Water Crisis : हर साल की तरह इस साल भी ज्यों-ज्यों गरमी बढ़ रही है देश के विभिन्न राज्यों में जल संकट गहराने लगा है। जब जब गरमी बढ़ेगी स्थिति विकराल होती जाएगी। इस बीच कोयला संकट के कारण बिजली की भी कटौती हो रही है और इसका सीधा असर पेयजल की आपूर्ति पर पड़ रहा है। कई समस्या मूलक राज्यों में तो पानी के लिए त्राही-त्राही मचने लगी है। पानी के लिए सिर फटव्वल की स्थिति निर्मिज होने लगी है।
शासन प्रशासन हमेशा की तरह ही इस बार भी प्यास (Water Crisis) लगने पर कुंआ खोदने वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है जबकि होना तो यह चाहिए कि ग्रष्मकाल शुरू होने के पहले ही पेयजल संकट के समाधान के लिए ठोस कार्य योजना बना ली जाए लेकिन हर साल का यही रोना है कि जब जल संकट गहराने लगता है और लोग पानी की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आते है तब शासन प्रशासन कुंभकरणीय नींद से जागता है। अभी तो गर्मी शुरू हुई है आगे जब तापमान और ज्यादा बढ़ेगा और भूजल स्तर और ज्यादा नीचे चला जाएगा तो स्थिति विकट रूप धारण कर लेगी।
खासतौर पर ग्रमीण क्षेत्रों में तो पानी को लेकर हाहकार मच सकता है क्योंकि ग्रामीण आबादी हैंडपंप पर ही निर्भर होती है। भूजल स्तर गिरने से अधिकांश हैंडपंप खराब हो जाते है। तालाब और कुएं भी सूखने लगते है। ग्रामीणों को कई किलोमीटर दूर जाकर पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है या फिर प्रदूषित पानी का सेवन करने के लिए बाद्ध होना पड़ता है। जब हर साल गर्मी में ऐसी स्थिति बनती है तो सरकार को चाहिए कि वह भूजल के संरक्षण और संवर्धन के लिए ठोस कार्ययोजना बनाएं ताकि गर्मी के मौसम में स्थिति भयावह रूप धारण न कर पाएं।
हर साल बरसात के मौसम में भारी मात्रा में पानी नदी नालों से बहता हुआ समुद्र में जा मिलता है, यदि इस वर्षा जल का संचय किया जाएं तो इससे भूजल स्तर भी बढ़ेगा और पेयजल व निस्तार की समस्या का भी काफी हद तक समाधान होगा। इसके साथ ही भूजल के अंधाधुंध दोहन पर भी कड़ाई पूर्वक रोक लगाने की सख्त जरूरत है।
कृषि कार्यो और उद्योगों के लिए जिस बेदर्दी के साथ धरती के सीने में छेद कर के भूजल (Water Crisis) का मनमाना दोहन किया जा रहा है उसे देखते हुए आने वाले समय में भूजल का स्तर इतना नीचे जा सकता है कि उसका दोहन ही मुश्किल हो जाएगा। अत: भूजल के इस मनमाने दोहन पर भी रोक लगनी चाहिए और भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए। यदि समय रहते सरकार इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती तो आने वाले सालों में जल संकट और भी भीषण रूप में सामने आ सकता है।