सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद पोर्टल पर वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन की समयसीमा बढ़ाने से इंकार कर दिया है (Waqf Registration)। अदालत ने स्पष्ट कहा कि यदि किसी कारण से रजिस्ट्रेशन नहीं हो पा रहा है, तो समय-विस्तार की मांग संबंधित वक्फ ट्रिब्यूनल से ही की जा सकती है (Waqf Registration)।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि पोर्टल पर वक्फ प्रॉपर्टी के पंजीकरण के लिए केवल छह माह का समय दिया गया था, जबकि वक्फ एक्ट पर अंतरिम निर्णय आने में ही पांच महीने बीत गए, जिससे आवेदन जमा करने के लिए बहुत कम समय बचा है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि पोर्टल (Waqf Registration) में सर्वर संबंधी समस्याएँ हैं और कई मुतवल्ली उपलब्ध नहीं होते, जिससे अपलोड प्रक्रिया बाधित होती है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट की धारा 3B के तहत ट्रिब्यूनल उपयुक्त मामलों में समय बढ़ाने का अधिकार रखता है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सभी याचिकाओं का निस्तारण करते हुए स्पष्ट किया कि आवेदक निर्धारित अवधि के भीतर संबंधित ट्रिब्यूनल से समय-विस्तार की मांग कर सकते हैं।
सुनवाई की शुरुआत में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि संशोधन 8 अप्रैल से लागू हुआ, पोर्टल 6 जून को सक्रिय हुआ, नियम 3 जुलाई को आए, और अंतरिम आदेश 15 सितंबर को आया।
उन्होंने कहा कि पुराने सौ-डेढ़ सौ साल पुराने वक्फों के दस्तावेज खोजना कठिन होता है और पोर्टल बिना पूरी जानकारी के फॉर्म स्वीकार नहीं करता। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी पोर्टल की तकनीकी खामियों का मुद्दा उठाते हुए अतिरिक्त समय की मांग की।
इधर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि धारा 3B के अनुसार ट्रिब्यूनल के पास समय बढ़ाने की पूरी शक्ति है, इसलिए हर वक्फ अलग-अलग ट्रिब्यूनल में जाकर विस्तार मांग सकता है। उन्होंने बताया कि पोर्टल 6 जून से चालू है और अंतिम तिथि 6 दिसंबर निर्धारित है। उन्होंने यह भी कहा कि पहले से बड़ी संख्या में वक्फ पंजीकृत हो चुके हैं।
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि इससे लगभग 10 लाख मुतवल्लियों को अलग-अलग आवेदन करने होंगे, और कई मामलों में 100 साल पुरानी डीड खोजना व्यावहारिक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में समाधान ट्रिब्यूनल से ही मिल सकता है। वरिष्ठ वकील एम.आर. शम्शाद ने कहा कि विवाद पंजीकरण का नहीं, बल्कि पहले से पंजीकृत संपत्तियों के डिजिटाइजेशन का है, जो अंतरिम आदेश में शामिल नहीं किया गया है।
एक अन्य पक्ष ने कहा कि कई राज्यों ने धारा 4 के तहत वक्फ सर्वे ही पूरा नहीं किया है, ऐसे में अनिवार्य पंजीकरण लागू नहीं किया जा सकता। एडवोकेट निजाम पाशा ने कहा कि छह महीने की अवधि संशोधन की तारीख से गिनना चाहिए और यह 10 अक्टूबर को समाप्त हो चुकी है, इसलिए ट्रिब्यूनल अब आगे समय नहीं दे सकता। SG मेहता ने इसे गलत बताते हुए कहा कि समयसीमा 6 दिसंबर तक है।
अंत में कोर्ट (Waqf Registration) ने कहा कि धारा 3B के प्रावधान के तहत ट्रिब्यूनल समय बढ़ा सकता है, और सभी आवेदक अंतिम तिथि से पहले ट्रिब्यूनल से संपर्क करें। अदालत ने विस्तार देने से साफ इंकार करते हुए याचिकाओं का निस्तारण कर दिया।
यह मामला वक्फ संशोधन एक्ट 2025 से संबंधित है, जिसके तहत “वक्फ बाय यूज” सहित सभी वक्फ संपत्तियों का उम्मीद पोर्टल पर अनिवार्य पंजीकरण लागू किया गया है। AIMPLB, सांसद असदुद्दीन ओवैसी सहित कई पक्ष समय बढ़ाने की मांग कर रहे थे। ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा था कि छह में से पांच महीने कोर्ट की सुनवाई में ही बीत गए, इसलिए समय न बढ़ने पर पुराने वक्फों को भारी नुकसान हो सकता है।

