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जब सीजेआई DY चंद्रचूड़ ने पहला केस लड़ा तो कितनी फीस ली? सीजेआई ने खुद बताया…

When CJI DY Chandrachud fought the first case, how much did he charge? CJI himself told…

CJI DY Chandrachud

-कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील के रूप में अपना पहला केस लड़ा

नई दिल्ली। CJI DY Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ अक्सर अपनी कठोर टिप्पणियों और फैसलों के लिए चर्चा में रहते हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ वर्तमान में भारतीय न्यायपालिका में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। क्या आप जानते हैं कि जब उन्होंने कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील के रूप में अपना पहला केस लड़ा तो उन्होंने अपने मुवक्किल से कितना शुल्क लिया?

कपिल सिब्बल, तुषार मेहता और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बड़े वकील एक सुनवाई में पेश होने के लिए लाखों रुपये लेते हैं। हालांकि एक वकील के तौर पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की पहली फीस जानकर आप हैरान रह जाएंगे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद अपनी पहली फीस का खुलासा किया।

सोमवार को विभिन्न राज्यों की बार काउंसिल नामांकन के लिए ‘अत्यधिक शुल्क’ वसूलने के मामले की सुनवाई कर रही थी। उस वक्त उन्होंने अपनी पहली फीस के बारे में बताया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अनुसार वह 1986 में हार्वर्ड से लौटे और बॉम्बे हाई कोर्ट में कानून का अभ्यास शुरू किया। उस वर्ष उनका पहला मामला न्यायमूर्ति सुजाता मनोहर के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए था।

इस केस के लिए उन्हें फीस के तौर पर सिर्फ 60 रुपये मिले थे। उस समय वकील आम तौर पर फीस भारतीय रुपयों में नहीं बल्कि सोने की मोहरों में लेते थे। वकीलों को उनके मुवक्किलों द्वारा दी गई केस ब्रीफिंग फाइलों में एक हरे रंग का डॉकेट शामिल था, जिस पर रुपये के बजाय ‘जीएम’ (सोने की मोहर) शब्द लिखा हुआ था। वहां वकील अपनी फीस ‘जीएम’ में लिखते थे।

उस समय एक सोने के सिक्के की कीमत लगभग 15 रुपये थी। डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने तब डॉकेट पर ‘4 जीएम’ लिखा था, जिसका मतलब था कि उन्हें 60 रुपये की फीस मिली थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रथा 25 साल पहले तक बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रचलित थी। कलकत्ता हाई कोर्ट में एक ‘जीएम’ की कीमत 16 रुपये थी।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) सुनवाई कर रहे थे। उस वक्त उनके साथ बेंच में जस्टिस जेबी पारदीवाला भी शामिल थे। उन्होंने विभिन्न राज्यों के बार काउंसिलों द्वारा अत्यधिक नामांकन शुल्क वसूलने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि अगर बार काउंसिल एडवोकेट्स एक्ट, 1961 में राज्य बार काउंसिल के लिए 600 रुपये और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के लिए 150 रुपये की फीस तय की गई है, तो क्या इससे अधिक फीस लगाई जा सकती है? साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्य बार काउंसिल द्वारा ली जाने वाली फीस में कोई एकरूपता नहीं है।

केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे कुछ राज्यों में शुल्क 15,000 रुपये है, जबकि ओडिशा जैसे अन्य राज्यों में यह 41,000 रुपये है। पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या बार काउंसिल अधिनियम में निर्दिष्ट राशि से अधिक शुल्क ले सकता है।

इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा नामांकन शुल्क बढ़ाना संसद का काम है। स्टेट बार काउंसिल को चलाने में होने वाले विभिन्न खर्चों के बारे में आपने जो मुद्दा उठाया है वह वैध है, लेकिन कानून बहुत स्पष्ट है। आप 600 रुपये से ज्यादा चार्ज नहीं कर सकते।

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