कि पुरानी और उपयोगी शिक्षण पद्धतियों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ना आवश्यक है, ताकि बच्चों की मातृभाषा पर पकड़ बढ़े और भाषाई त्रुटियां कम हों।
भाषा और संस्कृति से जुड़ाव का माध्यम
शिक्षा विभाग ने कहा कि बारहखड़ी के अभ्यास से न केवल बच्चों का उच्चारण सुधरेगा, बल्कि वे अपनी मातृभाषा से भावनात्मक रूप से भी जुड़ेंगे। यह पहल बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने और भाषाई अभिव्यक्ति को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
