मुंबई, 27 जून। Thackeray Family Reunion : राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का दो दशकों बाद अचानक साथ आना सिर्फ हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के विरोध से ज्यादा एक गहरा राजनीतिक संदेश है। जहां एक तरफ दोनों नेताओं ने ‘मराठी अस्मिता’ की बात कर के भावनात्मक कार्ड खेला है, वहीं असली वजह ठाकरे ब्रांड का राजनीतिक वजूद बचाना है।
जब शिवसेना से गई शिवसेना, और MNS से गया जनाधार
उद्धव ठाकरे की शिवसेना UBT – चिन्ह, विधायक और संगठन तीनों ही स्तर पर कमजोर हुई।
राज ठाकरे की MNS – एक समय की आक्रामक पहचान, अब सियासी हाशिए पर।
शिंदे की अगुवाई में शिवसेना का नया चेहरा भाजपा के सहयोग से मजबूत हुआ, और उसी ने “असली शिवसेना” की मान्यता पा (Thackeray Family Reunion)ली। ऐसे में अब “एकजुट ठाकरे” शायद आखिरी हथियार हैं, अपना असर दोबारा जमाने का।
संजय राउत की पोस्ट: सिर्फ एक फोटो नहीं, रणनीतिक संकेत
जब संजय राउत ने एक्स पर उद्धव और राज की साथ वाली तस्वीर डाली, और लिखा “पुरानी ग्लोरी लौटेगी”, तो साफ था कि इशारा बाला साहेब ठाकरे की विरासत की ओर है। ये ‘इमोशनल पिच’ मराठी वोटबैंक को दोबारा जोड़ने की कोशिश है।
पिछली बगावत की याद: जब राज बनना चाहते थे ‘वारिस’ लेकिन बने ‘विरोधी’
2006 में जब राज ठाकरे ने MNS बनाई थी, वो एक भावनात्मक विद्रोह था। शिवसेना की कमान उन्हें न देकर उद्धव को दी गई, जिससे पारिवारिक रिश्ते और राजनीतिक समीकरण दोनों (Thackeray Family Reunion)बिगड़े। अब 2025 में, वही दो चेहरे दबाव के चलते दोबारा साथ आ रहे हैं।