EPF Pension Withdrawal Rule Change : अब नौकरी छूटने के तीन साल बाद ही निकाल सकेंगे ईपीएफ पेंशन फंड की राशि, सामाजिक सुरक्षा के लिए बड़ा फैसला

EPF Pension Withdrawal Rule Change

EPF Pension Withdrawal Rule Change

EPF Pension Withdrawal Rule Change : कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने देशभर के कर्मचारियों से जुड़ा एक अहम फैसला लिया है। अब नौकरी छूटने के दो महीने बाद नहीं, बल्कि तीन साल (36 महीने) बाद ही पेंशन फंड की निकासी की अनुमति मिलेगी (EPF Pension Withdrawal Rule Change)। यह निर्णय संगठन के केंद्रीय न्यासी बोर्ड ने लिया है, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों के सामाजिक सुरक्षा कवच को मजबूत बनाना और पेंशन प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है।

पहले दो महीने में मिलती थी छूट, अब 36 महीने का इंतजार जरूरी

अभी तक EPFO के नियमों के तहत कर्मचारी नौकरी जाने के दो महीने बाद अपने पेंशन फंड (EPS) की राशि निकाल सकते थे। लेकिन अब यह व्यवस्था बदल गई है। नए प्रावधान के अनुसार, सदस्य को नौकरी छूटने के बाद 36 महीनों तक प्रतीक्षा करनी होगी।

बोर्ड ने यह कदम उन लोगों की प्रवृत्ति को रोकने के लिए उठाया है, जो थोड़े समय के लिए नौकरी छोड़ते ही अपने पेंशन फंड को निकाल लेते हैं, और बाद में दूसरी नौकरी मिलने के बावजूद 10 साल की न्यूनतम सेवा अवधि पूरी नहीं कर पाते, जिससे वे भविष्य में पेंशन पाने के अधिकार से वंचित रह जाते हैं।

 “सदस्य की पूंजी उसकी है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी” — श्रम मंत्री

केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने इस निर्णय को संतुलित और दीर्घकालिक हित में बताया। उन्होंने कहा कि ईपीएफ की राशि सदस्य की निजी पूंजी है, इसलिए न्यूनतम बैलेंस के अलावा शेष रकम निकालने की छूट दी गई है। लेकिन पेंशन फंड का मकसद तत्काल नकदी नहीं, बल्कि भविष्य की स्थिरता है।

उन्होंने कहा, “सामाजिक सुरक्षा भी व्यक्ति की कमाई जितनी ही जरूरी है। यही कारण है कि अब पेंशन फंड की निकासी के लिए तीन साल की प्रतीक्षा अवधि तय की गई है।”

ईपीएफओ के पास कुल 27.70 लाख करोड़ रुपये की निधि

वर्तमान में ईपीएफओ के पास कुल 27.70 लाख करोड़ की निधि है। इसमें से

18 लाख करोड़ भविष्य निधि (Provident Fund),

9 लाख करोड़ पेंशन फंड, और

70 हजार करोड़ बीमा फंड के रूप में है।

संगठन के अनुसार, इतनी बड़ी राशि का उद्देश्य केवल निकासी नहीं बल्कि दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा देना है।

75% सदस्य, अंतिम निपटान के वक्त 50 हजार रुपये भी नहीं बचा पाते

श्रम मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश कर्मचारी अपने भविष्य निधि खाते में बहुत कम बचत रखते हैं।

50% सदस्यों के खातों में अंतिम निपटान के समय केवल 20,000 से भी कम राशि होती है।

75% के खातों में 50,000 से कम, जबकि

87% सदस्यों के पास 1 लाख से कम की राशि होती है।

इतना ही नहीं, औसतन 75% सदस्य पेंशन फंड की रकम चार साल के भीतर ही निकाल लेते हैं, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें वित्तीय असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। इन्हीं आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए EPFO ने यह 36 महीने की बाध्यता लागू की है।

सात करोड़ आवेदनों में छह करोड़ को दी गई मंजूरी

वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान EPFO को सात करोड़ निकासी आवेदन प्राप्त हुए। इनमें से

एक करोड़ आवेदन खारिज हुए, जबकि छह करोड़ आवेदनों को मंजूरी दी गई।

इनमें से 3.24 करोड़ आवेदन बीमारी के आधार पर निकासी से जुड़े थे। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अधिकांश सदस्य अपनी EPF राशि को आपात स्थितियों या तत्काल जरूरतों में खर्च कर देते हैं, जिससे भविष्य में उनके पास स्थायी आर्थिक सुरक्षा नहीं बचती।

दीर्घकालिक सुरक्षा की दिशा में बड़ा कदम

नई नीति को विशेषज्ञ एक संरचनात्मक सुधार के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि यह फैसला युवाओं में लघु अवधि के लाभ की प्रवृत्ति को रोककर, दीर्घकालिक बचत संस्कृति को बढ़ावा देगा। पेंशन फंड की राशि को सुरक्षित रखने से न केवल भविष्य में बेहतर आर्थिक स्थिरता मिलेगी, बल्कि यह देश में औपचारिक रोजगार क्षेत्र की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को भी मजबूत बनाएगा।

क्या रहेगा असर

नौकरी छोड़ने के बाद 36 महीने तक पेंशन फंड निकासी नहीं होगी।

पेंशन पात्रता के लिए 10 साल की सेवा अवधि पूरी करने का अवसर बढ़ेगा।

पेंशन फंड की स्थिरता और दीर्घकालिक निवेश को बल मिलेगा।

सदस्य रिटायरमेंट पर सम्मानजनक राशि के हकदार बन सकेंगे।