-पैसों के मामले में गृहिणियों के योगदान को मापना मुश्किल है!
नई दिल्ली। Supreme Court: सिर्फ इसलिए कि एक गृहिणी दिन में घर पर रहती है इसका मतलब यह नहीं है कि वह कोई काम नहीं करती है। घर में एक महिला के काम का मूल्य ऑफिस से वेतन पाने वाली महिला के काम से कम नहीं है। घर की देखभाल करने वाली महिला की भूमिका उच्च दर्जे की होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौद्रिक संदर्भ में उनके योगदान को मापना मुश्किल है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने 17 साल पहले सड़क दुर्घटना में एक महिला की मौत से संबंधित मोटर दुर्घटना दावे पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के रुख का विरोध किया। कोर्ट ने इस तरह का रवैया अपनाने पर हाई कोर्ट को फटकार लगाई।
कोर्ट (Supreme Court) ने कहा एक गृहिणी की आय को दिहाड़ी मजदूर से कम कैसे माना जा सकता है? एक गृहिणी के काम का मूल्य कभी कम नहीं आंका जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा मोटर दुर्घटना दावा मामलों में न्यायपालिका, अदालतों को काम, श्रम और बलिदान के आधार पर गृहिणियों की अनुमानित आय की गणना करनी चाहिए। ट्रिब्यूनल ने ढाई लाख मुआवजा देने का आदेश दिया था।
दिहाड़ी मजदूर से भी कम आय पर कोर्ट ने कहा…
अपील पर उच्च न्यायालय ने उसके गृहिणी होने के आधार पर दावे की गणना करने में ट्रिब्यूनल के आदेश में कोई त्रुटि नहीं पाई, जिसमें महिला की अनुमानित आय एक दैनिक मजदूर से कम मानी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपील स्वीकार करते हुए मुआवजे की रकम छह लाख रुपये तय की और छह सप्ताह के भीतर मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का निर्देश दिया।
एक परिवार में एक गृहिणी की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी एक कार्यालय से वेतन पाने वाली महिला की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एक गृहिणी के काम को एक-एक करके मापा जाए तो उसका योगदान निस्संदेह अमूल्य होगा।