27 दिनों तक चलने वाले उत्सव में 22 विग्रहों को तीन रथों में विराजित कर कराई जाती है परिक्रमा
जगदलपुर (बस्तर)/नवप्रदेश। Chhattisgarh Jagdalpur Bastar’s world famous ‘Bastar Goncha’ inaugurated: छत्तीसगढ़ के बस्तर में हर साल मनाये जाने वाला विश्व प्रसिद्ध अनूठी ‘बस्तर गोंचा’ प्रांरभ हो गया है। ‘बस्तर गोंचा’ में 22 विग्रहों को तीन रथों में विराजित कर परिक्रमा कराई जाती है। बाँस से निर्मित तुपकी से देव विग्रहों को सलामी देना, बस्तर के अलावा भारत में कहीं और परिलक्षित नहीं होता। इस अनूठी परंपरा को देखने देश-विदेश के सैलानी बस्तर खींचे चले आते हैं। जेष्ठ पूर्णिमा के दिन देव स्नान का पालन किया जाता है।
बस्तर के जाने-माने वरिष्ठ साहित्यकार रूद्रनारायण पाणीग्रही ने बताया कि (Chhattisgarh Jagdalpur Bastar’s world famous ‘Bastar Goncha’ inaugurated) जगन्नाथ मंदिर के गर्भ ग्रह से भगवान जगन्नाथ बलभद्र तथा सुभद्रा देवी के विग्रहों को 108 कलश जल से स्नान कराया जाता है तथा पूजा आराधना के बाद उन्हें अनसर गृह में प्रवेश कराया गया इसके साथ ही आगामी 15 दिनों के लिए दर्शन वर्जित किया जाता है।
रियासत कालीन अनोखी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध
उन्होंने बताया कि रियासत कालीन बस्तर गोंचा अपनी (Chhattisgarh Jagdalpur Bastar’s world famous ‘Bastar Goncha’ inaugurated) अनोखी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, लकड़ी से निर्मित विशाल रथों में जगन्नाथ बलभद्र तथा सुभद्रा देवी के 22 प्रतिमाओं को विराजित करके गुंडिचा मंडप में भक्तों के दर्शनार्थ विराजित किया जाता है। साथ ही नौ दिनों तक विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन करते हुए दशमी तिथि को पुनः प्रतिमाओं को विराजित कर श्री मंदिर में स्थापित किया जाता है।
आयुर्वेद सम्मत जड़ी बूटियों का भोग अर्पित
श्री पाणीग्रही ने बलाया कि इस अवधि में भगवान के दर्शन वर्जित कर दिया जाता हैस अनसर काल में भगवान को आयुर्वेद सम्मत जड़ी बूटियों का भोग अर्पित किया जाता है तथा भक्तों को भी काढा के रूप में प्रसाद वितरित किया जाता है। माना जाता है कि वर्षा काल में वर्षा ऋतु के प्रारंभ होते ही इस काढा रुपी औषधि का सेवन लाभकारी माना जाता है। आगामी छह जुलाई को नेत्रोत्सव विधान के साथ पुनः जगन्नाथ बलभद्र तथा सुभद्रा देवी के दर्शन होंगे तथा सात जुलाई को श्री गोंचा रथ यात्रा का पालन किया जाएगा।