नई दिल्ली। UCC: केन्द्र सरकार आगामी मानसून सत्र में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश करेगी। इसके लिए मोदी सरकार ने सर्वदलीय स्थायी समिति की बैठक बुलाई है। इसमें सत्ताधारी दलों के साथ-साथ विपक्षी दलों की भी राय ली जाएगी। यह कानून उत्तराखंड राज्य में लागू होने जा रहा है। लोकसभा में 3 जुलाई को दो चरणों में बैठक होगी। इस संसदीय पैनल के अध्यक्ष बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी हैं।
पुर्तगाली नागरिक संहिता का अध्ययन करने के लिए पैनल ने पिछले साल गोवा का दौरा किया था। इसके चलते गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है। इस बीच, यूसीसी के मुद्दे पर उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट तैयार हो गई है। इसकी सिफारिशें राष्ट्रीय स्तर पर समान नागरिक संहिता लागू करने में सहायक हो सकती हैं।
जब से बीजेपी अस्तित्व में आई है, समान नागरिक संहिता उसके एजेंडे में है। ये जनसंघ के समय से उनका नारा था। धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून बनाने के बजाय, उन्होंने एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास किया। अब इसके साकार होने की संभावना कहां है?
उत्तराखंड पैनल की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक मुसलमानों सहित सभी महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार की सिफारिश करना था। इसके अलावा महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल की जा सकती है। सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय समिति ने अपनी प्रमुख सिफारिशें तैयार कर ली हैं और जल्द ही अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपने की संभावना है।
उत्तराखंड का यूसीसी पैनल सभी धर्मों के लिए गोद लेने के नियमों और गोद लिए गए बच्चों को जैविक बच्चों के समान अधिकार देने की सिफारिश करेगा। जो सिर्फ हिंदू कानून में है।
हिंदू संयुक्त परिवार में पुरुष उत्तराधिकारी के जन्म से पैतृक संपत्ति में अधिकार का प्रावधान समाप्त हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 के अपने आदेश में हिंदू महिलाओं को पैतृक और कृषि संपत्ति में पुरुषों के बराबर अधिकार दिया था। ऐसे में हिंदू पुरुषों का पैतृक संपत्ति से अधिकार खत्म हो सकता है।