नई दिल्ली। PM Care Fund: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन लोकुर ने सूचना का अधिकार कानून के कमजोर होने पर चिंता जताई है। उन्होंने इसके लिए पीएम केयर फंड का उदाहरण देते हुए कहा कि इसके बारे में जानकारी का अभाव है। उन्होंने कहा, हमें नहीं पता कि पीएम केयर फंड में जमा पैसा कहां जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि आम नागरिकों और बड़े उद्यमियों द्वारा दान किए गए करोड़ों रुपये कैसे खर्च किए जा रहे हैं, इसकी कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है।
चलो अपने पीएम केयर फंड को एक उदाहरण के रूप में लेते हैं। इसमें करोड़ों रुपये भी हैं। हम सभी जानते हैं कि सरकारी कर्मचारियों ने पैसा दान किया है। लेकिन हम नहीं जानते कि फंड में कितना पैसा है। हम नहीं जानते कि कैसे यह खर्च किया गया था। कहा जाता था कि इसे खरीद के लिए किया जाएगा। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हुआ कि नहीं हम नहीं जानते।
2020-2021 की ऑडिट रिपोर्ट अभी तैयार नहीं है
अगर आप पीएम केयर (PM Care Fund) की वेबसाइट पर जाते हैं, तो 28 फरवरी, 2020 से 31 मार्च, 2020 तक की ऑडिट रिपोर्ट है। यह कहता है कि चार दिनों में 3,000 करोड़ रुपये एकत्र किए गए थे। यदि आप आंकड़ों को देखें तो हम हजारों के बारे में बात कर रहे हैं। लेकिन यह पैसा कहां जा रहा है? हमें नहीं पता। 2020-2021 के लिए ऑडिट रिपोर्ट अभी तक तैयार नहीं हुई है। एक साल हो गया है। लेकिन ऑडिट रिपोर्ट के बारे में कोई नहीं जानता।
पीएम केयर फंड का खुलासा करने से इनकार
प्रधानमंत्री कार्यालय इससे पहले पीएम केयर फंड का खुलासा करने से इनकार कर चुका है। उन्होंने इस संबंध में दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, कोरोना संकट से निपटने के लिए एक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पीएम केयर फंड की स्थापना की गई थी। लोकुर ने आरोप लगाया कि विभिन्न तरीकों से आरटीआई अधिनियम का उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने कहा, हमें सरकार से सूचना मांगने की जरूरत नहीं है, उन्हें सूचना का अधिकार कानून के तहत खुद मुहैया कराना चाहिए।