-मोहम्मद अब्दुल समद नाम के शख्स की ओर से दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया
नई दिल्ली। supreme court on alimony: देश में मुस्लिम महिलाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है। पति-पत्नी के भरण-पोषण के तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को मोहम्मद अब्दुल समद नाम के व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बुधवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है।
तेलंगाना हाई कोर्ट ने मोहम्मद अब्दुल समद को सीआरपीसी (supreme court on alimony) की धारा 125 के तहत अपनी तलाकशुदा पत्नी को 10,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। हालांकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिका खारिज कर दी और उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
अनुच्छेद 125 सभी महिलाओं पर लागू होता है: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिम महिलाएं अपने भरण-पोषण के लिए कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर सकती हैं। वे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (supreme court on alimony) के तहत भी याचिका दायर कर सकते हैं। यह धारा सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है, चाहे वे किसी भी धर्म की हों। मुस्लिम महिलाएं भी इस प्रावधान का लाभ उठा सकती हैं।
सीआरपीसी की धारा 125 क्या है?
सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार, एक तलाकशुदा पत्नी अपने लिए या बच्चों के भरण-पोषण के लिए अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है।