डॉ. श्रीनाथ सहाय। UP assembly elections : उत्तर प्रदेश में अब महज कुछ ही महीने दूर चुनाव हैं। चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबीयों पर इनकम टेक्स की रेड ने एक बार फि र टाइमिंग को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। सपा के चीफ अखिलेश यादव ने इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं तो बीजेपी इसे इनकम टेक्स की कार्रवाई बताकर पल्ला झाडऩे में जुटी हुई है। लेकिन एक बात साफ है कि यह पहला मौका नहीं है जब चुनाव के समय विपक्ष के नेताओं के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई हो रही है।
पहले भी ऐसे कई मौके आए जब चुनाव के समय कई राज्यों में प्रमुख नेताओं और उनके करीबियों के यहां जांच एजेंसियों की छापेमारी हो चुकी है। प्रदेश में अभी चुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं हुई है। बहुत संभावना है कि जनवरी के दूसरे सप्ताह में प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी। चुनावी बेल में समाजवादी पार्टी के नेताओं और करीबियों पर आयकर विभाग के छापों ने राजनीति को गरमा दिया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार समाजवादी पार्टी के नेताओं पर आयकर छापे 1000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकते हैं। हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पूरा खुलासा नहीं किया है, लेकिन 800 करोड़ रुपए की कर-चोरी का शुरुआती अनुमान है। आयकर विभाग की खुफि या लीड 200 करोड़ रुपए की कर-चोरी की थी, लेकिन पांच दिन के छापों में बहुत बड़ा भ्रष्टाचार बेनकाब हो रहा है।
वित्त मंत्रालय का बयान है कि सपा के एक नेता ने 68 करोड़ की कर-चोरी कबूल भी कर ली है और वह जुर्माने सहित टैक्स अदा करने को तैयार भी हैं। उस नेता ने आयकर अधिकारियों के जरिए भारत सरकार से माफी भी मांगी है। एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के निदेशक की 86 करोड़ रुपए की अघोषित आय भी पकड़ी गई है। एक फर्जी कंपनी में 12 करोड़ रुपए का निवेश और फर्जी शेयर भी बरामद किए गए हैं। कंस्ट्रक्शन कंपनी के फर्जी दस्तावेज, खाली बिल बुक, स्टांप, हस्ताक्षर की गई चेक बुक आदि हस्तगत कर लिए गए हैं और करोड़ों के फर्जी खर्च की जानकारियां भी हासिल हुई हैं।
इनके अलावा, कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, डायरियां और दस्तावेज भी बरामद किए गए हैं। डायरी में नोट हैं कि कब, किसे और कैसे ‘घूस’ दी गई? शक के घेरे में पुलिस और प्रशासन के बड़े अधिकारी भी हैं। अभी सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आदि के खिलाफ बेहिसाब संपत्ति के केस सीबीआई में जारी हैं। धन्य है, विश्वनाथ चतुर्वेदी का नैतिक हौसला और धैर्य, कि वह अकेले ही यह लंबा और खतरनाक ‘धर्मयुद्ध’ लड़ रहे हैं और केस को बंद नहीं होने दिया है।
मुलायम सिंह अपने आप में एक राजनीतिक (UP assembly elections) खौफ रहे हैं। अब उनकी पार्टी की दूसरी पीढ़ी भी भ्रष्ट साबित होने के कगार पर है। मुलायम के अंतरंग साथी रहे आजम खां लोकसभा सांसद हैं, लेकिन जेल में बंद हैं। बड़े-बड़े वकील भी उनकी जमानत नहीं करा सके हैं। विचाराधीन मामलों में वह भू-माफिया के तौर पर उभरे हैं। उप्र की पिछली अखिलेश सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति भी जघन्य बलात्कार एवं अन्य मामलों में जेल की सलाखों के पीछे हैं।
मौजूदा आयकर छापे उन सपा नेताओं के घर, कार्यालय और बिजनेस के अन्य ठिकानों पर पड़े हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ओएसडी या बेहद करीबी थे। हम ऐसे आरोपों को खंडित नहीं कर सकते कि विभिन्न एजेंसियों के छापों के पीछे राजनीतिक दखल नहीं होता। पूरा लोकतंत्र राजनीति पर आधारित है। राजनीतिक दखल ही देश की सरकार चलाता है। वे निरपेक्ष, तटस्थ और बिल्कुल न्यायकारी नहीं माने जा सकते।
यदि आज आयकर छापा मारा गया है, तो उसकी प्रक्रिया 5-6 माह पूर्व ही शुरू हो जाती है। राजनीतिक दखल या पूर्वाग्रह के आधार पर ही छापे नहीं मारे जा सकते, क्योंकि अंतत: अदालत के सामने जवाबदेही होती है। छापों से पहले ही प्रमाण जुटाए जाते हैं, खुफि या सूचनाएं इक_ा की जाती हैं, आयकर अदा करने के पुराने विवरणों के विश्लेषण किए जाते हैं। यदि विभाग ऐसी कार्रवाई पूर्वाग्रह के मद्देनजर करता है, तो अधिकारियों की नौकरी तक जा सकती है। उन्हें जेल भी हो सकती है।
यदि सपा नेता अखिलेश यादव के पास ठोस सबूत हैं कि ये छापे चुनावों के मद्देनजर खुन्नस निकालने के लिए डाले गए हैं, तो उन्हें अदालत में चुनौती जरूर देनी चाहिए। ये कोई पहला मौका नहीं है जब चुनाव से पूर्व कई राज्यों में इनकम टैक्स के छापे पडें हों। इससे पहले भी कई बार चुनाव से पूर्व छापे पड़ चुके हैं। पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव हुए थे इससे पहले भी इस प्रकार की कार्यवाही हुई थी। कर्नाटक में कांग्रेस के बड़े नेता के पीछे पड़ी थी आईटी। कर्नाटक में 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे।
महाराष्ट्र में 2019 में विधानसभा चुनाव हुए थे। इससे ठीक पहले ही सितंबर 2019 में चुनाव के ठीक पहले म्क् ने छापे मारे थे। शरद-अजित पवार पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस हुआ था। छत्तीसगढ़ में भी साल 2018 में विधानसभा चुनाव थे और छापेमारी का समय भी यही रहा। सीडी घोटाले में भूपेश बघेल को सीबीआई का सामना करना पड़ा। मध्य प्रदेश में 2018 में विधाानसभा चुनाव हुए और अप्रैल 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले प्ज् ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों के 52 ठिकानों पर छापे मारे थे।
केरल में साल 2021 में विधानसभा चुनाव से पहले ही जुलाई 2020 में मुख्यमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेट्री एम शिवशंकर से सोने की तस्करी के मामले में पूछताछ की गई थी। आंध्रप्रदेश में 2019 में विधानसभा चुनाव से नवंबर 2018 में चुनावों से कुछ महीने पहले प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग में तेलुगू देशम के सांसद वाईएस चैधरी पर छापे मारे गये थे। इसीलिये यूपी में इनकम टैक्स की कार्यवाही पर सवाल उठ रहे हैं।
चुनाव और आयकर, ईडी, सीबीआई आदि के छापे परस्पर पूरक नहीं हैं। चुनाव तो आजकल साल भर किसी न किसी राज्य में होते ही रहते हैं।
एजेंसियां हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ सकतीं। फि र तो अपराध अराजकता बन जाएगा और देश में कर-व्यवस्था ही खंडित हो जाएगी। पहले ही देश की थोड़ी-सी आबादी ही आयकर का भुगतान करती है। समाजवादी पार्टी नेताओं और करीबियों के घर और दफ्तर पर आयकर विभाग के छापेमारी पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा को हार सतायेगी तो दिल्ली से बड़े-बड़े नेता आएंगे। अभी इनकम टैक्स विभाग आया है फि र ईडी और सीबीआई आएगी।
अब इनकम टैक्स विभाग भी उत्तरप्रदेश में चुनाव लडऩे आ गया। भाजपा के पास कोई नया रास्ता नहीं है। बहरहाल अब सवाल यह है कि उप्र के विधानसभा चुनाव में आयकर छापे क्या प्रमुख मुद्दे बनेंगे? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य के बयानों से तो ऐसा ही स्पष्ट होता है। बेशक उप्र में सपा ही सत्तारूढ़ भाजपा को प्रखर चुनौती देती लग रही है।
उसने छोटे और पिछड़े दलों का गठबंधन तैयार कर वोटों को बिखरने से बचाने की कोशिश की है। लेकिन जया बच्चन सरीखी बौद्धिक सांसद यह दलील देना बंद करें कि समाजवादी तो गरीब होते हैं। खैर, इन छापों ने यूपी (UP assembly elections) की सियासत को गरमा तो दिया ही है, वहीं समाजवादी इन छापों को चुनाव मंचों पर जोर-शोर से उठाएगी भी जरूर।