डॉ. श्रीनाथ सहाय। Terror Valley : कश्मीर घाटी का माहौल फिर से बिगड़ता दिख रहा है। श्रीनगर में पिछले दिनों एक प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडित दवा व्यवसायी माखनलाल बिंदरू की ह्त्या को आतंकवादियों की हताशा से जोड़कर देखा जा रहा है। बिंदरू की हत्या के बाद बीते गुरुवार को एक स्कूल में धुसकर आंतकियों ने एक पिं्रसिपल और एक अध्यापक की हत्या कर दी। मरने वालों में एक हिंदू और सिख था। आंतकियों ने बाकायदा स्कूल स्टाफ के पहचान पत्र चेक करके हिंदू और सिख टीचर की हत्या की।
दरअसल, अब आम लोग महसूस करने लगे हैं कि कश्मीर का विकास देश की मुख्यधारा से जुड़कर ही संभव है। वे रोजगार व कारोबारों को नये सिरे से स्थापित कर रहे हैं। वहीं बीते महीने अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की मौत के बाद कश्मीर में माहौल पूरी तरह से शांत रहा। कश्मीर के किसी जिले में कोई हिंसक प्रदर्शन या फिर घटना नहीं हुई है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि अब कश्मीर की अवाम को शांति पसंद आ रही है। पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने भी दो दिन पहले एक बयान में कहा था कि वह जनता का शुक्रिया करते हैं कि उन्होंने शांति बनाए रखी है।
यही बात आतंकवादियों और सीमा पार बैठे उनके आकाओं को रास नहीं आ रही है। दूसरी ओर सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाइयों में बड़ी संख्या में आतंकवादियों के मारे जाने से उनके आका बौखलाए हुए हैं। सेना व सुरक्षाबलों से मुकाबला न कर पाने की स्थिति में निहत्थे लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। उनकी आर्थिक मदद करने वालों पर भी सख्त शिकंजा कसा गया है। पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन इसी हताशा में आम लोगों को निशाना बनाकर भय का माहौल बनाना चाह रहे हैं।
दवा व्यवसायी माखनलाल बिंदरू की आतंकवादियों ने उनके प्रतिष्ठान में घुसकर उन्हें गोली मार दी। 1990 में कश्मीरी पंडितों के सामूहिक पलायन के भयावह दौर में भी उन्होंने श्रीनगर नहीं छोड़ा। बीते कुछ समय से सुरक्षा बल लगातार आतंकवादियों को ढूंढकर मार रहे हैं। सीमा पार से घुसपैठ में भी कमी आई है। इस कारण घाटी में बचे-खुचे अलगाववादी बौखलाहट में हैं। उनको सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर है कि आम जनता भी शान्ति के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है।
इसका सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि घाटी (Terror Valley) में इस साल पर्यटकों की संख्या ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। कश्मीरी युवाओं को भी ये बात समझ में आने लगी है कि उनका भविष्य अलगाववादियों के साथ रहने से अंधकारमय हो जाएगा और जिस बन्दूक को उठाकर वे निर्दोष लोगों की हत्या करेंगे वही एक दिन उनकी मौत का जरिया बनेगी। जनजीवन सामान्य होने से अलगाववादियों के आश्रयस्थल भी लगातार कम होते जा रहे हैं। पंचायत चुनाव निर्विघ्न संपन्न होने के बाद घाटी के भीतरी हिस्सों में पहली बार विकास के छोटे-छोटे काम शुरू हो सके जिससे वहां के लोग आश्चर्यचकित हैं।
आतंकवाद से दिखावटी दूरी बनाये रखते हुए अलगाववाद और पाकिस्तान परस्ती का प्रतीक बन चुकी हुर्रियत कांफ्रेंस की कमर भी टूट चुकी है। उसके नेताओं पर नियन्त्रण लगाये जाने का असर ये हुआ कि सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने और आतंकवादियों के जनाजे में जनसैलाब के उमडने जैसे दृश्य अब नहीं दिखाई देते। जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने जिस कुशलता से घाटी के जिम्मेदार लोगों से सीधे संवाद का तरीका अपनाया उससे भी माहौल सकारात्मक होने लगा है।
जैसी जानकारी आ रही है उसके अनुसार घाटी से भगाये गये कश्मीरी पंडितों को दोबारा वहां बसाने की तैयारियां भी प्रशासनिक स्त्तर पर चल रही हैं। हालाँकि अलगाववाद के पोषक गुटों को उनकी वापिसी किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं है। कुछ बड़े नेता तो इससे घाटी में जनसँख्या का संतुलन बिगडने की आशंका भी व्यक्त कर चुके हैं।
अतीत में सुरक्षा के लिहाज से कश्मीरी पंडितों को वापिस लाकर उनके लिए अलग आवासीय क्षेत्र बनाने की योजना बनी तब फारुख अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने भी उसका ये कहते हुए विरोध किया था कि इससे सामुदायिक भेदभाव और बढ़ेगा। लेकिन दूसरी तरफ ये भी कहा जाता रहा कि बिना पंडितों के लौटे कश्मीर अधूरा है।
मोदी सरकार द्वारा धारा 370 को हटा देने के बाद से जिस तेजी से हालात बदले उनमें कश्मीरी पंडितों की वापिसी के लिए परिस्थितियाँ अनुकूल होने लगी थी। ऐसा लगता है आतंकवादी इसी कारण चिंतित हैं और उसी वजह से दवा व्यवसायी माखनलाल बिंदरू की ह्त्या की गई जो आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के समय भी घाटी छोड़कर नहीं गये। निश्चित तौर पर ये बहुत ही निंदनीय कृत्य है। पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने यद्यपि उनके घर जाकर इसे अमानवीय कृत्य तो बता दिया लेकिन कश्मीरी पंडितों की वापिसी को लेकर वे और उनकी पार्टी दोगलापन दिखाते आये हैं। यही हाल महबूबा मुफ्ती का भी है।
आंतकी घटनाओं के मद्देनजर जम्मू कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार को माकूल कदम उठाने होंगे। जिस तरह धारा 370 को खत्म करना एक चुनौती थी ठीक वैसे ही कश्मीरी पंडितों का घाटी में पुनर्वास भी बहुत बड़ा काम है जिसे किये बिना केंद्र सरकार की पूरी मेहनत पर पानी फिर जायेगा। सरकार को चाहिए उनकी सुरक्षा और सुविधाओं का सामुचित प्रबंध करे। कश्मीरी पंडित हमारी संस्कृति के संवाहक रहे हैं।
देश के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरु भी इसी समुदाय से थे और उनके प्रपौत्र राहुल गांधी भी अपने को सारस्वत गोत्र धारी कश्मीरी ब्राह्मण बताते हैं। बीते कुछ समय से घाटी में रहने वाले हिन्दुओं का मनोबल बढ़ा है। जन्माष्टमी पर निकली शोभा यात्रा के अलावा स्वाधीनता दिवस पर श्रीनगर के लालचैक में पाकिस्तानी ध्वज के बजाय तिरंगा फहराया जाना राष्ट्रवादी भावनाओं के मजबूत होने का प्रमाण है जिसे अलगाववादी पचा नहीं पा रहे और इसीलिये बीच-बीच में भय का वातावरण बनाने का काम करते हैं।
लेकिन माखनलाल बिंदरू और दो अध्यापकों की हत्या से घबराए बिना केंद्र और राज्य प्रशासन को कश्मीरी पंडितों की घर वापिसी की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए ताकि धारा 370 हटाये जाने का उद्देश्य पूरा हो सके। हालांकि मक्खनलाल बिंदरू की बेटी श्रद्धा बिंदरू के बयान बेहद प्रशंसनीय हैं, जो उनके पिता की बहादुरी और जुझारूपन से मेल खाते हैं। उनकी कहीं बातें देश-दुनिया की महिलाओं, तमाम युवाओं के लिए नजीर है, जो गरीबी, बदहाली में अधीरता का अवलंबन कर आत्मघाती कदम उठा लेते या किसी के चंगुल में फंस कर अपने जीवन को नरक में धकेल डालते हैं। फिर वापस लौटने के तमाम रास्ते बंद हो जाते हैं। संकीर्णता की राह पर चल कर बहुत दिनों तक विघटनकारी गतिविधियां नहीं चलाई जा सकती हैं।
जम्मू कश्मीर से विशेष प्रावधान हटाये जाने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की सभी कोशिशें विफल होने और अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाक घाटी (Terror Valley) में फिर से हिंसा का नया दौर लाने की बड़ी साजिशें रच सकता है। इस नयी चुनौती का मुकाबला करने के लिये एलओसी और केंद्रशासित प्रदेश के भीतर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। घाटी का माहौल धीरे-धीरे ही सही, सुरक्षाबलों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस आमजन और स्थानीय नेतृत्व के कौशल के कारण बदल रहा है। नये मामलों ने थोड़ी चिंता जरूर बढ़ाई है, लेकिन उम्मीद है आंतकी अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो पाएंगे।