राजीव खंडेलवाल
Who is insulting the creator of the Constitution Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar today?: आधुनिक भारत देश के ”लौह पुरुष” कहे जाने वाले ”चाणक्य” गृहमंत्री अमित शाह का लोकसभा में 11 सेकंड का डॉ भीमराव अंबेडकर के संबंध में कहा गया कथन का वीडियो पूरे देश में विपक्ष द्वारा वायरल करवाया गया। जिसे पहले कांग्रेस, फिर पूरे विपक्ष ने लपक कर उसे डॉक्टर अंबेडकर का अपमान ठहरा दिया। पूरे देश में डॉ अंबेडकर को लेकर यह बहस चल गई की उसका कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे अपमान किया। इतिहास खंगाला जाने लगा।
मीडिया में बहस बाजी से लेकर देश के आम लोगों के बीच इस पर चर्चा होने लगी। दोनों पक्ष अंबेडकर के अपमान की घटनाओं को ‘इतिहास’ से निकाल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों की झड़ी लगा दी हैं। साथ ही दोनों पक्ष अपने को डॉ. अंबेडकर का झंडाबरदार कहलाने का दावा करते है, वो सिर्फ इसलिए कि इस देश में वर्तमान में कोई ”माई का लाल” राजनेता या पार्टी (कुछ अपवादों को छोड़कर) नहीं है जो डॉ. अंबेडकर का अपमान करने का सोच भी सकती है? क्योंकि वर्तमान वोट की राजनीति के चलते 17 प्रतिशत दलित वर्ग जो प्राय: अंबेड़कर वादी माना जाता है, को नाराज नहीं कर सकता है। भला “अपना घर जला कर उजाला कौन करता है”। अत: यह विशुद्ध राजनीति के, नूरा कुश्ती या दांव पेंच के अलावा कुछ नहीं द्य
डॉ. अंबेडकर के समय ”गुलामी” नहीं, ”स्वतंत्र विचारों” की राजनीति?
डॉ. अंबेडकर पर चली बहस से एक फायदा जरूर हुआ कि देश की नई पीढ़ी को डॉक्टर अंबेडकर के बाबत बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई जो शायद पहले उन्हें नहीं थी। इस बहस ने इस बात को भी सिद्ध किया उस जमाने (वर्ष 1920-56) में विचारों की स्वतंत्रता को मान, सम्मान व मान्यता दी जाती थी। खुला राजनीतिक वातावरण था। बोलने की स्वतंत्रता थी। प्रमुख नेता गण अपनी पार्टी में रहकर भी मुखरता से अपने व्यक्तिगत विचारों को दमदारी व दृढ़ता से रखते थे, जिस पर विचार विमर्श किया जाता था, जिन विचारों व बोलने की पार्टी फोरम में स्वतंत्रता का आज पूरी तरह से समापन हो चुका है।
कुछ कानून द्वारा जैसा की दल बदल विरोधी कानून और शेष नेताओं की सत्ता के प्रति ”गुलामी की मानसिकता” के चलते। शायद स्वतंत्र विचार उत्पन्न होना ही बंद हो गए हैं, तो उनके ”प्रकटीकरण” होने का प्रश्न कहां रह जाता है? हमारा पूरा सिस्टम ही कुछ इस प्रकार का है कि इसने व्यक्तियों की सोच को एक दायरे में कैद कर दिया है। लोग सोच ही नहीं सकते कि जो कुछ चल रहा है, उसके अलावा, उससे हट कर या उससे बेहतर भी कुछ हो सकता है) ”मूंड़ी गयी भेड़ की तरह अमीर” इन नेताओं पर सिर्फ एकमात्र सत्ता में कैसे बने रहे यह तत्व हावी है और उसके लिए शब्दावली व कार्यों का ”पराक्रम” नहीं ”परिक्रमा” और अंध गुणगान की ही आवश्यकता मात्र रह गई है।
विपक्ष द्वारा बार-बार तथाकथित गलत कथनों को दोहराना ही अपमान है
खैर मूल विषय पर चलते हैं। अमित शाह ने राज्यसभा में बाबा अंबेडकर का नाम लेकर 11 सेकंड की जो शब्दावली कही, वह भाषण के ”फ्लो” में बोला गया कथन मुंह से निकल गया, जिसे आगे भाषण में उन्होंने संभाल तो लिया, परंतु ”प्रथम ग्रासे मक्षिका पात” तो हो ही गया। “कंकड़ बीनते हीरा मिल गया हो” अमित शाह सहित पूरी बीजेपी उस शब्दावली को पूरे भाषण के संदर्भ में देखने के लिए कहकर उसे कदापि अपमान नहीं मान रही है। जबकि उलट इसके संपूर्ण विपक्ष उसे डॉक्टर अंबेडकर का अपमान ठहरा रहा है। विपक्ष के इसी हंगामें के चलते ”बाबा (साहब) के भरोसे फौजदारी करने वालों के बीच” संसद के मुख्य द्वार ”मकड़ द्वार” पर धक्का मुक्की की शर्मसार घटना हो गई जिसमें तीन सांसद घायल हो गए।
परिणाम स्वरूप भाजपा- कांग्रेस ने संसद मार्ग थाने में शिकायत की। यदि यह मान लिया जाए कि अमित शाह की शब्दावली डॉक्टर अंबेडकर के प्रति अपमानजनक हैं, जिन्हें वे तथा उनकी पार्टी अपमानजनक नहीं मान रही हैं, तब उन शब्दों को, जिन्हें विपक्ष गलत मान रहा है, भाजपा को कटघरे में खड़ा करने के लिए उनका बार-बार उपयोग करना क्या यह डॉ अंबेडकर का अपमान नहीं है? क्या विपक्ष उन शब्दों को बार-बार दोहराये बिना भाजपा को कटघरे में खड़ा नहीं कर सकता था? इसे इस उदाहरण से समझइए।
यदि किसी व्यक्ति ने किसी को गाली दी और उसका उल्लेख आप किसी तीसरे व्यक्ति से करते हैं, तब आप क्या गाली के शब्दों को ”रूबरू” कहते हैं या सिर्फ यह कहते हैं कि बुरी बुरी गाली दी गई? इस ”अंतर” को यदि विपक्ष समझ लेता तो डॉक्टर अंबेडकर का अपमान किए बिना समझदार तरीके से अपनी बात को सलीके से रख सकता था। वह यह कह सकता था जो कुछ अमित शाह ने संसद में डॉक्टर अंबेडकर का नाम लेकर कहा है, उन अपमानजनक शब्दों का उच्चारण किया जाना उचित नहीं है, लेकिन वे शब्द गलत है।
और तब अपनी बात आगे कहता। लेकिन विपक्ष का शब्दों को बार-बार दोहराना यह साबित करता है कि उनके ख़ुद के दिल में बाबा साहेब के प्रति कोई इज्जत नहीं है, ये केवल अपनी क्षुद्र राजनीति के चलते बाबा साहेब अम्बेडकर को कांधे पर उठाये घूमते हैं और शोर मचा कर मतदाता को गुमराह करने के अलावा इनका कोई और मक़सद नहीं है। क्योंकि अंतिम लक्ष्य तो मतदाता ही है।
हम टीवी डिबेटस में कई बार ऐसी स्थिति को देखते हैं, जब संसद में व संसद के बाहर नेतागण एक दूसरे को गाली बकते हैं, अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, तो उस पर बहस इसी तरह से की जाती है कि उन गाली के शब्दों को रूबरू दोहराया नहीं जाता है। चूंकि यहां पर विपक्ष उन शब्दों को बार-बार रूबरू कह रहा है, इसलिए आज तो डॉ आंबेडकर का अपमान विपक्ष उन शब्दों को दोहरा कर रहा है। गाते गाते वह कीर्तनिया बन जायेगा” तो वास्तव में अपमानजनक शब्दों को बार-बार दोहराना ही अपमान करना है। और फिलहाल यह काम बीजेपी नहीं विपक्ष कर रहा है।