जौनपुर/ए.। महिलाओं (women work in crematorium) को हिंदू संस्कृति में आमतौर पर शमशान जाने की अनुमति नहीं होती। हालांकि बदलते सामाजिक परिदृश्य में अब बेटियां भी अपने मां-पिता के देहांत पर उन्हें मुखाग्नि देने लगी हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के जौनपुर (jaunpur crematorium) देश का एक शमशानघाट ऐसा भी है जहां, जहां दो महिलाएं ऐसी भी हैं, जो शमशान घाट में ही रात दिन काम करती हैं।
जब तक शव पूरा जल नहीं जाता तब तक होती हैं चिता के पास
ये दो महिलाएं (women work in crematorium) शवों के लिए चिता जमाने के साथ ही शव के पूरी तरह जलने तक चिता के पास होती हैं, फिर रात क्यों न हो जाए।
पिछले सात वर्ष से ये दोनों महिलाएं शमशान घाट पर काम कर रही हैं। अपना व अपने बच्चों का पेट पालने के लिए शमशान घाट पर इन्हें काम करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर (jaunpur crematorium) में गंगा-गोमती के तट पर स्थित शमशान घाट में ये महिलाएं काम कर रही हैं।
इस शमशान घाट में हर दिन 8-10 शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। इन सभी शवों की अंत तक कि जिम्मेदारी इन दो महिलाओं पर ही होती है। शुरुआत में पुरुषों ने इन महिलाओं के इस काम का काफी विरोध किया, लेकिन इन महिलाओं ने किसी की नहीं सुनी।
पति के निधन के बाद बच्चों का पेट पालने का था संकट
सात साल पहले पति का निधन हो जाने के कारण इन महिलाओं पर अपने व अपने बच्चों के लिए दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया। इन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था कि आखिर क्या किया। अंत में इन महिलाओं ने शमशान में काम करने का निर्णय लिया। कुछ लोगों ने धर्म का हवाला देते हुए इन महिलाओं का शमशान भूमि से काम छुड़ाना चाहा। लेकिन इन महिलाओं ने अपने छोटे बच्चों का हवाला देकर अपना काम जारी रखा।