कंचना यादव। Women Empowerment : कहने के लिए तो भारत की आधी आबादी महिलाओं की है, फिर भी यह दुर्भाग्य की बात है कि सिर्फ कुछ ही लोग महिला रोजगार के बारे में बात करते हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अगर महिलाओं को रोजगार मिलता है तो भारत का विकास दर दुगना हो सकता है। सरकारें विकास की बात तो करती हैं लेकिन पुरुष प्रधान देश में महिलाओं के श्रम और रोजगार को नजरअंदाज भी कर रहीं हैं। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 16 के तहत पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार निहित हैं, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था जिसमे साफ लिखा गया है कि लिंग के आधार पर भेदभाव वर्जित है, इसके बावजूद भी हर एक क्षेत्र में लिंगभेद साफ दिखाई देता है।
कोरोना जैसे महामारी के दौर में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में सबसे ज्यादा महिलाएँ प्रभावित हुयी हैं, जिनपर विशेष रूप से ध्यान देने की जरुरत है, लेकिन सरकारों को चिंता सिर्फ सरकार बनाने और सरकार बचाने में लगी हुयी है। कोरोना महामारी के दौरान विश्व स्तर पर 2.4 करोड से अधिक लड़कियाँ स्कूल छोडऩे के कागार पर हैं और भारत में इसका एक बड़ा हिस्सा है। लड़को से ज्यादा लडकियाँ प्रभावित हुयी हैं, ये कहीं न कही पितृसत्ता की वजह से हुयी है क्योंकि पितृसत्ता वह सामाजिक ढांचा है जो नजर में तो कभी-कभी नहीं आता है लेकिन सबसे प्रभावी संरचना होता है। शिक्षा में लिंगभेद को सम्बोधित करने की जरुरत है चाहे वह सामाजिक, वित्तीय या भावनात्मक रूप से क्यों न हो।
मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन के द्वारा कराये जाने वाले नेशनल सैंपल सर्वे में लेबर फ़ोर्स पार्टिसिपेशन रेट 2019-20 में महिला श्रमिक सहभागिता की औसत दर 9 16.84 प्रतिशत रहा है जबकि पुरुष श्रमिक सहभागिता की औसत दर 956.52 प्रतिशत रहा है। फिर भी इस बात की ना तो केंद्र सरकार को और ना ही किसी राज्य सरकार को चिंता है, की श्रम बाज़ार में महिला भागीदारी को सुनिश्चित करे।
द सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के डाटा के मुताबिक शहरी बेरोजगारी अगस्त 2021 में बढ़कर 9.78 प्रतिशत हो गई, जो जुलाई 2021 में 8.3 प्रतिशत और जून 2021 में 10.07 प्रतिशत थी। जब रोजगार में इतनी तेजी से गिरावट आएगी तो आप महिलाओं के लिए पुरुषों के समान कार्य अवसरों की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? इसलिए महिलाओं के लिए रोजगार सुनिश्चित के लिए सबसे पहले जरुरी है रोजगार बढ़ाना।
भारत में पिछले कुछ दशकों से, महिलाएँ लगातार काम कर रही हैं, उनकी प्रतिभा, समर्पण और उत्साह से भारत के आर्थिक विकास में समृद्धि हुई है। वर्तमान में, भारत में 432 मिलियन कामकाजी उम्र की महिलाएँ हैं, जिनमें से 343 मिलियन भुगतान औपचारिक काम में नहीं हैं। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि बस महिलाओं को समान अवसर देकर भारत 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 770 अरब डॉलर जोड़ सकता है। यह एक चिंता का विषय है कि जहाँ भारत में महिला आबादी आधी है वहीँ भारत के सकल घरेलु उत्पाद में महिला योगदान सिर्फ 18% है।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं का योगदान (Women Empowerment) वर्तमान में दुनिया में सबसे कम है, शहरी क्षेत्रों में आस-पास रोजगार का अवसर उपलब्ध होने के कारण शहरों में महिलाओं की भागीदारी ग्रामीण महिलाओं की तुलना में अधिक है। वहीँ ग्रामीण क्षेत्रों में पारिवारिक निर्णयों में पुरूषों का दबदबा होने के कारण युवा लड़कियों को घर से दूर जगहों पर ना तो पढऩे के लिए और ना ही काम के लिए भेजा जाता है। हमारा मानना है कि महिलाओं को समान अवसर दिया जाना चाहिए, क्योंकि हम एक साथ काम करके विकास और प्रगति को गति दे सकते हैं। पूंजी तक कम पहुँच के बावजूद, महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में वित्तीय प्रदर्शन के उच्च स्तर को साबित किया है।
यह भी बार-बार साबित हुआ है कि महिलाएँ “कम जोखिम और उच्च रिटर्न” श्रेणी बनाती हैं। वैश्विक आर्थिक मंच द्वारा जारी ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 में 156 देशों की सूची में भारत 140वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट के हिसाब से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर में बहुत तेजी से गिरावट हुई है। इस क्षेत्र में लैंगिक भेद अनुपात तीन प्रतिशत और बढ़कर 32.6 प्रतिशत पर पहुँच गया है। महिला श्रम बल भागीदारी दर 24.8 प्रतिशत से गिर कर 22.3 प्रतिशत रह गई। पेशेवर और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका घटकर 29.2 प्रतिशत हो गई है। वरिष्ठ और प्रबंधक पदों पर भी महिलाओं की भागीदारी (Women Empowerment) में भारी कमी आयी है। वरिष्ठ और प्रबंधक पदों पर केवल 14.6 प्रतिशत महिलाएँ हैं। केवल 8.9 फीसद कंपनियाँ हैं जहाँ शीर्ष प्रबंधक पदों पर महिलाएँ हैं।
लैंगिक भेदभाव की जड़ें सामाजिक और राजनीतिक कारणों से मजबूत होती जा रही हैं और हम विश्व स्तर पर सतत विकास में लैंगिक भेदभाव को दूर करने की बात कर रहे हैं। ऐसे में सरकार को सोचना होगा कि कैसे शिक्षा और रोजगार के माध्यम से लैंगिक समानता को लाकर विश्व में सतत विकास का सपना पूरा कर पाएंगे नहीं तो एकबार लैंगिक असमानता हमारे लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी। एक शांतिपूर्ण और सुंदर विश्व की कल्पना बिना लैंगिक समानता के नहीं की जा सकती। जब तक लैंगिक समानता नहीं होगी, तब तक हम विकास के पैमाने को पूरा नहीं कर सकते।
भारत में मनचाही नौकरी ना कर पाना भी एक बहुत बड़ी समस्या है, बहुत सारी ऐसी महिलाएँ हैं जो नौकरी करना चाहती हैं लेकिन उन्हें मनचाही नौकरी नहीं मिलती है, जिसकी वजह से वह बेरोजगार रह जाती हैं। मनचाही नौकरी की समस्या सिर्फ महिलाओं में ही नहीं बल्कि अधिकांश पढ़े लिखे युवा वर्ग में है, जो बेरोजगारी का एक अंश बन गया है।
यदि महिलाएँ पूरा दिन घर में बेगार परिश्रम करने के बजाय पारिश्रमिक अर्जित करने वाली श्रम शक्ति का हिस्सा बनें तो इससे परिवार की आय बढ़ेगी और घरेलू निर्णयों में महिलाओं की भूमिका भी बढ़ेगी।