विशेष संवाददाता
रायपुर/नवप्रदेश। cg tribal politics: पिछले 25 साल से “”तिहार” मना रही राज्य की 34 फीसदी आदिवासी आबादी ने असल “”न्याय” तब महसूस किया जब राज्य निर्माण के 24 साल बाद पहले असली आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बने। राज्य की 90 में से 29 विधानसभा और 11 में से 4 लोकसभा की सीटे आरक्षित होने के बावजूद राज्य की आदिवासी राजनीति इसलिए हाशिए पर रही कि असली और नकली का फर्क समझने में 24 साल लग गए। राज्य निर्माण के शुरूआती दौर में विद्याचरण शुक्ल द्वारा बनाये गये पृथक छत्तीसगढ़ निर्माण मंच के जवाब में अब के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक गुरू वासुदेव चन्द्राकर ने तब के राज्यसभा सांसद अजीत जोगी के साथ मिलकर आदिवासी एक्सप्रेस के नाम से राज्यभर में यात्रा निकाली।
हालांकि इस मुहिम का मकसद राज्य के श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा जैसे ताकतवर सवर्ण नेताओं के वर्चस्व को चुनौती देना था। चंूकि उस समय जोगी दिल्ली मे ताकतवर थे तो सफलता भी मिली और जोगी मुख्यमंत्री बन गए। उसके बाद शुक्ल और जोगी के बीच क्या हुआ सब जानते है लेकिन आज का हमारा ये एपीसोड राज्य की आदिवासी राजनीति पर है तो हम इसी पर टिके रहने का प्रयास करेगें। असली और नकली आदिवासी के संघर्ष में जोगी का तीन साल का कार्यकाल इतना विवादास्पद रहा कि 15 साल के लिए कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।
2003, 2008 और 2013 में कांग्रेस को क्रमंश: 37, 38, 39 सीटे मिलती रही लेकिन 29 आदिवासी सीटो में कांग्रेस इसलिए पिछड़ती रही कि हर चुनाव में जोगी मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार बनकर उभर जाते थे और हर बार इसी समय एक नारा फूल छाप कांग्रेसी और पंजा छाप भाजपाई लगाया करते थे कि राज्य को असली आदिवासी मुख्यमंत्री चाहिए। हालांकि 2013 में भूपेश बघेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद जोगी को संगठनात्मक तौर पर हाशिए पर लाया गया 2018 आते-आते जोगी ने अपनी पार्टी बना ली। जब सब कुछ तय हो गया कि अब जोगी कांग्रेस में नहीं है तो 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 29 में 27 आदिवासी सीटे मिली।
इस उम्मीद के साथ कि इस बार असली आदिवासी मुख्यमंंत्री बन जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ 69 सीटो के भारी भरकम जनादेश के साथ भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने और पांच साल सरकार चलाने के बाद 2023 के चुनाव में इन्हीं 29 में से 14 आदिवासी सीटों के हार जाने के कारण सत्ता से बाहर हो गए। लेकिन अब तक भाजपा राज्य की राजनीतिक की नब्ज को पकड़ चुकी थी सो भाजपा ने असली आदिवासी विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि सोशल इंजिनियरिंग का यह फार्मूला कांग्रेस का था लेकिन उसकी अपनी राजनीतिक मजबूरियां थी।
उस समय के नेता प्रतिपक्ष रहे नंदकुमार साय असली और नकली आदिवासी की राजनीति को हवा दे रहे थे तब फूल छाप कांग्रेस का एक वर्ग रसद पानी का काम कर रहा था। अब चूंकि असली आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बन गये और पिछले देड़ साल से काम कर रहे है लेकिन असली चुनौती उनके लिए 2028 का चुनाव है कि क्या पूरी आदिवासी सीटे भाजपा जीत पाएगी ?